गुरुवार, 13 सितंबर 2012

भारत में जल संकट

जल अर्थात् पानी या water, ऑक्‍सीजन के पश्‍चात् हमारे जीवन के लिए दूसरा सबसे महत्‍वपूर्ण पदार्थ है। भोजन के बिना हम कुछ दिन जीवित रह सकते हैं, किन्‍तु जल के बिना अधिक समय तक जीना सम्‍भव नहीं है। मानव शरीर में पाये जाने वाले कुल द्रव में लगभग 80 प्रतिशत मात्रा जल की होती है। इसी से हमारे जीवन में जल की महत्‍ता का पता चल जाता है। भारतीय संस्‍कृति एवं सभ्‍यता में जल की महत्‍ता को भली प्रकार समझा गया है। हिन्‍दू संस्‍क़ृति में जल देवता के रूप में वरुण देवता की संकल्‍पना की गयी है। प्राचीन काल से ही भारत में वर्षाजल संचयन प्रणाली को अपनाया गया। सिन्‍धु सभ्‍यता की खोज के अन्‍तर्गत धौलावीरा की खुदाई में एक जलाशय मिला है जिसके बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि यह वर्षाजल के संचयन हेतु बनाया गया था।  यही नहीं, साहित्‍य और बोलचाल की भाषा में तो जल या पानी को सम्‍मान और स्‍वाभिमान का प्रतीक माना गया है। पानी पानी होना, घडों पानी पडना, पानी भरना, पानी उतारना, पानीदार होना आदि हिन्‍दी मुहावरे इसका उदाहरण हैं। कविवर रहीम ने तो कहा है- रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून।

किन्‍तु यदि आज के संदर्भ में भारत में जल उपलब्‍धता एवं इसकी गुणवत्‍ता की बात करें तो स्थिति शोचनीय है। वस्‍तुत: यह स्थिति भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में है। यदि आंकडों की बात करें तो पृथ्‍वी की सतह पर 71 प्रतिशत जल है, किन्‍तु इस जल का कुल 0.08 प्रतिशत ही मनुष्‍यों के उपयोग के लायक है। आज विश्‍व की लगभग 15 प्रतिशत आबादी को स्‍वच्‍छ जल पीने के लिये उपलब्‍ध नहीं है। भारत में विश्‍व की लगभग 16 प्रतिशत जनसंख्‍या निवास करती है। किन्‍तु उसके लिए केवल 3 प्रतिशत जल ही उपलब्‍ध है। एक अनुमान के अनुसार यह स्थिति और बदतर होती जायेगी और वर्ष 2060 तक हर तीन में से एक व्‍यक्ति को स्‍वच्‍छ जल भी नहीं उपलब्‍ध हो पायेगा।  
भारत में वर्षा, नदियां, तालाब, कुऍं आदि जल के प्रमुख स्रोत रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में हमारे देश में विभिन्‍न उपयोगों के लिये भूमिजल का अन्‍धाधुन्‍ध दोहन बढा है। एक सर्वे के अनुसार, अगस्‍त 2002 से अक्‍टूबर 2008 के बीच 4 सेमी0 प्रतिवर्ष की दर से भूजल स्‍तर में गिरावट आई है। यहां तक कि देश के कई इलाकों विशेषकर पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश, पंजाब आदि में सूखे की स्थिति उत्‍पन्‍न हो गयी है। देश के महानगरों में तो पेयजल संकट विकराल रूप धारण करता जा रहा है। 

अभी हाल ही में मशहूर टीवी शो 'सत्‍यमेव जयते' में फिल्‍म अभिनेता आमिर खान ने दिखाया था कि पानी के लिए हुए संघर्ष में एक 14 वर्षीय बालक सुनील की किस प्रकार हत्‍या कर दी गयी। वर्ष 2010 में इंदौर की 18 वर्षीय लडकी पूनम की हत्‍या उसके पडोसी ने इसलिए कर दी क्‍योंकि उसने उसे अपने घर के नल से पानी देने से इनकार कर दिया था। ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो यह दर्शाते हैं कि पानी की उपलब्‍धता की चुनौती किस तरह भीषण रूप लेती जा रही है। पानी के लिये यह संघर्ष केवल व्‍यक्तियों के बीच नहीं, बल्कि राज्‍यों के बीच, और यहां तक कि पडोसी देशों के बीच भी हो रहा है।   

