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सोमवार, 17 अक्टूबर 2011

शिक्षा का तमाशा बन रहा है उत्‍तर प्रदेश में

उत्‍तर प्रदेश में शिक्षा के नाम पर जो खेल-तमाशा हो रहा है, उसे देखकर कोई ताज्‍जुब नहीं कि उत्‍त्‍ार प्रदेश क्‍यों शिक्षा के मानकों में पिछड़ा हुआ है। अभी हाल ही में प्रदेश के शिक्षा मंत्री पर लोकायुक्‍त की जो रिपार्ट आई है, उससे भी इस बात की पुष्टि होती है। चाहे प्राथमिक शिक्षा हो, माध्‍यमिक शिक्षा या उच्‍च शिक्षा, सभी का हाल बुरा है। प्राथमि‍क शिक्षा की बात करें तो प्रदेश के सरकारी विद्यालयों का हाल बहुत बुरा है। पढाई की बात तो छोडि़ए, कई जगहों पर तो ढंग की इमारत भी नसीब नहीं है। शिक्षक और स्‍टाफ मर्जी के मालिक बने हुए हैं। शिक्षा के नाम पर जारी होने वाला फण्‍ड भ्रष्‍टाचार के कुऍं में चला जाता है। प्राथमिक कक्षाओं के अध्‍यापकों हेतु बीटीसी की भर्ती 2001 के बाद अभी तक नहीं हुई है। वहीं दूसरी ओर प्रदेश भर में बी0एड0 कराने का धन्‍धा खूब फल-फूल रहा है। तमाम शिक्षण संस्‍थायें कुकुरमुत्‍ते की तरह उग आयी हैं जो मोटी फीस लेकर बी0एड0 की डिग्री दे रही हैं। अभिभावकों द्वारा उत्‍पीड़न की तमाम शिकायतें किये जाने के बावजूद सरकार के कानों में कोई जूं नहीं रेंग रही है। भारत सरकार द्वारा टी0ई0टी0 संबंधी आदेश जारी करने के बाद प्रदेश में जिस हंसी खिलवाड़ के साथ टी0ई0टी0 को लागू करने की प्रक्रिया हो रही है वह काफी बचकाना, मूर्खतापूर्ण अथवा वोट की राजनीति से प्रेरित लगता है। टी0ई0टी0 में जहां बी0एड0 योग्‍यताधारकों को शामिल किया गया है वहीं बी0पी0एड0 योग्‍यता धारकों को शामिल नहीं किया गया है, उर्दू  मोअल्लिम डिग्रीधारकों को शामिल किया गया है, लेकिन संस्‍कृत को नहीं शामिल किया गया है। यह बिल्‍कुल न हजम होने वाली बात है। इतना ही नहीं, सचिव, उ0प्र0 शासन का पत्रांक 1828(1) 15-11-2011 जो टी0ई0टी0 के संबंध में है, यदि उस पर गौर किया जाये तो टी0ई0टी0 के प्रश्‍नपत्र के प्रारूप के संबंध में विरोधाभासी बातें दी हुई हैं। पत्र के अनुसार प्राथमिक कक्षाओं और माध्‍यमिक कक्षाओं के स्‍तर के हिसाब से दो प्रकार के प्रश्‍नपत्र होंगे जिनके प्रश्‍न उन्‍हीं कक्षाओं के स्‍तर के होंगे। अन्‍त में यह लिखा गया है कि प्रश्‍नपत्रों के प्रश्‍न इण्‍टरमीडियट के स्‍तर के होंगे। अब कोई शिक्षा विभाग के नौकरशाहों से पूछे कि ऐसे निर्देश का क्‍या मतलब निकलता है।  इसके अलावा, अभी कुछ दिन पूर्व ही बिना समुचित प्रक्रिया के इण्‍टर कालेजो में शिक्षकों की भर्ती किये जाने का घोटाला लखनऊ में अखबारों की सुर्खियां बना रहा।  शिक्षकों के पद भरे नहीं जा रहे, खरीदे और बेचे जा रहे हैं। लाखों रुपये रिश्‍वत में देकर शिक्षक पद पर नौकरी पाने वाला व्‍यक्ति अपने छात्रों का कितना भला करेगा और अपना कितना भला सोचेगा, यह आप और हम खूब समझते हैं।

उच्‍च शिक्षा का हाल भी कुछ अच्‍छा नहीं है। एक ओर तो मानकों को ताक पर रखकर डिग्री कालेजों को मान्‍यता दी जा रही है। वहीं दूसरी ओर प्रदेश के विभिन्‍न सरकारी डिग्री कालेजों में शिक्षकों के तमाम पद खाली पड़े हुए हैं। इन रिक्तियों को भरने का जिम्‍मा उ0प्र0 उच्‍चतर शिक्षा सेवा आयोग का है। आयोग द्वारा वर्ष 2008 एवं 2009 में क्रमश: प्राचार्य पदों एवं प्रवक्‍ताओं के पदों को भरने के लिए विज्ञापन प्रकाशित किये गये थे। किन्‍तु इन विज्ञापनों के अनुक्रम में आज तक परीक्षाएं आयोजित नहीं की गई हैं। सितम्‍बर'2011 में यकायक अर्थशास्‍त्र और व‍ाणिज्‍य विषय के प्रवक्‍ता पदों की परीक्षा लिये जाने संबंधी सूचना प्रकाशित की गई और परीक्षार्थियों को प्रवेशपत्र भी भेज दिये गये। किन्‍तु कुछ दिन बाद ही शासन का स्‍थगन आदेश आ गया। इन सबसे यह संदेह और पक्‍का होता है कि दूसरे तमाम वि भागों की तरह शिक्षा विभाग में भी भ्रष्‍टाचार का नंगा नाच हो रहा है।

शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे दूषित माहौल के चलते योग्‍य एवं प्रतिभावान अभ्‍यर्थियों के मन में कुण्‍ठा एवं हीन भावना पनप रही है और वे अच्‍छी डिग्रियां होने के बावजूद छोटी मोटी नौकरियां करने पर मजबूर हैं, जो न सिर्फ उनकी प्रतिभा एवं योग्‍यता का अपमान है, बल्कि इससे बेरोजगारी का एक स्‍वरूप यानी अर्द्धबेरोजगारी भी बढ़ रही है अर्थात् किसी अभ्‍यर्थी को उसकी योग्‍यता से कम स्‍तर का रोजगार मिलने की समस्‍या निरन्‍तर बढ़ती जा रही है।