बुधवार, 20 अप्रैल 2011

बाल श्रम

आज ही समाचार पत्र में खबर पढ़ी कि सुप्रीम कोर्ट ने बच्‍चों के कल्‍याण को ध्‍यान में रखते हुए सर्कस में बच्‍चों के काम करने पर रोक लगा दी है। यह अच्‍छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने बच्‍चों के हित को ध्‍यान में रखकर यह निर्णय सुनाया है। लेकिन क्‍या बाल श्रम केवल सर्कस में ही सीमित है आजकल सर्कस वैसे ही दम तोड़ रहे हैं। पूरे देश में जितने सर्कस चल रहे हैं और जितने बच्‍चे उनमें काम कर रहे हैं, उनकी कुल संख्‍या उतनी भी नहीं होगी जितनी एक शहर के होटल-ढाबों में काम करने वाले बाल श्रमिकों की होती है। किसी भी सड़क पर निकल जाइये, किसी ठेले पर, ढाबे या चाय की दुकान पर आपको गन्‍दे कपडों में लिपटा मासूम बचपन बर्तन धोते और ग्राहकों को चाय-पानी परोसते नजर आ जायेगा। इसके अलावा जो बच्‍चे परिस्थितियों से मजबूर होकर या अरुचि के कारण स्‍वयं पढाई छोड़कर काम धन्‍धे में लग जाते हैं, जैसे बूट पालिश करना, पेपर बेचना वगैरह, उन्‍हें किस श्रेणी में रखा जायेगा? यही नहीं, आजकल टीवी पर जो रियलिटी शो की बहार आई हुई है, उसकी चकाचौंध में बच्‍चे गुमराह हो रहे हैं और उनके अभिभावक भी पैसों के लालच में आकर उन्‍हें ऐसे शो में भेज रहे हैं और उनपर अनावश्‍यक दबाव बना रहे हैं। अभी साल भर पहले ही एक गायन शो में जजों के डांटने के कारण एक बच्‍ची की आवाज तक चली गई थी। क्‍या इसे बाल श्रम नहीं कहा जा सकता?

आज कल बदलती परिस्थितियों के मददेनजर आवश्‍यकता है कि बाल श्रम को नये ढंग से परिभाषित करते हुए बाल श्रम कानूनों में आवश्‍यक संशोधन किया जाय।

4 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Baal shram ko naye taur se paribhashit karna nihayat zarooree hai!

aarkay ने कहा…

achhi khabar hai. rok lagni hi chahiye. karan koi bhi ho, bachchon se unka bachpan cheenane ka kisi ko koi adhikar nahin !

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

आपकी बातों से पूर्ण सहमति।

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भगवान के अवतारों से बचिए...
जीवन के निचोड़ से बनते हैं फ़लसफे़।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सही बात ...सहमत हूँ आपसे