बात केवल पानी की उपलब्‍धता की नहीं, गुणवत्‍ता की भी है। विश्‍व में लगभग 6000 बच्‍चे रोज प्रदूषित पानी से होने वाले गंभीर रोगों से मर जाते हैं। विकासशील देशों में लगभग 22 लाख लोग हर वर्ष प्रदूषित पानी से होने वाली बीमारियों से मरते हैं। जो पानी हमारे देश में उपलब्‍ध है, उसमें से अधिकांश प्रदूषित है। नदियां हमारे देश में जल की प्रमुख स्रोत हैं और नदियों की पूजा की जाती है। लेकन दिल्‍ली में यमुना और कानपुर में गंगा नदी प्रदूषण के कारण गटर का रूप ले चुकी हैं। अन्‍य नदियों की स्थिति भी बहुत अच्‍छी नहीं है। हमारे तालाब एवं कुऍं भी सूखते जा रहे हैं। 

देश में कई क्षेत्र तो ऐसे हैं जो पर्याप्‍त संसाधन होने के बावजूद जल संकट का सामना कर रहे हैं। कुछ हिस्‍सों में तो प्राक़तिक कारणों से जल संकट की स्थिति उत्‍पन्‍न हुई है, लेकिन अधिकांश भागों में जल संकट की समस्‍या मानव निर्मित ही है। पानी की उपलब्‍धता एवं गुणवत्‍ता के क्रम में विश्‍व के शीर्ष 100 देशों में भी भारत का नाम नहीं है।  अन्‍तर्राष्‍ट्रीय जल प्रबंधन संस्‍थान का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत में अधिकांश नदियों में जल की मात्रा में अत्‍यधिक कमी हो जायेगी और जल संकट भीषण रूप ले लेगा।


भारत में जल संकट के कारण

उपरोक्‍त परिस्थितियों को देखते हुए यह प्रश्‍न उठता है कि भारत में जल संकट की यह स्थिति किन कारणों से उत्‍पन्‍न हुई है। इसके एक नहीं अनेक कारण हैं, ये कारण प्राकृतिक भी हैं और मानव निर्मित भी, हालांकि अधिकांश कारण मानव निर्मित ही हैं। ये कारण इस प्रकार हैं- 

1. सूखा पडना जल संकट का प्रमुख कारण है। सूखा पडना कोई दैवीय प्रकोप नहीं एक सामान्‍य भौगोलिक घटना है और जलवायु का एक गुण है। सूखा कई तरह का हो सकता है। इसमें मुख्‍य जलवायविक सूखा है जो तब पडता है जब औसत से कम वर्षा की अवधि लम्‍बी हो जाती है। यही जलववायविक सूखा अन्‍य प्रकार के सूखे का कारण बनता है।

2. बढती हुई जनसंख्‍या जलसंकट का एक प्रमुख कारण है। जिस दर से भारत की जनसंख्‍या बढ रही है, उसे देखते हुए हम जल्‍दी ही चीन को पछाडकर शीर्ष पर पहुँच जायेंगे। सभी के लिये पेयजल की व्‍यवस्‍था करना हमारे लिये एक गम्‍भीर चुनौती होगी। 

3. भारत में कृषि कार्यों में जल का अनियंत्रित तरीके से उपयोग हो रहा है। हरित क्रान्ति के पश्‍चात तो सिंचाई के लिए भूमिजल का उपयोग तेजी से बढा है। पंजाब तथा हरियाणा जैसे राज्‍यों में सिंचाई के लिए अन्‍धाधुन्‍ध ट्यूबवेल लगाये गये जिससे वहां भूजल स्‍तर तेजी से घटा है। भारत में कृषि कार्यो में लगभग 70 प्रतिशत जल का इस्‍तेमाल किया जा रहा है। यह प्रतिशत और तेजी से बढता जा रहा है। 

4. घरों में दिन प्रतिदिन के उपयोग में पानी का अनियंत्रित तरीके से इस्‍तेमाल किया जाता है। यदि हम ब्रश करते समय या शेव बनाते समय नल खुला छोड दें तो लगभग 25 लीटर पानी बर्बाद होता है। आधुनिक जीवन शैली के कारण भी पानी की बर्बादी बढ गयी है। टायलेट का फ्लश एक बार चलाने पर 15 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। घरों तथा क्‍लबों में बने हुए तरण तालों में हजारों गैलन पानी इस्‍तेमाल होता है।

5. जल प्रबंधन के अभाव में भी पानी की बहुत बर्बादी होती है। केवल देश के महानगरों में ही पाइपलाइनों की खराबी के कारण प्रतिदिन लगभग 20 से 40 प्रतिशत पानी बेकार बह जाता है। 

6. जल प्रदूषण के कारण भी जल संकट बढा है। अधिकांश व्‍यक्तियों को स्‍वच्‍छ जल उपलब्‍ध नहीं है। भारत में औद्योगिकीकरण के कारण अधिकांश नदियों का जल प्रदूषित हो चुका है।  

7. भारत में शीतल पेय तथा मिनल वाटर कंपनियों का कारोबार बढ्ता जा रहा है। लोगों में ऐसा भ्रामक प्रचार किया जा रहा है कि बोतलबंद पानी ही सबसे शुद्ध होता है। इस कारण बोतलबंद पानी की खपत बढी है और ये कंपनियां अपने उत्‍पादों के लिये भूजल का अंधाधुंध दोहन कर रही हैं। 

8. विभिन्‍न राज्‍यों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर चल रहे विवाद भी जल संकट का कारण बन जाते हैं। इन विवादों का कोई ठोस हल न निकलने के कारण जनता जल संकट से प्रभावित होती है। तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी जल विवाद और दिल्‍ली एवं हरियाणा के बीच यमुना जल विवाद इसके प्रमुख उदाहरण हैं। 

9. पेयजल तथा जल संरक्षण संबंधी योजनाओं पर केन्‍द्र एवं राज्‍य सरकारों की ओर से शिथिलता भी जल संकट का प्रमुख कारण है। ऊर्जा तथा अन्‍य संसाधनों की भांति जल संसाधनों का भी देश के विकास में अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण योगदान रहता है, किन्‍तु फिर भी जल प्रबंध को अभी तक हमारे देश में एक गम्‍भीर मुद्दे के रूप में नहीं लिया गया है।


जल संकट के समाधान हेतु किये गये प्रयास

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में जल संकट की स्थिति अभी इतनी गम्‍भीर नहीं हुई है कि तुरन्‍त कोई खतरा हो, किन्‍तु समुचित उपाय न करने पर स्थिति खतरनाक हो सकती है। ऐसा नहीं है कि जलसंकट से उबरने के लिये कोई उपाय नहीं किये गये हैं। किन्‍तु ये उपाय पर्याप्‍त नहीं हैं, खासकर सरकारी स्‍तर पर किये गये प्रयासों में प्रतिबद्धता का अभाव दिखाई देता है। 

यदि सरकारी प्रयासों की बात करें तो केन्‍द्र सरकार में एक पृथक जल संसाधन मंत्रालय है जिसके अन्‍तर्गत केन्‍द्रीय भूजल बोर्ड, राष्‍ट्रीय जल आयोग, राष्‍ट्रीय बाढ आयोग जैसी संस्‍थायें कार्य कर रही हैं। किन्‍तु इन संस्‍थाओं का कार्य मुख्‍यत: मंत्रालय को परामर्श देना ही है। 

