इन दिनों साहित्य और कला जगत की हस्तियों का हमसे बिछडना लगातार जारी है। गजल सम्राट जगजीत सिंह और असमिया संगीत के पुरोधा भूपेन हजारिका की असामयिक मौत से लोग उबरे भी न थे कि आज असमिया साहित्यकार ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता इन्दिरा गोस्वामी की मौत्ा की खबर ने हिलाकर रख दिया। इन्दिरा गोस्वामी न सिर्फ एक श्रेष्ठ साहित्यकार थीं बल्कि असम में शान्ति स्थापना की प्रयास में भी उनका योगदान रहा था। उल्फा को बातचीत के लिए राजी करने में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी। ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने पर उनकी विभिन्न रचनाओं के हिन्दी अनुवाद कई पत्र-पत्रिकाओं में छपे थे (जैसा कि किसी भी साहित्यकार के साथ होता है तब उसे कोई बडा पुरस्कार मिलता है) जिन्हें पढ़कर मैं उनसे बहुत प्रभावित हुआ था। अब जबकि वह हमसे दूर चली गई हैं, मुझे उनके साहित्य को खंगालने की उत्सुकता बढ़ गई है। ऐसा क्यों होता है कि हम किसी के जाने के बाद ही उसकी कमी महसूस करते हैं और उसके व्यक्तित्व और कृतित्व को अन्दर-बाहर से जानने का प्रयास करने लगते हैं ?
खैर, इंदिरा जी को मेरी ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि।