आखिरकार सरबजीत जिन्दगी की जंग हार गया। दो देशों की सरकारों की रस्साकशी के बीच एक आम आदमी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। यह कोई नई बात नहीं है और न ही चौंकाने वाली बात है। शान्ति काल हो या युद्ध का समय, विभिन्न देशों की आपसी तनातनी के बीच मरती तो आम जनता ही है। ऐसा केवल भारत या पाकिस्तान के बीच ही नहीं हुआ है, बल्कि एक दूसरे से स्थलीय या जलीय सीमा से जुड़े देशों में यह समस्या आम है, जब एक देश का नागरिक दूसरे देश की सीमा में दाखिल होता हुआ पकड़ा गया है। कई मामलों में तो सीमांकन अस्पष्ट होने के कारण गलती करने वाले को यह पता नहीं होता कि वह दूसरे देश की सीमा में अतिक्रमण कर रहा है। किन्तु वह सहज रूप से ही पड़ोसी देश का जासूस मान लिया जाता है। सरबजीत की घटना देख सुनकर बरसों पहले पढ़ी भीष्म साहनी की कहानी 'वांगचू' की याद ताजा हो गई जिसमें कहानी का नायक एक चीनी युवक है जो बुद्ध प्रेम के वशीभूत होकर भारत घूमने आता है और भारतीय सरकार की नजरों में चीन का जासूस समझा जाता है। वापस चीन लौटने पर वह भारत से 'ब्रेन वाश' करके भेजा गया चीनी माना जाता है।
ऐसे एक नहीं सैकड़ों - हजारों उदाहरण दुनिया के दो देशों के बीच देखने को मिल जायेंगे। जरूरत तो यह है कि इस मामले में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश मिलकर एक निर्धारित प्रक्रिया तय करें जिसके अन्तर्गत मानवतावतादी दृष्टिकोण अपनाते हुए भटके हुए व्यक्ति को वापस उसके देश भेज दिया जाये। जब तक व्यक्ति का जुर्म साबित नहीं हो जाता, उसे अपराधी नहीं समझा जाना चाहिये। इस वक्त जबकि मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ, न जाने कितने 'सरबजीत' दुनिया के कई देशों के कैदखानों में पड़े हुए अपने घर -परिवार की याद में वक्त गुजार रहे होंगे।