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2002 में राष्‍ट्रीय जल नीति भी निर्धारित की गयी जिसमें यह कहा गया है कि भारत के सभी जल स्रोतों का विकास एवं प्रबंधन समेकित रूप में किया जायेगा। इस जल नीति में सबके लिए पेयजल की व्‍यवस्‍था को सर्वोच्‍च्‍ा प्राथमिकता दी गई। इस जल नीति को वर्ष 2012 में संशोधित करने की बात भी चल रही है। इसके अलावा राष्‍ट्रीय जल ग्रिड परियोजना पर भी काम चल रहा है। किन्‍तु जल नीति को कुशलतापूर्वक और तेजी से लागू करने में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। इसके पीछे वैज्ञानिकों एवं पर्यावरणविदों की आशंकाएं, पानी को लेकर वोटों की राजनीति, स्‍वयं सरकार की शिथिलता आदि कारण रहे हैं। 

जल प्रदूषण से निपटने के लिये प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी निगरानी तंत्र के रूप में कार्य कर रहे हैं, किन्‍तु इनका अपवादस्‍वरूप कुछ सफलताओ को छोडकर इनका कार्य भी अधिकांशत: कागजी स्‍तर तक ही सिमटा हुआ है।  

सरकारी प्रयासों के अलावा देश में कई गैर सरकारी संगठन, स्‍वयं सहायता समूह आदि भी जल प्रबंधन की दिशा में अच्‍छा कार्य कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, राजस्‍थान के राजेन्‍द्र सिंह, जिन्‍हें वाटरमैन के नाम से भी जाना जाता है और जिन्‍हें सामुदायिक नेतृत्‍व के लिए मैग्‍सेसे पुरस्‍कार भी मिल चुका है, 'तरुण भारत संघ' नाम का गैर सरकारी संगठन चलाकर वर्षाजल संचयन के क्षेत्र में राजस्‍थान में अभूतपूर्व कार्य कर रहे हैं। 

इस क्षेत्र में प्रसिद्ध समाजसेवी अन्‍ना हजारे के योगदान को विस्‍मृत नहीं किया जा सकता। उन्‍होंने महाराष्‍ट्र के रालेगणसिद्धि गांव में छोटे-छोटे बांध बनाकर जलसंकट की समस्‍या से लोगों को छुटकारा दिलाया और इसे एक आदर्श गांव का रूप दिया। वर्ष 1975 से अब तक वह महाराष्‍ट्र के लगभग 70 सूखाग्रस्‍त गांवों की सहायता कर चुके हैं। 

इन महानुभावों के अलावा भी देश में कई कार्यकर्ता और छोटे-बडे संगठन हैं जो अपनी सामर्थ्‍य सीमा के अनुसार जलसंकट से निपटने के उपायों में अपना योगदान कर रहे हैं।
जल संकट से निपटने के प्रभावी उपाय

जल संकट से निपटने को अभी हमारे देश में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हमें जल संकट से निपटने के लिए दूरदर्शी और दीर्घकालीन उपाय करने होंगे क्‍योंकि यह समस्‍या भविष्‍य में और बढने वाली है। ऐसे ही कुछ प्रमुख उपाय निम्‍नप्रकार हैं-

1. सर्वप्रथम कृषि में हो रहे जल के उपयोग को नियंत्रित करने की आवश्‍यकता है। इसके लिए सिंचाई के आधुनिक तरीकों का इस्‍तेमाल करना होगा और साथ ही फसलों के चयन में भी आवश्‍यकतानुसार बदलाव करने होंगे।

2. जल संचय हेतु गांवों एवं शहरों में ठोस योजना बनायी जानी चाहिये। बडे रिहायशी भवनों तथा व्‍यावसायिक भवनों में वर्षाजल संचयन प्रणाली अनिवार्य कर दी जानी चाहिये और इसका सख्‍ती से पालन किया जाना चाहिये।

3. अन्‍धाधुन्‍ध लगने वाले ट्यूबवेलों और सबमर्सिबल पम्‍प पर रोक लगनी चाहिये तथा इसके लिये सजा का प्राविधान भी होना चाहिये। 

4. नदियों की सफाई योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिये और नदियों को गंदा करने वाले उद्योगों के विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिये।

5. व्‍यक्तिगत स्‍तर पर भी हम जल की बर्बादी को रोकने के लिये बहुत कुछ कर सकते हैं। हमें दिन प्रतिदिन के उपयोग में पानी किफायत से खर्च करना चाहिये। घरों में पानी की इस तरह व्‍यवस्‍था हो कि टॉयलेट के फ्लश इत्‍यादि में रिसाइकिल्‍ड पानी का इस्‍तेमाल किया जाये। हाथ व बर्तन इत्‍यादि धोने में इस्‍तेमाल किये गये पानी का उपयोग हम पौधों की सिंचाई जैसे कार्यों में कर सकते हैं।

6. तेजी से बढती जनसंख्‍या को नियंत्रित कर हम पेयजल की बढती मांग और भूजल के अधिक दोहन को नियंत्रित कर सकते हैं।  

7. जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि हमारे देश में पानी की पाइपलाइनों की खराबी के कारण बहुत सा पानी बर्बाद हो जाता है। अत: वाटर पाइपलाइन नेटवर्क को दुरुस्‍त रखा जाना चाहिये और लापरवाही होने पर संबंधित अधिकारी को दण्डित किया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्‍त पानी के कनेक्‍शन के बिलों का भुगतान उपभोग की गई जलर‍ाशि के आधार पर किया जाना चाहिये।

8. सर्वप्रथम जल बंटवारे को लेकर विभिन्‍न राज्‍यों के बीच दशकों से विवाद चल रहे हैं। यही नहीं, पडोसी देशों के साथ भी जल बंटवारे को लेकर भारत के कई विवाद चल रहे हैं। इन विवादों का व्‍यावहारिक हल निकाले जाने की आवश्‍यकता है ताकि विवाद के कारण प्रभावित क्षेत्रों को राहत मिल सके।

9. विश्‍व में जल के सबसे बडे स्रोत समुद्र हैं किन्‍तु विडम्‍बना यह है कि इनका जल मनुष्‍य के उपयोग लायक नहीं है। दु:खद बात यह है कि हम वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के बारे में तो तमाम खोजें कर रहे हैं किन्‍तु समुद्री जल का शोधन करने की किफायती तकनीक अभी तक नहीं खोज पाये हैं। इस दिशा में अनुसंधान किये जाने की आवश्‍यकता है ताकि समुद्र जल का उपयोग मानव जीवन में विभिन्‍न कार्यों में किया जा सके। किन्‍तु यह ध्‍यान रखना होगा कि समुद्र जल के शोधन की ऐसी तकनीक पर्यावरण के लिए हानिकारी न हो। 


यदि उपरोक्‍त उपायों पर प्रभावी तरीके से अमल किया जाये तो जलसंकट से निपटा सकता है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि अगला विश्‍व युद्ध पानी के लिए हो सकता है। सम्‍भवत: तत्‍कालीन परिस्थितियों में उनका यह वक्‍तव्‍य एक अतिशयोक्ति रहा हो, किन्‍तु उसमें भविष्‍य के खतरे की झलक अवश्‍य दिखाई देती है। अच्‍छा होगा कि हम समय रहते चेत जायें, वरना कुछ दशकों बाद शायद हमें चुल्‍लू भर पानी भी नसीब नहीं होगा।

4 टिप्‍पणियां:

S.N SHUKLA ने कहा…


सार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार.

कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen " की नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .

Akshaya Bhargava ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Akshaya Bhargava ने कहा…

This is very annotated judgment over the water and the judgment about how to save the water. I will follow it and share with others.

Water ATM India

Upchar India ने कहा…

https://www.upcharindia.in/2019/10/water-crisis-in-india.html