रविवार, 5 दिसंबर 2010

खेलें हम ईमान से

खबर आयी है कि ग्वांगझू एशियाड में पुरुषों की ४ गुणा १०० मी० रिले स्पर्धा में भाग लेने वाली भारतीय टीम के एक सदस्य एस. सत्या को डोपिंग का दोषी पाया गया है। यह चौंकाने वाली बात है क्योंकि इस स्पर्धा में भारतीय टीम कांस्य पदक के लिए फोटो फिनिश में हार गयी थी। यदि भारत यह पदक जीतता तो सम्भव है कि बाद में पदक छीनने की नौबत आती और यह देश के लिए अपमानजनक होता।



एथलेटिक्स फेडरेशन आWफ इण्डिया (AFI) के कुछ अधिकारी तो यहां तक कह रहे हैं कि भारतीय टीम को हराने में फेडरेशन के ही एक अधिकारी का हाथ था जिसकी नियुक्ति एशियाड में थी और फोटो फिनिश का निर्णय भी उसी ने दिया था। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि पदक जीतने पर नियमानुसार पूरी टीम का डोपिंग टेस्ट होता और पकड़े जाने पर भारत का कांस्य पदक छीन लिया जाना तय था।


इस मामले में नेशनल एन्टी डोपिंग एजेन्सी (NADA) का कहना है कि एस. सत्या का सैम्पल १५ नवम्बर को उसे मिला था जिसकी रिपोर्ट २३ नवम्बर को आ गई थी। २४ नवम्बर को NADA ने नोटिस जारी करते हुए एस. सत्या पर दो साल का प्राविजनल प्रतिबंध लगाया था। फिर AFI ने २५ नवम्बर को आयाजित हुई इस स्पर्धा में दोषी खिलाड़ी को भाग लेने की अनुमति कैसे दी, यह समझ से परे है। इससे AFI की भूमिका संदेह के घेरे में आ जाती है। यही नहीं, भारतीय टीम के यूक्रेनी प्रशिक्षक पर भी उंगलियां उठ रही हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि यूकेनी प्रशिक्षक द्वारा चलाये जा रहे डोपिंग कार्यक्रम को AFI की मौन सहमति मिल रही हो?


इस प्रकरण से यह साफ तौर पर पता चलता है कि भारतीय खेलों और खेल संघों में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। भारतीय भारोत्तोलन टीम पर डोपिंग का साया, भारतीय हाकी संघ के चुनावों को लेकर बवाल, हाकी कोच को लेकर उठापटक, कामनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार जैसे मामलो में एक और कड़ी के रूप में यह प्रकरण सामने आया है। भारतीय खेलों में डोपिंग का शिकंजा मजबूत हो चला है और यह किसी खेल विशेष तक सीमित नहीं है। वर्षों पहले जब एक भारतीय भारोत्तोलक सुब्रत पाल के कामनवेल्थ खेलों में डोपिंग में पकड़े जाने की खबर सुनी थी, तब मेरी स्मृति में वह पहला ऐसा मामला था जब किसी भारतीय खिलाड़ी को किसी बड़ी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में डोपिंग में दोषी पाया गया था। तब देशवासियों के सिर शर्म से झुक गये थे। लेकिन आज डोपिंग इतना व्यापक और इतना गहरा वृक्ष हो गया है कि उसकी जड़ें तलाश करना मुश्किल है। ऐसा नहीं है कि इसे रोकने के लिए कुछ किया नहीं गया। डोपिंग संबंधी नियम कानून मौजूद हैं। जरूरत है केवल उन्हें सख्ती से लागू करने की ताकि खेलों को सही मायनों में प्रतियोगिता के रूप में आयोजित किया जा सके।

यह जानते हुए भी कि कनाडा के धावक बेन जॉनसन का क्या हश्र हुआ, उसी गलती को दोहराना एक बहुत बड़ी भूल है। इससे न केवल खिलाड़ी को अपने कैरियर से हाथ धोना पड़ता है बल्कि उसके गुरुजनों, प्रशन्सकों और सबसे बढ़कर उसके देश को अपमान का दंश झेलना पड़ता है। खिलाड़ियो को समझना चाहिए कि अपने दम-खम से जीता गया पदक ही सर्वोत्तम पुरस्कार है न कि कृत्रिम तरीके अथवा बाहरी सहायता से जीता गया सम्मान। यही किसी प्रतियोगिता की मूल भावना है।

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