शुक्रवार, 30 नवंबर 2007

हास्य कविता

मानुष हों तो बसों इंग्लैंड में, गोरे मनुज जह कोऊ न कारे।
शीत दुपहरी सागर तट पे धुप चखों निज वस्त्र उतारे।
रात कटे क्लब डिस्को में अरु खेल विविध दिन के उजियारे।
मोटर पे निक्सो घर सों बुलडाग चलें संग पुँछ निकारे।


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