अभी पिछले कुछ दिनों से निर्मल बाबा का प्रकरण टीवी और अखबारों में देख रहा हूँ। इस प्रकार के बाबाओं के तमाम कार्यक्रम टी0वी0 पर आते रहते हैं लेकिन मेरी उनमें कभी रुचि नहीं रही, हालांकि मैं एक आस्तिक हूँ। दरअसल जो कुछ हो रहा है, उसके लिए हम लोग ही जिम्मेदार हैं। इतने घोटाले, इतने बाबाओं के प्रपंच से पर्दा उठने के बाद भी हम बार-बार बाबाओं के पास जाते हैं। निर्मल बाबा की अकूत सम्पत्ति को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे देश की जनता के पास धन की कमी नहीं, लेकिन उसका सही उपयोग करना उसे नहीं आता। लोग नाना प्रकारों से प्रलोभन देकर, सब्जबाग दिखाकर हमें लूटते रहते हैं और हम लुटते रहते हैं। हम शायद अपने गरीब लाचार पडोसी को पॉंच सौ रुपये देने से पहले कई बार सोचेंगे, लेकिन किसी बाबा के नाम पर दो हजार देने से नहीं हिचकेंगे। यही नहीं, हम अंधविश्वास के नाम पर अपनी संतान की बलि तक चढाने के लिये तैयार हो जायेंगे।
आज का युग विज्ञान का युग है, तार्किकता का युग है। हालांकि विज्ञान के साथ धर्म की सदैव समाज में उपस्थिति रही है, लेकिन आंख मूंदकर भी तो किसी चीज पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इस सम्बन्ध में महात्मा बुद्ध के वचनों को आदर्श बनाना चाहिये जब उन्होंने कहा था कि मैं या कोई और जो कुछ भी कहता है, उस पर आंख मूंदकर विश्वास मत करो। उनके कथन 'अत्त दीपो भव' यानी 'अपना दीपक स्वयं बनो' - को आज शत प्रतिशत अपनाने की आवश्यकता है।