बुधवार, 6 अप्रैल 2011

भुवनेश्वर की कालजयी कहानी 'भेड़िये'

'भारतीय रेल' पत्रिका का फरवरी २०११ का अंक पढ़ रहा था कि उसमे भुवनेश्वर की कालजयी कहानी 'भेड़िये' प्रकाशित हुई थी. इस कहानी से याद आया कि वर्ष  २०१० हिंदी के उपेक्षित साहित्यकार भुवनेश्वर प्रसाद की जन्म शती थी. किन्तु कुछ एक प्रमुख आयोजनों को छोड़ कर हिंदी साहित्य जगत में भुवनेश्वर को लेकर कोई विशेष हलचल नहीं रही. इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी भुवनेश्वर का उपेक्षित रहना शायद यह दर्शाता है कि साहित्यकार का मूल्याङ्कन उसके द्वारा सृजित साहित्य के परिमाण अथवा उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि या किसी खेमेबाजी के आधार पर ही किया जाता है. शायद हिंदी साहित्य में भुवनेश्वर के स्थान का निर्धारण होना अभी बाकी है.

भुवनेश्वर का जन्म १९१० में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था.  एक प्रतिष्ठित वकील का पुत्र होने के बावजूद उनका जीवन अर्थाभाव में बीता. संभवतः  सन १९५५ में गुमनामी में ही उनकी मृत्यु हुई.

भुवनेश्वर को हिंदी एकांकी का जनक माना  जाता है. उनका पहला एकांकी संग्रह 'कारवां' था. 'ऊसर' तथा 'ताम्बे के कीड़े' उनके अन्य प्रसिद्ध नाटक हैं. किन्तु उन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि  मिली अपनी कालजयी कहानी 'भेड़िये' के लिए.  हिंदी के तमाम कहानीकारों और आलोचकों ने, जिनमे नामवर सिंह जी भी शामिल हैं, इसे उनकी मौलिक कहानी माना ही नहीं और एक अरसे तक यह विश्वास किया जाता रहा कि यह किसी विदेशी कहानी का अनुवाद है.  शायद  इसका एक कारण यह भी रहा हो कि भुवनेश्वर जी को अंग्रेज़ी साहित्य का अच्छा ज्ञान था. उन्होंने प्रेमचंद की कई कहानियों का अंग्रेज़ी में अनुवाद भी किया था. किन्तु बाद में अनेक साहित्यकारों ने पहल  करते हुए इसे नयी कहानी की दिशा में पहली कहानी बताया और 'हंस' पत्रिका में तो वर्ष १९९१ के मई अंक में इस कहानी को प्रकाशित भी किया गया. जिस प्रकार गुलेरी जी अपनी कहानी 'उसने कहा था' से अमर हो गए और सरदार पूर्ण सिंह केवल छः निबंध लिखकर ही श्रेष्ठ निबंधकारों में गिने गए, वैसे ही भुवनेश्वर जी भी इस कहानी को लिखकर हिंदी साहित्य में सदा के लिए अमर हो गए हैं.

'भेड़िये' कहानी मेरी पसंदीदा कहानियों में से एक रही है. मैं इस पोस्ट में कहानी को डालना चाहता था किन्तु मैंने पाया कि इन्टरनेट पर पहले से ही यह कहानी मौजूद है. सो अनावश्यक रूप से दोहराव  करना उचित नहीं है. इस कहानी को पढने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें -

http://ut-patrika.blogspot.com/2008/09/blog-post_1661.html  


3 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब ....प्रभावित हूँ आपके ब्लॉग से !! आपका स्वागत है

ZEAL ने कहा…

दिए गए लिंक पर जाकर कहानी पढ़ी , निश्चय ही विचारणीय है। आभार इसे पढवाने का।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

घनश्‍याम जी, इस कहानी के लिए शुक्रिया।

आरडीएसओ में मेरे मित्र संजीव जायसवाल जी भी हैं, उनका भी ब्‍लॉग बनवाइए।

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प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्‍यादा खतरनाक है ?