पुस्तक में ध्यानचन्द के जीवन के अनछुए पहलुओं को सामने लाया गया है और कई ऐसी घटनाओं का जिक्र भी किया गया है जिसके बारे में एक आम खेल प्रेमी को जानकारी नहीं हैा आज हम भले ही ध्यानचन्द के योगदान को भूल गये हों, लेकिन हॉकी में और भारतीय खेलों में ध्यानचन्द की क्या भूमिका थी, यह पूरी दुनिया को मालूम हैा हर खेल प्रेमी को यह पुस्तक अवश्य पढ्नी चाहिएा
पुस्तक में कुछ ऐसी घटनाएं दी गई हैं जिनसे हमें ध्यानचन्द जी के व्यक्तित्व, उनकी कर्मठता, द़ढ संकल्प का पता चलता हैा उनमें से कुछ घटनाओं का जिक्र यहां करना चाहूगा-
- बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि ध्यानचन्द के भाई रूप सिंह भी एक धाकड़ अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी खिलाडी थेा अमेरिका के खिलाफ भारत ने 24-1 के अन्तर से जीत का जो रिकार्ड बनाया था उसमें 8 गोल ध्यानचन्द ने और 2 गोल रूपसिंह ने किये थेा
- घरेलू हॉकी प्रतियोगिताओं में ध्यानचन्द और रूपसिंह सर्विसेज की टीम से खेलते थेा प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता और थियेटर कलाकार प़थ्वीराज कपूर जो ध्यानचन्द के बहुत बड़े फैन थे, एक बार गायक कुन्दलाल सहगल को ध्यानचन्द का एक मैच दिखाने ले गएा मध्यान्तर तक दोनों टीमें गोलरहित रहींा मध्यान्तर में प़थ्वीराज ने ध्यानचन्द से सहगल का परिचय कराया तो सहगल ने कहा, ''मैनें तो आपका काफी नाम सुन रखा था, लेकिन आप तो कोई गोल नहीं कर सकेा'' ध्यानचन्द कुछ कहते उससे पहले ही उनके भाई रूपसिंह ने कहा, ''ठीक है, दूसरे हॉफ में हम जितने गोल करेंगे, उतने ही गाने आप हमें मैच के बाद सुनाएंगेा'' सहगल राजी हो गयेा दूसरे हाफ में दोनों भाइयो ने मिलकर 12 गोल दागे- 8 गोल ध्यानचन्द ने और 4 गोल रूप सिंह नेा सहगल मैच खत्म्ा होने तक मैदान छोड् चुके थेा लेकिन वह अपना वायदा पूरा करने के लिए अगले दिन टीम से मिलने गयेा उन्होंने 12 की जगह 14 गाने सुनाये और प्रत्येक खिलाडी को एक- एक कलाई घड़ी भेंट कीा
- एक बार जब भारतीय हॉकी टीम आस्ट्रेलिया के दौरे पर गई तो वहां ध्यानचन्द की मुलाकात क्रिकेट के महान खिलाड़ी सर डॉन ब्रैडमैन से हुईा ब्रैडमैन ने छूटते ही उनसे कहा, ''आप तो हॉकी में ऐसे गोल बनाते हैं जैसे क्रिकेट में रन बनते हैंा''
- एक बार किसी औपचारिक समारोह के दौरान ध्यानचन्द की मुलाकात प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से हुईा उस समय ध्यानचन्द अपने कोट पर तमाम मेडल लगाये हुए थेा पंडित जी ने उनसे मजाक में कहा, ''एक आधा मेडल मुझे भी दे दीजिए ताकि मैं अपने कोट पर लगा सकूँा'' ध्यानचन्दजी ने तपाक से उत्तर दिया, ''पंडितजी, आप पर तो लाल गुलाब ही फबता हैा''
- ध्यानचन्द रिटायरमेन्ट के बाद अपने बेटे अशोक कुमार को हॉकी खिलाडी नहीं बनाना चाहते थे क्योंकि वह देश में हाकी की गिरती हुई स्थिति और हाकी खिलाडियों की दुर्दशा से बहुत चिंतित थेा लेकिन अशोक कुमार भी अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए एक बेहतरीन अन्तर्राष्ट्रीय हाकी खिलाडी बनेा
हर खेल प्रेमी को इस पुस्तक को जरूर पढ्ना चाहिएा इससे हम न केवल ध्यानचन्द के बारे में और अधिक जान पायेंगे बल्कि हमारे मन में हॉकी के प्रति भी सम्मान पैदा होगाा
3 टिप्पणियां:
ऐसे खिलाड़ी विरले ही होते हैं। आदर्श हैं ये। प्रेनास्रोत हैं।
इस उम्दा लेख के लिए आपका आभार।
वाह, ध्यानचन्द जी के जीवन की बड़ी मजेदार औ प्रेरक घटनाओं का जिक्र किया है आपनेा पुस्तक के लेखक निकेत भूषण जी को और इस पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद
इस देश के खेल-रत्न ध्यानचंद के बारे में जानकार अच्छा लगा | बहुत धन्यवाद , घनश्याम भाई |
एक गुजारिश वर्ड वेरिफिकेशन को हटाने की है , हटायेंगे तो कमेन्ट करने में सुविधा रहेगी | पाठक संख्या भी बढ़ेगी |
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