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बुधवार, 26 जनवरी 2011

रंगीन होता जा रहा है गणतंत्र दिवस

आज 26 जनवरी है और हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी पूरे देश में गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। वैसे तो राष्‍ट्रप्रेम का प्रदर्शन करने के लिए किसी विशेष दिवस की आवश्‍यकता नहीं होती, लेकिन गणतंत्र दिवस और स्‍वतंत्रता दिवस को मनाने का आनन्‍द ही अलग होता हैा इन दिनों की अनुभूति भी साधारण दिनों से अलग होती है। सामान्‍यतया मैं इस दिन अपने कार्यालय के समारोह में भाग लेने जाता हूँ। यदि किसी वर्ष नहीं जा पाता तो अपने घर के आस-पास के इलाकों में घूमकर स्‍कूल-कालेजों और विभिन्‍न संस्‍थानों, छुटभैये नेताओं के समारोहों में लहरा रहे तिरंगों और लाउडस्‍पीकर पर बह  रही देशभक्ति की स्‍वर लहरी में ही सराबोर होकर आनन्‍द प्राप्‍त कर लेता हूँ। आज भी कुछ ऐसा ही किया। कार्यालय नहीं जा सका तो सोचा मोहल्‍ले और आस पास के इलाकों में घूमकर ही गणतंत्र दिवस का रंग-ढंग देखा जाये। मैं पैदल ही घर से‍ निकलकर टहलने के मूड में था लेकिन मेरे तीन वर्षीय बेटे ने तुरन्‍त भांप लिया कि मैं बाहर जा रहा हूँ तो उसने जिद की कि मैं बाइक से उसे घुमाने ले चलूँ। सो मैनें गाड़ी निकाली और उसे लेकर घूमने निकल पडा। बाहर निकलकर देखा तो कुछ सन्‍नाटा सा दिखाई दिया। कुछ स्‍कूली बच्‍चे झण्‍डा लिये नजर आये, कुछ एक जगहों पर स्‍थानीय बुजुर्ग नेता या युवकों की टोली किसी पार्क में झण्‍डारोहण करती दिखाई दी किन्‍तु देशप्रेम का संगीत कुछ कम ही सुनाई दिया। ज्‍यादातर जगहों पर आजकल की फिल्‍मों के फूहड गाने बज रहे थे। हद तो तब हो गई जब मैनें मोहल्‍ले के बाहर निकलने वाली सडक पर पहुँचते ही वह कुत्सित दृश्‍य देखा। सडक के किनारे ही एक राजनीतिक पार्टी का स्‍थानीय कार्यालय था। कार्यालय के सामने खुले मैदान में कई तख्‍तों को जोड़कर एक मंच बना था जिस पर एक बाला अश्‍लील फिल्‍मी गानों पर ऩृत्‍य कर रही थी। कार्यक्रम स्‍थल उस राजनीतिक पार्टी के बैनरों से पटा पड़ा था और कागज के कुछ एक राष्‍ट्रीय झण्‍डे भी वहां लगे हुए थे। उस कार्यक्रम को देखने के लिए वहां भीड़ जमा थी जिसमें बच्‍च्‍ो, बूढे और औरतें भी जमा थीं और आयु, लिंग, नैतिकता आदि का ध्‍यान भुलाकर सब मजे से उस नृत्‍य का आनन्‍द ले रहे थे। यहां तक कि सड़क से गुजरने के लिए मुझे अपने बाइक के हॉर्न का बटन लगातार दबाये रखना पडा। इसके बाद मेरी कहीं और घूमने की इच्‍छा नहीं हुई और मैं वापस घर आ गया।

हर वर्ष मेरी यह अनुभूति और गहन होती जाती है कि इस बार राष्‍ट्रीय पर्व पर माहौल कुछ फीका सा है। दरअसल यह मेरी नजर का कसूर है। समारोह तो आजकल किसी न किसी तरह रंगीन बना ही दिये जाते हैं , भले ही उस रंगीनी का समारोह से कोई संबंध हो या न हो।