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शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

पठान का सबक

एक बार एक अंग्रेज और एक पठान रेलगाड़ी के एक ही डिब्‍बे में साथ साथ यात्रा कर रहे थे। अंग्रेज को पठान के साथ यात्रा करने में घृणा का अनुभव हो रहा था, किन्‍तु वह विवश था। जब पठान लघुशंका निवारण के लिए गया, तो अंग्रेज ने उसका बिस्‍तर चलती गाड़ी से फेंक दिया। जब पठान वापस आया तो उसका सामान नदारद था। उसने अंग्रेज से अपने सामान के बारे में पूछा। अंग्रेज ने उसकी खिल्‍ली उड़ाते हुए कहा, ''तुम्‍हारा सामान गाड़ी से बाहर टहलने गया है। अभी वापस आ जायेगा।'' पठान सारा माजरा समझ गया, पर वह बोला कुछ नहीं। कुछ देर बाद अंग्रेज सो गया। तब पठान ने उसका सूटकेस उठाकर गाड़ी से बाहर फेंक दिया। कुछ समय बाद जब अंग्रेज की नींद खुली, तो उसने अपना सूटकेस न पाकर पठान से पूछा, ''मेरा सूटकेस कहॉं है  पठान ने उत्‍तर दिया, ''तुम्‍हारा सूटकेस मेरा बिस्‍तर लाने गया है।''

शनिवार, 18 जून 2011

भिखारी - गाय दी मोपासां की कहानी

गाय दी मोपासां - गूगल चित्र से साभार 

हेनरी रेने अल्‍बर्ट गाय दी मोपासां (5 August 1850 – 6 July 1893) 19वीं सदी के फ्रांसीसी उपन्‍यासकार, कहानीकार और कवि थे जिनकी गणना आधुनिक अंग्रेजी कहानी के प्रतिपादकों में की जाती है। वह निर्विवाद रूप से फ्रांस के सबसे महान कथाकार हैं।

इनकी प्रथम कहानी संग्रह ‘बाल ऑप फैट’ थी जिसके प्रकाशित होते ही ये प्रसिद्ध हो गए। 1880 से 1891 तक का समय इनके जीवन का सबसे महत्पूर्ण काल था। इन 11 वर्षों में मोपांसा के लगभग 300 कहानियाँ, 6 उपन्यास, 3 यात्रा संस्मरण एवं एक कविता संग्रह प्रकाशित हुए। युद्ध, कृषक जीवन, स्त्री पुरुष संबंध, आभिजात्य वर्ग और मनुष्य की भावनात्मक समस्याएँ मोपासां की रचनाओं की विषय-वस्तु बने। फ्रांसीसी साहित्‍यकार बाल्‍जाक का अनुसरण करते हुए मोपासां ने अतियथार्थवादी और अतिकाल्‍पनिक दोनों प्रकार की रचनायें लिखीं।

महान पाश्‍चात्‍य साहियकार गुस्‍ताव फ्लावर्ट के शिष्‍य मोपासां की कहानियों की खासियत उनकी मितभाषिता एवं सहज नाटकीय संरचना है। उनकी तमाम कहानियां 1870 के दशक के फ्रांस-जर्मनी युद्ध की पृष्‍ठभूमि में रची गई हैं जिनमें युद्ध की अनावश्‍यकता को रेखांकित किया गया है। 

मोपासां की कहानियों के कथानक बहुत चतुराई से रचे गये हैं। ओ0 हेनरी और विलियम समरसेट मॉघम जैसे लेखकों ने उन्‍हीं के कथानकों से प्रेरणा ली थी। मॉघम और हेनरी जेम्‍स ने उनकी कुछ कहानियों के कथानकों को तोड़-मरोड़कर अपनी कहानियों में शामिल भी किया है। 

यहॉं प्रस्‍तुत है मोपासां की कहानी ‘The Beggar’ का हिन्‍दी अनुवाद- 

गूगल चित्र से साभार


अपनी हालिया गरीबी और लाचारी के बावजूद उसने कभी अच्‍छा वक्‍त भी देखा था। 


पंद्रह साल की उम्र में वारविले हाईवे पर एक गाड़ी के नीचे आकर उसकी दोनों टांगें कुचल गयीं थीं। तब से वह सड़कों और खेतों के पास घिसटता चलता भीग मॉंगता फिरता था, अपनी बैसाखियों के सहारे, जिनके वजह से उसके कंधे उसके कानों तक पहुँचते थे। उसका सिर ऐसा दिखता था मानों दो धेलों के बीच में दबा दिया गया हो। 

ऑल सेन्‍ट्स डे की पूर्व संध्‍या में  एक खाई के किनारे एक परित्‍यक्‍त बालक के रूप में वह लेस बिलेट्स के पादरी को पड़ा मिला था, उन्‍होंने उसका नामकरण किया था - निकोलस टूसेन्‍ट, वह दान में दिये गये पैसों पर पलता था, बिल्‍कुल अनपढ़ था, और एक बार एक नानबाई ने उसे ब्राण्‍डी के कई गिलास पिला दिये थे जिसकी वजह से दुर्घटना में वह अपाहिज हो गया था, और उसके बाद पूरी जिन्‍दगी आवारा: भीख के लिए अपने हाथ फैलाने के सिवा उसे कोई दूसरा काम नहीं आता था। 

एक बार बैरोनेस दी एवारी ने उसे अपने घर से लगे हुए फार्म में बने मुर्गीखाने से सटी हुई घास-फूस से भरी एक खोह में सोने की इजाजत दे दी थी। बहुत जरूरत होने पर उसे रसोईघर से गिलास भर सेब की मदिरा और एक आध टुकड़ा रोटी का मिल जाता था। इसके अलावा, वह वृद्ध महिला अक्‍सर अपनी खिड़की से उसके लिए कुछ पैसे फेंक दिया करती थी। लेकिन अब उसका देहान्‍त हो चुका था। 

गॉंवों में लोग उसे कुछ नहीं देते थे - वह कुछ ज्‍यादा ही जाना-पहचाना था। चालीस बरसों से उसे रोज-ब-रोज लकड़ी की बैसाखियों पर चलते अपने टूटे-फूटे शरीर को दरवाजे-दरवाजे घसीटते हुए  देखते-देखते हर कोई तंग आ चुका था। लेकिन वह कहीं और जाने की हिम्‍मत नहीं कर सकता था, क्‍योंकि वह कस्‍बे के इस इलाके को, इन तीन-चार गांवों को, जहां उसने अपनी दु:ख भरी जिन्‍दगी गुजारी थी, छोड़कर कोई दूसरी जगह जानता ही न था। उसने अपनी भीख मांगने का काम सीमित कर रखा था, और वह किसी भी कीमत पर उन सरहदों से बाहर नहीं जा सकता था, जिनका वह आदी हो चुका था। 


वह तो यह भी नहीं जानता था कि उसकी नजर दूर तक जिन पेड़ों तक पहुँचती थी, उनके पार भी कोई दुनिया थी। वह अपने आप से कोई सवाल नहीं करता था। और जब खेतों या गलियों में हमेशा उसे पाकर किसान बोलते, ''हमेशा यहीं लंगड़ाते रहकर घूमने के बजाय तुम दूसरे गांवों में क्‍यों नहीं जाते?'', वह कोई उत्‍तर नहीं देता, बल्कि चुपके से निकल जाता था, एक अनजाने डर के साथ - डर एक गरीब निरीह प्राणी का, जो हजारों चीजों से डरता है - नये चेहरों से, तानों से, बेइज्‍जती से, अजनबी लोगों की शक भरी निगाहों से, और सड़कों पर चलने वाले पुलिस की टोलियों से। इनमें से आखिरी वालों से वह हमेशा बचकर रहता था, जब उन्‍हें आते देखता तो झाडि़यों या पत्‍थरों के ढेर के पीछे छिप जाता। 

जब वह उन्‍हें धूप में चमकती वर्दियों के साथ दूर से देखता, तो उसमें अचानक असाधारण फुर्ती आ जाती थी - अपनी मॉंद में छिपते हुए जंगली जानवर जैसी फुर्ती। वह अपनी बैसाखियां एक ओर फेंक देता, किसी ढीले गुदड़े की तरह जमीन पर गिर जाता, अपने आपको जितना हो सके सिकोड़ लेता, ऐसे दुबक जाता मानों कोई नग्‍न व्‍यक्ति अपने को ढंकता है, उसके फटे-पुराने कपड़े उसी जमीन के रंग में मिल जाते थे जिसमें वह दुबकता था। 


उसे पुलिस से कभी कोई दिक्‍कत पेश नहीं आई थी, लेकिन उनसे बचकर रहने की प्रवृत्ति उसके खून में भी। ऐसा लगता था जैसे यह आदत उसे अपने अनजान माता-पिता से विरासत में मिली थी। 

उसका कोई ठिकाना नहीं था, सिर पर कोई छत नहीं थी, किसी तरह का कोई आसरा नहीं था। गर्मियों में वह खुले में सोता था और सर्दियों में नजरें बचाकर खलिहानों और तबेलों में बड़ी होशियारी से छिप जाता था। उसकी मौजूदगी का पता चले, इससे पहले ही वह निकल जाता था। उसे उन सभी सेंध पता थे जिनसे होकर खेतों की इमारतों में घुसा जा सकता था और चूँकि बैसाखियां पकड़ते-पकड़ते उसकी बांहें काफी मजबूत हो गयीं थीं, वह कई बार केवल अपनी कलाइयों की ताकत से ही भूसे की टांड़ पर चढ़ जाता था, जहॉं वह कभी-कभी लगातार चार-पॉंच दिनों तक  पड़ा रहता था, बशर्ते उसके पास इतने दिनों के खाने का जुगाड़ होता। 

वह खेत के जानवरों की तरह जिन्‍दगी गुजारता था। वह इंसानों के बीच रहता था, लेकिन किसी को नहीं जानता था, किसी को प्‍यार नहीं करता था, केवल किसानों के दिलों में एक बेपरवाह हिकारत और द्वेष का कारण बना हुआ था। 


उन्‍होंने उसका नाम 'घण्‍टा' रख छोड़ा था क्‍योंकि वह अपनी दोनों बैसाखियों के बीच उसी तरह लटका रहता था जैसे चर्च का घण्‍टा दोनों खम्‍भों के बीच टंगा रहता है। 




दो दिनों से उसने कुछ नहीं खाया था। अब उसे कोई कुछ नहीं देता था। हर किसी का सब्र जवाब दे चुका था। औरतें जब भी उसे आते देखतीं, दरवाजे पर खड़े होकर उस पर चिल्‍लाने लगतीं। 

''निकलो यहॉं से बेकार आवारा कहीं के। अभी तीन दिन पहले ही तो तुम्‍हें रोटी का टुकड़ा दिया था?'' और वह अपनी बैसाखियों के सहारे अगले घर की ओर बढ़ जाता, वहॉं भी इसी तरह उसका स्‍वागत  होता। 

दरवाजे पर खड़ी औरतें आपस में ही कहतीं, ''इस हरामखोर जंगली को हम पूरे साल भर तो खिलाते नहीं रह सकते।'' 


लेकिन फिर भी उस 'हरामखोर जंगली' को खाने की जरूरत तो पड़ती ही थी। 


वह सेन्‍ट-हिलेयर, वारविले और लेस बिलेट्स में घूम -घूम कर थक चुका था और उसे एक सूखा टुकड़ा तक नसीब नहीं हुआ था। उसकी आखिरी उम्‍मीद थी टूरनोलेस, लेकिन उस जगह तक पहुँचने के लिए सड़क पर पॉंच मील का रास्‍ता तय करना पड़ता, और वह इतना थका हुआ था कि गज भर भी आगे नहीं बढ़ सकता था। उसका पेट और उसकी जेब दोनों एक जैसे ही खाली थे, लेकिन उसने अपने रास्‍ते पर चलना शुरू किया। 


दिसम्‍बर का महीना था और ठण्‍डी हवा खेतों और पेड़ों की नंगी टहनियों से होकर सनसनाती हुई बह रही थी। काले भयावह आसमान के आर-पार बादल तेजी से जा रहे थे। वह लंगड़ा धीरे-धीरे अपने आपको घसीटते हुए चलता र‍हा, तकलीफदेह कोशिश के साथ एक के बाद एक बैसाखियां उठाते हुए, अपनी एक टुण्‍डी टांग का सहारा लेते हुए। 


बीच बीच में वह कुछ पल सुस्‍ताने के लिए खाई के बगल में बैठ जाता। भूख उसके अंग अंग में कुलबुला रही थी, और उसका चकराया हुआ मन्‍द दिमाग एक ही बात सोच रहा था - खाना - लेकिन इसे कैसे पाया जाये यह वह नहीं जानता था। तीन घंटो तक लगातार उसका तकलीफदेह सफर जारी रहा। और आखिर में गांव के पेड़ों की झलक ने उसे नयी ऊर्जा से उत्‍साहित कर दिया था। 


पहला ही किसान, जिससे वह मिला और भीख मांगी, कहने लगा, ''तुम फिर आ गये पुराने बदमाश? क्‍या तुमसे कभी छुटकारा नहीं मिलेगा?'' 


और 'घण्‍टा' अपने रास्‍ते चल दिया। हर दरवाजे पर उसे केवल गालियां मिलती थीं। उसने पूरे गांव का चक्‍कर लगाया, लेकिन इतनी तकलीफ उठाने के बावजूद उसे फूटी कौड़ी तक न मिली। 


फिर वह कीचड़ भर जमीन में दम लगा कर चलता हुआ पड़ोस के खेतों पर गया। हर जगह उसका वैसा ही स्‍वागत हुआ। दिन मे इतनी ठन्डक और रूखापन था जो दिल की धड़कन को जमा देता है और मिजाज को चिड़चिड़ा बना देता है, और पैसे या खाना देने के लिए हाथ तक नहीं खुलते। 


जब वह अपनी जान-पहचान के सारे घरों में घूम चुका, तो शिकेट के खेत के अहाते से होकर गुजरती हुई खाई के किनारे धम्‍म से बैठ गया। अपनी बैसाखियां जमीन पर सरकाकर वह भूख का मारा गतिहीन पड़ा रहा, लेकिन अपनी अकथनीय पीड़ा को पूरी तरह महसूस करने लायक समझ उसमें नहीं थी। 

वह न जाने किस इंतजार में था, दिल में एक धुंधली सी उम्‍मीद लिये, जो मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी हर इंसान के दिल में होती है। दिसम्‍बर की कडकड़ाती सर्दी में वह खेत के अहाते के एक कोने में बैठा हुआ वह किसी दैवीय या इंसानी सहायता का इंतजार कर रहा था, उसे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मदद कहॉं से आने वाली थी। काले रंग की कुछ मुर्गियां इधर-उधर भाग रहीं थीं, और उस मिट्टी में अपना भोजन ढूँढ रहीं थीं जो सभी जीवों को पालती है। बीच बीच में वह अपनी चोंच में अनाज का दाना या छोटा कीट झटक लेतीं, फिर वह भोजन के लिए अपनी धीमी, सुनिश्चित खोज में लग जातीं। 

'घण्‍टा' पहले पहले तो बिना कुछ सोचे उन्‍हें देखता रहा। तभी उसके दिमाग की बजाय उसके पेट को एक विचार आया - कि अगर उनमे से एक मुर्गी को लकड़ी की आग पर पका लिया जाये तो इसे खाने में मजा आयेगा। 


उसे यह ख्‍याल भी नहीं आया कि वह चोरी करने जा रहा हे। उसने पास पड़े हुए एक पत्‍थर को उठाया, और निशाने में पक्‍का होने के कारण, एक ही पत्‍थर में उसने सबसे करीब वाली मुर्गी को मार गिराया। मुर्गी अपने पंख फड़फड़ाते हुए एक ओर गिर गई। दूसरी मुर्गियां घबराकर इधर उधर भाग गयीं, और 'घण्‍टा' अपनी बैसाखियां उठाकर उधर बढ़ा जिधर जहां उसका शिकार पड़ा हुआ था। 


जैसे ही वह उस लाल सिर वाली काली चिडि़या के पास पहुँचा, उसकी पीठ पर एक जोरदार प्रहार पड़ा जिससे उसकी बैसाखियां छूट गयीं और वह दस कदम दूर जा गिरा। और किसान शिकेट, जो गुस्‍से में आपे से बाहर हो रहा था, एक लुटने वाले किसान के गुस्‍से के साथ उस पर लात-घूँसे बरसाने लगा। खेत के मजदूर भी आ गये और अपने मालिक के साथ वे भी उस पर थप्‍पड़-घूँसे बरसाने लगे। जब वे उसे पीट-पीट कर थक गये तो ले जाकर उसे लकड़ी के गोदाम में बन्‍द कर दिया, और पुलिस को बुलाने चले गये। 

'घण्‍टा' अधमरा, खून से लथपथ और भूख से बेजान, फर्श पर पडा था। शाम हो गयी -फिर रात- फिर सुबह हो गयी। और अब तक उसने कुछ नहीं खाया था। 


दोपहर के करीब पुलिस आई। उन्‍होंने पूरी सावधानी के साथ गोदाम का दरवाजा खोला, कि कहीं वह भिखारी हाथापाई न करे, क्‍यों कि किसान शिकेट ने बताया था कि उस भिखारी ने उस पर हमला किया था, और बड़ी मुश्किल से वह अपने आपको बचा पाया था।

सार्जेन्‍ट चिल्‍लाया:

''चलो, उठो। ''

लेकिन 'घण्‍टा' हिल भी नहीं सका। उसने अपनी बैसाखियों पर खड़े होने की भरसक कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। पुलिस ने यह सोचकर कि वह कमजोरी होने का नाटक कर रहा है,  उसे बलपूर्वक खींचकर उसे दोनों बैसाखियों के बीच में टांग दिया।

वह डर गया - पुलिस की वर्दी से उसका पैदाइशी डर, खिलाड़ी की मौजूदगी में खेल का डर, एक चूहे का बिल्‍ली के प्रति डर - और फिर एक अतिमानवीय प्रयास के साथ वह सीधे खड़े होने में कामयाब हो गया।

''आगे चलो'', सार्जेन्‍ट ने कहा। वह चल पड़ा। खेत के सारे कामगार उसे जाते हुए देखते रहे। औरतें उस पर घूँसे तान रहीं थीं, आदमी उस पर फब्तियां कस रहे थे। आखिर में वह पकड ही लिया गया। चलो छुटकारा मिला। वह अपने दोनों सहारों पर चलते हुए चला गया। उसने पर्याप्‍त ऊर्जा इकट्ठी कर ली थी - निराशा की ऊर्जा- शाम होने तक चलते रहने के लिए, वह इतना चकराया हुआ था कि उसे मालूम नहीं था उसके साथ क्‍या हो रहा है, वह इतना डरा हुआ था कि कुछ समझ नहीं पा रहा था।

रास्‍ते में जो भी मिलता, रुककर उसे देखने लगता और किसान बुदबुदाने लगते:

''कोई चोर-वोर है।''

शाम के करीब वह टाउन पहुँचा। वह इतनी दूर पहले कभी नहीं निकला था। उसे बिल्‍कुल भी एहसास नहीं था कि वह वहां किसलिये लाया गया था या उसके साथ क्‍या होने वाला था। पिछले दो दिनों की सारी भयानक और अप्रत्‍याशित घटनायें, इन सारे अपरिचित चेहरों और घरों ने उसके दिल में भय पैदा कर दिया था।

वह कुछ नहीं बोला, उसके पास कहने को कुछ नहीं था क्‍यों कि उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। और फिर, वह इतने सालों से किसी से कुछ नहीं बोला था और अपनी जुबान का इस्‍तेमाल करना भी भूल चुका था, और उसके विचार भी इतने अनिश्चित थे कि उन्‍हें शब्‍दों में बयान नहीं किया जा सकता था।

वह टाउन जेल में डाल दिया गया। पुलिस को यह भी नहीं ध्‍यान आया कि उसे खाने की जरूरत हो सकती है, और उसे अगले दिन तक के लिए अकेला छोड़ दिया गया। लेकिन जब अगली सुबह वे उसकी पडताल करने आये, तो वह फर्श पर मृत पाया गया।

केसी आश्‍चर्यजनक चीज थी।

-समाप्‍त-

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शुक्रवार, 10 जून 2011

बन्‍दर का पंजा - डब्‍ल्‍यू डब्‍ल्‍यू जैकब्‍स की विश्‍वप्रसिद्ध हॉरर स्‍टोरी

विलियम वाईमार्क जैकब्‍स (गूगल चित्र से साभार) 
 
''बन्‍दर का पंजा'' विलियम वाईमार्क जैकब्‍स की विश्‍वप्रसिद्ध कहानी है। विलियम वाईमार्क जैकब्‍स (8 सितम्‍बर, 1863 - 1 सितम्‍बर, 1943) एक अंग्रेज कथाकार और उपन्‍यासकार थे। समुद्री जीवन और उससे जुड़े लोग उनके लेखन के प्रमुख विषय थे। उनका पहला कहानी संग्रह 'Many Cargoes' 1896 में प्रकाशित हुआ था। उनकी अधिकतर रचनाओं में हास्‍य का पुट देखने को मिलता है। लेकिन आज अंग्रेजी साहित्‍य में उन्‍हें अपनी दो हॉरर कहानियों 'The Monkey's Paw' और 'The Toll House' के लिये याद किया जाता है।  इनमें से पहली कहानी 1902 में 'The Lady of the Barge' नामक कहानी संग्रह में प्रकाशित हुई थी और दूसरी कहानी वर्ष 1909 में 'Sailors' Knots' कहानी संग्रह में प्रकाशित हुई थी। 
 
'The Monkey's Paw' उनकी सर्वप्रसिद्ध कहानी है। यह कहानी अंग्रेजी की सर्वश्रेष्‍ठ हॉरर कहानियों में अपना स्‍थान रखती है। यह कहानी इतनी लोकप्रिय हुई कि बाद में एकांकी के रूप में इसका मंचन भी किया गया। इसके एकांकी रूपान्‍तर को तमाम समीक्षक अंग्रेजी भाषा का पहला आधुनिक एकांकी मानते हैं। बाद में रेडियो रूपक के रूप में भी इसका प्रसारण किया गया। इस कहानी पर आधारित मूक और सवाक दोनों तरह की फिल्‍में बनी और टी0वी0 पर इस कहानी पर आधारित हॉरर शो भी प्रसारित हुए।  यहां प्रस्‍तुत है इसी कहानी का हिन्‍दी अनुवाद -

(गूगल इमेज से साभार)

(1)

बाहर रात ठण्‍डी और भीगी थी, लेकिन लैबरनम विला के छोटे से बैठक कक्ष में खिड़की के पर्दे बन्‍द थे और तेज आग जल रही थी। पिता और पुत्र शतरंज खेल रहे थे, पिता जो कि खेल में नयी चालें सोचता था, बार-बार अपने बादशाह को ऐसे प्रत्‍यक्ष और अनावश्‍यक खतरों में डाल देता था कि आग के पास शान्तिपूर्वक बैठकर बुनाई कर रही सफेद बालों वाली महिला भी टोकने लगती थी।

''हवा की आवाज सुनी'' श्रीमान ह्वाइट ने कहा, जिन्‍होंने अपनी एक गलत चाल को समझने में बहुत देर कर दी थी और अब अपने पुत्र को इस गलती को देखने से मित्रवत ढंग से रोकना चाहते थे।

''मैं सुन रहा हूँ'', पुत्र ने गम्‍भीरतापूर्वक बिसात को देखते हुए कहा और अपना हाथ बढ़ाया, 'शह।'

''मुझे नहीं लगता कि आज रात वह आयेगा।'' अपना हाथ बिसात पर रोकते हुए पिता ने कहा।

''मात'', पुत्र ने जवाब दिया।

 ''यह तो सबसे बेकार जिन्‍दगी है'', श्रीमान ह्वाइट ने आकस्मिक और अप्रत्‍याशित गुस्‍से के साथ चीखते हुए कहा, ''तमाम जंगली और बर्फीली जगहों में से यह जगह रहने के लिए सबसे बेकार है। गली दलदल बनी हुई है, सड़कों पर पानी भरा हुआ है। मुझे समझ नहीं आता लोग क्‍या सोच रहे हैं। मुझे लगता है कि वे सोचते हैं कि चूँकि इस सड़क पर  केवल दो ही घर किराये पर हैं, इसलिये कोई फर्क नहीं पड़ता।''

''कोई बात नहीं प्रिये'', उनकी पत्‍नी ने मरहम लगाते हुए कहा, ''शायद तुम अगली बाजी जीत जाओ।''

श्रीमान ह्वाइट ने अपनी पैनी नजरों से ऊपर देखा, ठीक उसी समय जब मॉ-बेटे की निगाहें आपस में मिल रहीं थीं। उनके शब्‍द उनके होठों पर ही खत्‍म हो गये और अपनी आपराधिक हंसी को उन्‍होनें हल्‍की सफेद दाढ़ी में छिपा लिया। 

'वह आ गया', श्रीमान ह्वाइट ने कहा, जब फाटक जोर से बन्‍द हुआ और भारी कदमों की आवाज दरवाजे की ओर आती सुनाई दी।

वृद्ध पुरुष मित्रवत् और स्‍वागतपूर्ण शीघ्रता के साथ उठा और नवागन्‍तुक के साथ सहानुभूति जताने लगा। नवागन्‍तुक ने भी स्‍वयं से सहानुभूति जताई, जिस पर श्रीमती ह्वाइट ने अस्‍वीकृति जताते हुए धीरे से खॉंसा, जबकि उनके पति ने कमरे में प्रवेश किया और उनके पीछे एक लम्‍बा तगड़ा, छोटी गोल ऑंखों और रक्तिम मुखमण्‍डल वाला आदमी अन्‍दर आया।

'सार्जेन्‍ट-मेजर मॉरिस', उसका परिचय कराते हुए उन्‍होंने कहा।

सार्जेन्‍ट-मेजर ने सबसे हाथ मिलाया और आग के पास रखी गई कुर्सी पर बैठ गया और सन्‍तोषपूर्ण निगाहों से देखने लगा कि उसके मेजबान ने व्हिस्‍की और गिलास निकाल लिये थे और तॉंबे की एक छोटी केतली आग पर चढ़ा दी थी।

तीसरा गिलास लेने पर उसकी ऑंखों की चमक कुछ बढ़ी और उसने बात करना शुरू किया, जबकि पूरा परिवार उत्‍सुकता से उसकी दूर-दराज की बातें सुनने लगा, उसने अपने चौड़े कन्‍धों को कुर्सी में और फैला लिया और जंगल की घटनाओं और साहसिक कार्यों, युद्धों, खतरनाक जानवरों और अजीबोगरीब लोगों के बारे में बताने लगा।

 'बीस वर्ष हो गये', श्रीमान ह्वाइट ने अपनी पत्‍नी और पुत्र की ओर देखते हुए स्‍वीकृतिसूचक सिर हिलाकर कहा, 'जब यह गया था, तो गोदाम में काम करने वाला एक नौजवान था। अब इसे देखो।'

'अब भी ज्‍यादा बुरे नहीं लग रहे हैं', श्रीमती ह्वाइट ने नम्रतापूर्वक कहा।

''मैं भी हिन्‍दुस्‍तान जाना चाहता हूँ', वृद्ध व्‍यक्ति ने कहा, 'मतलब थोड़ा बहुत जानने-समझने के लिये।'

'आप जहॉं हैं, वहीं रहें तो अच्‍छा है।' सार्जेन्‍ट-मेजर ने सिर हिलाते हुए कहा। उसने खाली गिलास रख दिया, और धीमी सॉंस लेते हुए दुबारा सिर हिलाया।

'मैं पुराने मन्दिरों, फकीरों और मदारियों को देखना चाहता हूँ।' वृद्ध व्‍यक्ति ने कहा, 'तुमने एक दिन मुझे किसी बन्‍दर के पंजे या ऐसी ही किसी चीज के बारे में बताना शुरू किया था मॉरिस़़?'

'कुछ नहीं।' मॉरिस ने हड़बड़ाकर कहा, 'कोई खास जानने लायक बात नहीं है।'

'बन्‍दर का पंजा' श्रीमती ह्वाइट ने उत्‍सुकता से पूछा।

'शायद यह कुछ-कुछ वैसा ही है जिसे आप जादू कहते हैं।' सार्जेन्‍ट-मेजर ने छूटते ही कहा।

उसके तीनों श्रोता उत्‍सुकतावश आगे झुक आये। आगन्‍तुक ने अन्‍यमनस्‍कता से अपना गिलास ओंठों से लगाया और फिर वापस रख दिया। उसके मेजबान ने फिर भर दिया।

'देखने में-------'' सार्जेन्‍ट-मेजर ने अपनी जेब टटोलते हुए कहा, 'यह एक मामूली छोटा सा पंजा है, सूखकर ममी हो गया है।'

उसने अपनी जेब से कोई चीज बाहर निकाली और दिखाई। श्रीमती ह्वाइट तो मुँह बिचकाकर पीछे हट गयीं, लेकिन उनके पुत्र ने इसे ले लिया और उत्‍सुकतावश इसका निरीक्षण करने लगा।

'और इसमें खास बात क्‍या है?' श्रीमान ह्वाइट ने इसे पुत्र से लेकर पूछा, और इसका निरीक्षण करने के बाद इसे मेज पर रख दिया।

'एक बूढ़े फकीर ने इस पर मन्‍त्र डाल दिया था', सार्जेन्‍ट-मेजर ने बताया, ''बहुत पवित्र आदमी था। वह दिखाना चाहता था कि भाग्‍य लोगों के जीवन पर शासन करता है, और जो लोग इसमें हस्‍तक्षेप करते हैं, उन्‍हें कष्‍ट सहना पड़ता है। उसने इस पर ऐसा मन्‍त्र डाला था कि तीन अलग-अलग व्‍यक्ति अपनी तीन इच्‍छाओं की पूर्ति कर सकते हैं।''

''अच्‍छा तो आप तीन इच्‍छाएं क्‍यों नहीं पूरी कर लेते?'' हरबर्ट ह्वाइट ने चतुराई से पूछा।

उस सिपाही ने उसे इस तरह देखा जैसे कोई अधेड़ आदमी एक धृष्‍ट दुस्‍साहसी नवयुवक की ओर देखता है। ''मैनें की थी', उसने शान्तिभाव से जवाब दिया, और उसका धब्‍बेदार चेहरा सफेद हो गया।

''और क्‍या आपकी तीनों इच्‍छाएं सचमुच पूरी हो गयीं?'' श्रीमती ह्वाइट ने पूछा। 

''पूरी हो गयीं'', सार्जेन्‍ट-मेजर ने कहा, और गिलास अपने दॉंतों में भींच लिया।

''क्‍या किसी और ने इच्‍छा-पूर्ति करके देखा है?'' वृद्ध महिला पीछे पड़ गयी।

''पहले आदमी ने तीन इच्छित चीजें मांगी थीं।  मुझे नहीं  पता कि पहली दो इच्‍छाएं क्‍या थीं, मगर तीसरी इच्‍छा मृत्‍यु की थी। इस तरह यह पंजा मुझे मिल गया।''

उसकी आवाज इतनी गम्‍भीर थी कि पूरे समूह पर सन्‍नाटा छा गया।

''अगर तुम्‍हारी तीनों इच्‍छाएं पूरी हो गयी हैं, तो यह तुम्‍हारे काम का नहीं है मॉरिस।'' वृद्ध पुरुष ने अंत में कहा, ''तुम इसे क्‍यों रखे हुए हो?''

सिपाही ने अपना सिर हिलाया, ''शायद अपनी सनक की वजह से। मुझे इसे बेचने का विचार आया था, लेकिन मुझे लगता नहीं कि यह बिकेगा। इसने पहले ही बहुत गड़बड़ की है। और फिर, लोग नहीं खरीदेंगे। उन्‍हें लगता है यह कोरी कल्‍पना है, और जो लोग थोड़ा बहुत मानते भी हैं वे पहले आजमा कर देखना चाहते हैं उसके बाद पैसा देना चाहते हैं।''

''अगर तुम्‍हारी तीन और इच्‍छाएं हों, तो क्‍या तुम उनकी पूर्ति करना चाहोगे?'' वृद्ध पुरुष ने उसे गौर से देखकर पूछा।

''मुझे नहीं मालूम, मैं नहीं जानता।'' उसने उत्‍तर दिया।

उसने अपने पंजे को उठाया और अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच घुमाते हुए अचानक ही इसे आग में फेंक दिया। ह्वाइट हल्‍का सा चीखते हुए नीचे झुका और उसे वापस झपट लिया।

''इसे जल जाने दो।'' मॉरिस ने दृढ़ता से कहा।

''मॉरिस अगर यह तुम्‍हें नहीं चाहिए तो मुझे दे दो।'' दूसरे व्‍यक्ति ने कहा।

''मैं तो नहीं देता'', उसके मित्र ने हठपूर्वक कहा, ''मैनें तो इसे आग में फेंक दिया था। अगर तुमने इसे रखा तो कुछ भी होने पर मुझे दोष मत देना। समझदारी से काम लो और इसे वापस आग में डाल दो।''

वृद्ध पुरुष ने सिर हिलाकर मना किया और अपनी नई चीज का निरीक्षण करते हुए पूछा, ''इसे प्रयोग कैसे करते हैं?''

''इसे अपने दाहिने हाथ में लेकर उठाओ और अपनी इच्‍छा को जोर से बोलो।'' सार्जेन्‍ट-मेजर बोला, ''लेकिन मैं तुम्‍हें इसके दुष्‍परिणामों के बारे में सावधान किये देता हूँ।''

''यह तो अरेबियन नाइट्स की कहानी जैसा लगता है'', श्रीमती ह्वाइट ने कहा और खाना लगाने लगीं, ''तुम्‍हें नहीं लगता कि तुम मेरे लिए चार जोड़ी हाथ मॉंग सकते हो?''

उसके पति ने वह जादुई चीज जेब से निकाली और तीनों के ठहाके फूट पड़े जबकि सार्जेन्‍ट-मेजर ने, जिसके चेहरे पर खौफ था, उसकी बॉंह पकड़कर कहा, ''अगर तुम्‍हें मांगना ही है, तो कोई ढंग की चीज क्‍यों नहीं मांगते?''

श्रीमान ह्वाइट ने उसे वापस जेब में रख लिया और कुर्सियां लगाकर अपने मित्र को खाने की मेज पर ले गये। खाने के दौरान उस जादुई चीज के बारे में सब लोग भूल गये और खाने के बाद तीनों बैठकर मंत्रमुग्‍ध ढंग से उस सिपाही की भारत-यात्रा के साहसिक कार्यों की दूसरी किश्‍त सुनने लगे।



''अगर बन्‍दर के पंजे की कहानी में केवल उतना ही सच है, जितना कि उसने हमें बताया है, तो हमें इससे ज्‍यादा फायदा होने वाला नहीं है।'' हरबर्ट ने मेहमान को, जिसे आखिरी ट्रेन पकड़नी थी, विदा करने के बाद दरवाजा बन्‍द करते हुए कहा।

''क्‍या तुमने इसके लिए उसे कुछ दिया था?'' श्रीमती ह्वाइट ने अपने पति को करीब से देखते हुए पूछा।

''थोड़ा बहुत'', तनिक उत्‍साह के साथ उन्‍होंने कहा। ''उसने मांगा तो नहीं था, पर मैनें जबरदस्‍ती उसे दे दिया। उसने फिर जोर देकर कहा था कि मैं इस चीज को फेंक दूँ।''

''हो सकता है'' हरबर्ट ने बनावटी डर के साथ कहा, ''हम धनी, प्रसिद्ध और खुशहाल होने जा रहे हैं। पिताजी, आपको सबसे पहले सम्राट बनने की इच्‍छा पूर्ति करनी चाहिए। फिर आपको अपनी पत्‍नी का कहना नहीं मानना पड़ेगा।''

वह मेज का चक्‍कर काटते हुए भागा क्‍योंकि श्रीमती ह्वाइट जिन पर फिकरा कसा गया था, कुर्सी पर बिछाने वाला कपड़ा लिये हुए उसके पीछे दौड़ीं।

श्रीमान ह्वाइट ने अपनी जेब से पंजे को निकाला और इसे संदिग्‍धतापूर्वक देखा, ''सच तो यह है कि मुझे नहीं मालूम कि कौन सी इच्‍छा पूर्ति करूँ।'' उन्‍होंने धीमे से कहा, ''मुझे लगता है कि मेरे पास सब कुछ है।''

''अगर आप पूरे घर का सफाया कर दें, तो भी आप बहुत खुश रहेंगे, है न?'' हरबर्ट ने अपना हाथ उनके कंधे पर रखते हुए कहा। ''ठीक है, फिर दो सौ पौण्‍ड की रकम मांगिए। इतना काफी होगा।''

उसके पिता ने अपने भोलेपन पर शर्मिन्‍दा होकर मुस्‍कुराते हुए उस ताबीज को ऊपर उठाया, जबकि उनका पुत्र चेहरे पर बनावटी गम्‍भीरता के साथ, जो  मां की ओर आंख से इशारा करते हुए कुछ बदल गयी थी, पियानो पर बैठ गया और कुछ आकर्षक सुर बजाने लगा।

''मैं दो सौ पौण्‍ड की इच्‍छा करता हूँ'' वृद्ध पुरुष ने स्‍पष्‍ट रूप से कहा।

पियानो के  उतार भरे बढि़या सुर ने उनके शब्‍दों का अभिवादन किया कि तभी बीच में ही उस वृद्ध पुरुष की कंपकंपी भरी चीख निकल गयी। उसकी पत्‍नी और पुत्र उसकी ओर दौड़े।

'यह हिल रहा था' वह चीखा, उसने फर्श पर पड़ी हुई उस चीज की ओर क्षोभ भरी दृष्टि डालते हुए कहा।

''जैसे ही मैनें इच्‍छा मांगी, यह मेरे हाथ में सांप की तरह घूम गया।''

''खैर, मुझे पैसा तो दिखाई नहीं दे रहा'' उसके पुत्र ने कहा और उस चीज को उठाकर मेज पर रख दिया, ''और मैं  दावे के साथ कहता हूँ कि पैसा कभी मिलेगा भी नहीं।''

''यह जरूर तुम्‍हारा वहम होगा, पिताजी'' उसकी पत्‍नी ने चिन्‍तापूर्वक उसकी ओर देखकर कहा।

उसने अपना सिर हिलाया, ''कोई बात नहीं, कोई नुकसान तो नहीं हुआ है। लेकिन फिर भी इसने मुझे झटका जरूर दे दिया।''

वे सब फिर आग के पास बैठ गये और दोनों पुरुष अपने सिगार खत्‍म करने लगे। बाहर हवा इतनी तेज थी जितनी पहले कभी न थी और वृद्ध व्‍यक्ति ऊपर सीढि़यों पर दरवाजे की धड़ाम की आवाज सुनकर घबराकर चौंक पड़ा। एक असामान्‍य और अवसादपूर्ण शान्ति उन तीनों के बीच पसर गयी, और तब तक रही जब तक वृद्ध युगल रात में सोने के लिए नहीं उठे।

''मैं आशा करता हूँ कि आपको अपने बिस्‍तर पर एक बड़े थैल में बंधा हुआ पैसा पड़ा मिलेगा'', हरबर्ट ने उन्‍हें शुभरात्रि कहते हुए कहा, '' और जब आप गलत ढंग से पाया हुआ यह पैसा अपनी जेब में रख रहे होंगे तो कोई भयानक चीज अलमारी पर बैठी हुई आपको देख रही होगी।''

वह अंधेरे में अकेला बैठा हुआ, धीमी होती हुई आग को घूर रहा था, और उसमें दिख रहे तरह तरह के चेहरों को निहार रहा था। आखिरी वाला चेहरा इतना भयानक और बन्‍दर जैसा था कि वह आर्श्‍च से इसे निहारता रहा। यह इतना जीवन्‍त हो उठा कि कि एक बेचैन हंसी के साथ उसने इस आग को बुझाने के लिए मेज पर रखे पानी के आधे भरे गिलास की ओर हाथ लपकाया। उसके हाथ में बन्‍दर का पंजा आ गया और कांपते हुए उसने अपना हाथ कोट में पोंछा और बिस्‍तर पर चला गया।


(2)

अगली सुबह नाश्‍ते की मेज पर पसरती हुई जाड़े की धूप में बैठा हुआ वृद्ध पुरुष अपनी आशंकाओं पर हंस रहा था। कमरे में एक प्रकार की नीरस सम्‍पूर्णता का ऐसा आभास था जो पिछली रात को नदारद था, और वह छोटा सा झुर्रीदार पंजा साइडबोर्ड पर इस लापरवाही के साथ रख छोडा गया था कि इससे इसकी शक्तियों के प्रति अविश्‍वास का पता चलता था।

‘’मुझे लगता है सारे बूढ़े सिपाही एक जैसे होते हैं’’, श्रीमती ह्वाइट ने कहा, ‘’ऐसी दकियानूसी बात को सुनना। आज के समय में ऐसे इच्‍छापूर्ति कैसे की जा सकती है?’’ और अगर की जा सकती है तो फिर तुम्‍हें ये 200 पौण्‍ड नुकसान कैसे पहुँचा सकते हैं?’’

‘’हो सकता है इनके सिर पर आसमान से गिर पड़ें’’ हरबर्ट ने मजाकिया लहजे में कहा।

‘’मॉरिस ने कहा था कि चीजें इतनी स्‍वाभाविक रूप से घटित होती हैं कि आप इसे केवल संयोग का नाम दे सकते हैं।‘’

‘’खैर, जब तक मैं वापस न आऊँ, तब तक धन की इच्‍छापूर्ति मत कीजियेगा’, हरबर्ट ने मेज पर से उठते हुए कहा, ‘’मुझे डर है कि इससे आप एक लालची आदमी बन जायेंगे और हमें आपको छोड़ना पड़ेगा।‘’

उसकी मॉं हँस पड़ी, उसके पीछे दरवाजे तक आयी और उसे सड़क पर जाते हुए देखती रही, और वापस नाश्‍ते की मेज पर लौटते हुए वह अपने पति के भोलेपन पर प्रसन्‍न हो उठी थी। फिर भी दरवाजे पर पर डाकिये की दस्‍तक सुनकर तेजी से दौड़ती हुई गई और जब उसने पाया कि डाकिया दर्जी का बिल लेकर आया है, तो वह रिटायर्ड सार्जन्‍ट मेजर की नशेड़ीपन की आदतों का जिक्र करने लगी।

‘’देखना हरबर्ट जब घर आयेगा तो फिर से खिंचाई करेगा’’, जब वे खाने पर बैठे तो वह बोली।

‘’‍फिर भी मैं कहता हूँ कि उस चीज ने मेरे हाथ में हरकत की थी’’, श्रीमान ह्वाइट ने अपने लिये बीयर उड़े‍लते हुए कहा।

‘’तुम्‍हें लगता है ऐसा हुआ था।‘’ उसने सान्‍त्‍वनापूर्वक कहा।

‘’मैं कह रहा हूँ ऐसा हुआ था’’, श्रीमान ह्वाइट ने उत्‍तर दिया। ‘’इसमें सोचने की कोई बात ही नहीं है। मैनें तो केवल़---------क्‍या बात है?’’

उनकी पत्‍नी ने कोई उत्‍तर नहीं दिया। वह बाहर एक व्‍यक्ति की रहस्‍यमय गतिविधियों को देख रही थी, जो असमंजस में घर की ओर झांक रहा था और घर में प्रवेश करने की सोच रहा था। चूँकि उनके दिमाग में 200 पौण्‍ड वाली बात समायी हुई थी, इसलिये श्रीमती व्‍हाइट ने ध्‍यान दिया कि वह अजनबी अच्‍छी वेशभूषा में था, और नयी चमकदार सिल्‍क हैट पहने हुए था। तीन बार वह फाटक पर रुका और फिर आगे बढ़ गया। चौथी बार उसने खड़े होकर फाटक पर अपना हाथ रखा। अचानक ही दृढ़ता के साथ उसने फाटक खोल दिया और अन्‍दर के रास्‍ते की ओर बढ़ा। उसी क्षण श्रीमती हवाइट ने अपने हाथ अपने पीछे कर लिये और शीघ्रता से अपने एप्रन की डोरियां खोलते हुए उस कपड़े को अपनी कुर्सी की गद्दी के नीचे रख दिया।

असहज लग रहे अजनबी को लेकर वह कमरे में आई। उसने उनकी ओर चुपके से देखा और महिला द्वारा कमरे की हालत और वहॉं पड़े हुए अपने पति के कोट के लिए, जो बागवानी के कामों में इस्‍तेमाल होता था, अजनबी से क्षमा मांगने पर वह तल्‍लीनता से सुनता रहा। फिर उन्‍होंने अजनबी के आगमन का कारण जानने के लिए उतनी देर धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की, जितना एक स्‍त्री कर सकती है, लेकिन पहले-पहल तो वह विचित्र ढंग से चुप्‍पी साधे रहा।

‘’मुझसे कहा गया था कि---------‘’ अन्‍त में वह बोला और झुककर अपनी पैन्‍ट से सूती कपड़े का एक टुकड़ा निकाला, ‘’मैं ‘मॉ एण्‍ड मेगिन्‍स’ से आया हूँ।‘’

वृद्ध महिला बोली, ‘’क्‍या बात है?’’, हॉंफते हुए उसने पूछा, ‘’क्‍या हरबर्ट को कुछ हो गया है? यह क्‍या है? यह क्‍या है?’’

उसके पति ने हस्‍तक्षेप किया, ‘’शान्‍त हो जाओ मेरी मॉं, बैठ जाओ और अपने आप किसी नतीजे पर मत पहुँचो। मुझे विश्‍वास है कि आप कोई बुरी खबर नहीं लाये हैं।‘’

‘’मुझे अफसोस है---------‘’ आगन्‍तुक ने कहना शुरू किया।

‘’क्‍या उसे कोई चोट लगी है?’’ मॉं बदहवासी में बोली।

आगन्‍तुक ने ‘हॉं’ में सर झुकाया। ‘’बहुत बुरी चोट लगी’’ उसने शान्‍त भाव से कहा, ‘’लेकिन अब उसे कोई कष्‍ट नहीं है।‘’

‘’भगवान का शुक्र है।‘’ वृद्ध महिला ने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘’भगवान का शुक्र है।‘’

जब उस आश्‍वस्ति का निर्मम अभिप्राय उसे समझ में आया तो वह अचानक ही फट पड़ी और अपनी आशंका की पुष्टि का भाव उसने अजनबी के चेहरे पर देखा। अपनी सॉंसें थामते हुए अपने भोले पति की ओर मुड़कर अपना कांपता हुआ हाथ उसके हाथों पर रख दिया। वहॉं एक लम्‍बी चुप्‍पी छा गयी।

‘’वह मशीनरी में फंस गया था।‘’ अन्‍त में आगन्‍तुक ने धीमी आवाज में कहा।

‘’मशीनरी में फंस गया था।‘’ श्रीमान ह्वाइट ने अनमनेपन से दुहराया।

‘हॉं—‘’

वह बैठे हुए खिड़की की ओर शून्‍य में ताकने लगे और अपनी पत्‍नी का हाथ अपने हाथों में लेकर, उसी तरह दबाया जैसे चालीस वर्ष पूर्व अपने रोमांस के दिनों में किया करते थे।

‘’वह हमारा इकलौता सहारा था’’, उन्‍होंने आगन्‍तुक की ओर धीरे से उन्‍मुख होकर कहा, ‘’यह बहुत ही पीड़ादायक  है।‘’

अजनबी खॉंसते हुए उठा और धीरे से चलते हुए खिड़की के पास गया। ‘’फर्म ने मुझे आपके इस भीषण दुख में सहानुभूति व्‍यक्‍त करने के लिए भेजा था’’ उसने मुड़कर देखे बिना कहा। ‘’मेरी गुजारिश है कि आप इस बात को समझने की कोशिश करेंगे कि मैं केवल उनका नौकर हूँ और केवल उनकी आज्ञा का पालन कर रहा हूँ।‘’

कोई उत्‍तर नहीं मिला: वृद्ध महिला का चेहरा सफेद था, उसकी ऑंखें घूर रही थीं, उसमें कोई स्‍पन्‍दन होता मालूम नहीं पड़ रहा था, उसके पति के चेहरे पर ऐसी भंगिमा थी जैसी उसके मित्र सार्जेन्‍ट के चेहरे पर अपने किसी मिशन की शुरुआत करते वक्‍त हो सकती थी।

‘’मैं कह रहा था कि ‘मॉ एण्‍ड मेगिन्‍स’ की कोई भी जिम्‍मेदारी नहीं बनती है’’ उसने कहना जारी रखा, ‘’इस मामले वे कोई भी देनदारी स्‍वीकार नहीं करते हैं, लेकिन आपके बेटे की सेवाओं को देखते हुए वे आपको मुआवजे के रूप में कुछ रकम देना चाहते हैं।‘’

श्रीमान ह्वाइट ने अपनी पत्‍नी का हाथ छोड़ दिया और अपने पैरों पर खड़े होते हुए आतंकित दृष्टि के साथ उस अजनबी को देखा। उनके मुरझाये हुए ओंठों से शब्‍द निकले, ‘’कितनी?’’

‘’दो सौ पौण्‍ड’’ उत्‍तर मिला।

पत्‍नी की चीख से बेखबर वह वृद्ध व्‍यक्ति धीमे से मुस्‍कुराया, एक अंधे आदमी की तरह अपने हाथ आगे बढ़ाये और एक बेजान बोझ की तरह फर्श पर भरभरा कर गिर पड़ा।


(3)

करीब दो मील दूर, नये विशाल कब्रिस्‍तान में वृद्ध युगल ने अपने मृत बेटे को दफनाया, और अपने उस अंधकारयुक्‍त और सुनसान घर में वापस आ गये। यह सब इतनी जल्‍दी खत्‍म हुआ था कि वे इसे महसूस भी नहीं कर सके और उन्‍हें कुछ और घटित होने की आशा थी - कुछ और जिससे उनका बोझ कम हो, वह बोझ जो उनके वृद्ध हृदय के लिए कुछ अधिक ही भारी था।

लेकिन दिन गुजर गये और आशा का स्‍थान सहनशीलता ने ले लिया, वृद्धावस्‍था की ऐसी निराशापूर्ण सहनशीलता जिसे उदासीनता भी कह सकते हैं। कभी कभी तो वे आपस में एक शब्‍द भी नहीं बोलते थे, और उनके पास बात करने के लिए कुछ नहीं था और उनके दिन लम्‍बे थकान भरे होने लगे।

एक सप्‍ताह बाद, एक रात अचानक ऑंख खुलने  पर वृद्ध व्‍यक्ति ने अपना हाथ बगल में टटोला, वह अकेला था। कमरे में अंधेरा था, खिड़की के पास सिसकने की आवाज आ रही थी।

'वापस आओ', उसने नरम स्‍वर में कहा, ''तुम्‍हें ठण्‍ड लग जायेगी।''

''मेरे बेटे को इससे भी ज्‍यादा ठण्‍ड लग रही है।'' वृद्ध महिला ने कहा और फिर रोने लगी।

सिसकियों की आवाज उसके कानों पर धीमी होती गयी। बिस्‍तर गर्म था और उसकी ऑंखें नींद से बोझल थीं। वह अनियमित ढंग से ऊंघने लगा और सो गया कि अचानक उसकी पत्‍नी की चीख ने उसे जगा दिया।

''पंजा, बंदर का पंजा'', वह पागलों सी चीख पड़ी।

वह घबराकर बोला, ''कहॉं?'' कहाँ है? क्‍या बात है?''

लड़खड़ाते हुए कमरे की दूसरी ओर वह उसके पास आयी, ''मुझे वह चाहिये।'' उसने शान्‍त भाव से कहा, ''तुमने उसे नष्‍ट तो नहीं किया है न?''

''वह मेरे बैठक कक्ष में रखा है, अल्‍मारी में ताखे पर रखा है। क्‍यों?'' उसने आश्‍चर्य पूर्व कहा।

वह एक साथ रोई और हंस पड़ी और झुककर उसके गाल को चूम लिया।

''मैनें इसके बारे में केवल सोचा ही था, उसने उन्‍मादपूर्वक कहा, ''मैनें पहले यह क्‍यों नहीं सोचा? तुमने इस बारे में क्‍यों नहीं सोचा?''

''किस बारे में?'' उसने प्रश्‍न किया।

''बाकी दो इच्‍छाओं के बारे में', उसने शीघ्रता से उत्‍तर दिया। ''हमारी एक ही इच्‍छा पूरी हुई है।''

''क्‍या यह काफी नहीं था?'' वह  उग्र होकर बोला।

''नहीं, हम सबके पास एक और इच्‍छा होती है।'' उसने विजयपूर्वक कहा, ''नीचे जाओ और उसे जल्‍दी लेकर आओ, और हमारे बेटे के पुनर्जीवित होने की कामना करो।''

वह व्‍यक्ति बिस्‍तर पर उठकर बैठ गया और अपने कांपते पैरों पर से चादर हटा कर फेंक दी, ''हे भगवान, तुम पागल हो'', वह गुस्‍से से चिल्‍लाया।

''इसे लेकर आओ'', वह तड़प उठी ''जल्‍दी लेकर आओ और इच्‍छा पूरी करो।- मेरा बेटा। मेरा बेटा।''

उसके पति ने दियासलाई से मोमबत्‍ती जलाई। ''वापस बिस्‍तर पर चलो, तुम्‍हें पता नहीं तुम क्‍या कह रही हो?'' उसने अस्थिरतापूर्वक कहा।

''हमारी पहली इच्‍छा पूरी हो गयी थी'', वृद्ध महिला ने उत्‍तेजनापूर्वक कहा, ''तो दूसरी क्‍यों नहीं मांगते?''

''वह केवल संयोग था'' वृद्ध व्‍यक्ति हकबकाया।

''उसे लेकर आओ और इच्‍छा पूर्ति करो।'' उसकी पत्‍नी उत्‍तेजना से कांपते हुए चिल्‍लाई।

वृद्ध व्‍यक्ति मुड़ा और उसकी ओर देखकर कांपती आवाज में बोला, ''उसे मरे हुए दस दिन हो गये हैं। और फिर, मैनें तुम्‍हें नहीं बताया था कि मैं केवल उसके कपड़ों से ही उसकी पहचान कर पाया था। जब उस समय उसे देखना इतना भयानक था कि तुम देख नहीं सकीं, तो फिर अब कैसे देख सकोगी?''

''उसे वापस बुलाओ'' वृद्ध महिला चीखी और उसे खींचकर दरवाजे के पास ले गयी, ''तुम समझते हो कि मैनें जिस बच्‍चे को अपने हाथों से पाला-पोसा है उससे डर जाऊँगी?'' 


वह अंधेरे में नीचे गया, और बैठक कक्ष में जाकर भट्टी के स्‍थान पर हाथ से टटोला। वह ताबीज अपनी जगह पर था, और इस भय से आशंकित होकर कि कहीं कमरे से निकलने से पहले ही उसकी अनकही इच्‍छा के फलस्‍वरूप उसके बेटे का क्षत-विक्षत शरीर जीवित न हो जाये, उसने अपनी सॉंसों को थामा और तब उसे लगा कि वह दरवाजे की दिशा भूल गया है। वह पसीने से भीग गया, मेज को टटोलते हुए उसने अपना रास्‍ता तलाशा और दीवार के सहारे चलने लगा और उस ताबीज को लिये हुए छोटे गलियारे में पहुँच गया। 


जब वह कमरे में पहुँचा तो उसकी पत्‍नी का चेहरा भी बदला हुआ लगने लगा। उसका चेहरा सफेद और आशामय था और उसकी अस्‍भाविक भंगिमा देखकर वह डर गया। वह उससे भयभीत था। 


''इच्‍छा बोलो'' वह कठोर स्‍वर में बोली। 


''यह मूर्खतापूर्ण और दुष्‍टतापूर्ण काम है।'' वह लड़खड़ाते हुए बोला। 

''इच्‍छा बोलो'', उसकी पत्‍नी ने दुहराया। 


''मैं अपने बेटे के पुनर्जीवित होने की इच्‍छा करता हूँ।'' उसने हाथ उठाकर कहा। 


ताबीज फर्श पर गिर गया और वह भय से खड़ा देखने लगा। फिर वह कांपते हुए एक कुर्सी में धम्‍म से बैठ गया जबकि वृद्ध महिला ऑंखों में चमक लिए खिड़की पर गयी और पर्दे हटा दिये। 

वह सर्दी से ठिठुरने तक बैठा रहा और बीच-बीच में खिड़की से झांकती वृद्ध महिला को को देखता रहा।  मोमबत्‍ती का टुकड़ा जो जलते-जलते चीनी मिट्टी के मोमबत्‍ती स्‍टैण्‍ड के सिरे तक  पहुँच चुका था, छत और दीवारों पर लहराती हुई छायाएं प्रतिबिम्बित कर रहा था, जब तक आखिरी सबसे बड़ी लौ के साथ वह समाप्‍त नहीं हो गया। ताबीज के असफल होने पर एक अनिर्वचनीय शान्ति के साथ वृद्ध व्‍यक्ति वापस रेंगकर अपने बिस्‍तर पर पहुँचा और एक-दो मिनट बाद वृद्ध महिला भी चुपचाप उसके पास पहुँच गयी। 


कोई नहीं बोला, बस चुपचाप घड़ी की टिक-टिक सुनते रहे। एक सीढ़ी की चरमराती आवाज आयी और एक चूहा आवाज करता हुआ दीवार के पास से निकल गया। अंधेरा दमघोंटू था, और थोड़ी देर तक लेटे रहने के बाद, अपना साहस बटोरते हुए वृद्ध पुरुष ने माचिस निकाली और एक तीली जलाकर मोमबत्‍ती लाने के लिये सीढि़यों से नीचे उतरा। सीढि़यां खत्‍म होते ही तीली बुझ गई और वह दूसरी तीली जलाने के लिए रुका, ठीक इसी समय सामने के दरवाजे पर धीरे से दस्‍तक हुई, इतनी धीमी और चुपके से कि उसे मुश्किल से सुना जा सकता था। 


उसके हाथों से तीलियां गिर गयीं और गलियारे में बिखर गयीं। वह गतिहीन खड़ा था, उसकी सांस अटकी हुई थी कि दरवाजे पर दोबारा दस्‍तक हुई। वह वापस मुड़ा और तेजी से कमरे में भागा और कमरे का दरवाजा अन्‍दर से बंद कर लिया। तीसरी बार दस्‍तक पूरे घर में गूँज गयी। 


'वह क्‍या है?'' चौंककर वृद्ध महिला ने पूछा। 


''चूहा'', वृद्ध पुरुष बोला, ''चूहा था। सीढि़यों पर मेरे बगल से निकला था।'' 


उसकी पत्‍नी बिस्‍तर में उठकर बैठ गयी और सुनने लगी। एक जोरदार दस्‍तक पूरे घर में गूँज गयी। 


''हरबर्ट है। हरबर्ट है।'' वह चीखी। 


वह दरवाजे की ओर लपकी लेकिन उसका पति सामने आकर खड़ा हो गया, और उसकी बांह कसकर पकड़ ली। 

''तुम क्‍या करने जा रही हो?'' वह भराई हुई आवाज में फुसफुसाया। 

''मेरा बेटा है, हरबर्ट'', वह यंत्रवत ढंग से संघर्ष करते हुए चिल्‍लायी, '' मैं तो भूल ही गयी थी कि उसे दो मील दूर से आना है। तुम मुझे रोक क्‍यों रहे हो? जाने दो। मुझे दरवाजा खोलना है।'' 

''भगवान के लिये उसे अंदर मत आने दो।'' वृद्ध व्‍यक्ति कांपते हुए चिल्‍लाकर बोला। 

''तुम अपने बेटे से डरते हो'' उसने संघर्ष करते हुए चीखकर कहा, ''मुझे जाने दो। हरबर्ट, मैं आ रही हूँ। मैं आ रही हूँ।'' 


दरवाजे पर एक और दस्‍तक हुई, फिर एक और, फिर एक और---। वृद्ध महिला ने ने अचानक झटके से अपने आपको स्‍वतन्‍त्र कर लिया और कमरे से बाहर भागी। उसका पति भी पीछे दौड़ा और विनयपूर्वक उसे पुकारने लगा जबकि वह सीढि़यों से नीचे उतर रही थी।वृद्ध व्‍यक्ति ने सांकल खुलने की और नीचे की चटकनी सुनने की आवाज सुनी। फिर वृद्ध महिला की तनावपूर्ण और हॉंफती हुई आवाज। 


''चटकनी', वह जोर से चिल्‍लाई, ''नीचे आओ। मैं इस तक पहुँच नहीं पा रही हूँ।'' 


लेकिन उसका पति अपने हाथों-पैरों के बल फर्श पर पड़े हुए ताबीज को ढूँढ रहा था। अगर उसके दरवाजा खोलने से पहले ही यह उसे मिल जाये तो---। लगातार दस्‍तकों की बौछार से घर गूँज रहा था, और उसने कुर्सी घिसटने की आवाज सुनी क्‍योंकि उसकी पत्‍नी दरवाजे के पास कुर्सी को रख रही थी। उसने चटकनी के धीरे से खुलने की आवाज सुनी, ठीक उसी क्षण वह पंजा उसके हाथ में आ गया और हड़बड़ी में उसने तीसरी इच्‍छा बुदबुदाई। 


दस्‍तक अचानक बन्‍द हो गयी, हालांकि इसकी प्रतिध्‍वनियां अब भी घर में गूँज रही थीं। उसने कुर्सी के पीछे खिसकने की आवाज सुनी, और दरवाजा खुल गया। एक ठण्‍डी हवा का तेज झोंका सीढि़यों से होकर गुजर गया, और दुख और निराशा से भरे पत्‍नी के तीव्र विलाप के बीच वह साहस बटोरकर दौड़ता हुआ पहले तो उसके पास गया और फिर बाहर फाटक की ओर। शान्‍त और निर्जन सड़क के दूसरी ओर स्‍ट्रीट लैम्‍प जगमगा रहा था। 

-समाप्‍त

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मंगलवार, 17 मई 2011

जानवर



प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्‍यकार हेक्‍टर हयूग मुनरो (18 December 1870 – 13 November 1916) जिनको 'साकी' के उपनाम से जाना जाता था, प्रसिद्ध अंग्रेजी कहानीकार थे। उनकी विनोदपूर्ण और कभी-कभी वीभत्‍स कहानियों में तत्‍कालीन एडवर्डियन समाज पर खूब व्‍यंग्‍य देखने को मिलते हैं। कहानी वि‍धा में उनकी तुलना ओ0 हेनरी और डोरोथी पार्कर से की जाती है। उनकी कहानियों में स्‍पष्‍टता से रचे गये चरित्र और सूक्ष्‍म वर्णन देखने को मिलते हैं। 'The Open Window' उनकी सर्वश्रेष्‍ठ कहानी मानी जाती है। प्रस्‍तुत है उनकी एक रोचक कहानी 'The Bull' का हिन्‍दी अनुवाद-

टॉम यॉर्कफील्‍ड शुरू से ही अपने सौतेले भाई लॉरेन्‍स से घृणा करता था और बरसों बीतते-बीतते इस घ़ृणा ने कुछ नम्र होकर उपेक्षा की एक सहनीय भावना का रूप ले लिया था। उससे घ़ृणा करने का कोई दृष्टिगत कारण नहीं था,उससे केवल खून का रिश्‍ता था,उसका कोई शौक या रुचि टॉम के साथ मेल नहीं खाती थी और साथ ही अभी तक उसके साथ टॉम के किसी तरह के झगड़े की नौबत भी नहीं आई थी। लॉरेन्‍स ने अपनी जिन्‍दगी की शुरुआत में ही फॉर्म छोड़ दिया था, और अपनी मॉं के द्वारा छोड़ी गयी छोटी सी रकम पर कुछ सालों तक अपना गुजारा करता रहा। उसने चित्रकारी को व्‍यवसाय के रूप में अपना लिया और ऐसा बताया जाने लगा कि वह इसमें अच्‍छा कमा लेता है, कम से कम इतना अच्‍छा कि उसका गुजारा चल सके। उसने जानवरों की चित्रकारी में विशेषज्ञता प्राप्‍त की, और उसे अपने चित्रों के लिए कुछ खरीदार पाने में भी सफलता मिल गयी। टॉम को अपने भाई की तुलना में स्‍वयं की एक सुनिश्चित श्रेष्‍ठता की सुखदायी अनुभूति होती थी: लॉरेन्‍स एक मामूली कलाकार था, उससे ज्‍यादा कुछ नहीं, हालॉंकि उसे अगर जानवरों का चित्रकार कहकर बुलाया जाता तो वह कुछ ज्‍यादा प्रभावशाली लगता था। टॉम एक किसान था, बहुत बड़ा किसान नहीं, मगर हेल्‍सरी फॉर्म उसके परिवार के पास कुछ पीढि़यों से था, और अपनी अच्‍छी पैदावार के लिए मशहूर था। टाम के पास जो थोड़ी-बहुत पूँजी थी, उससे उसने अपने पशुधन को संभालने और बढ़ाने की पूरी कोशिश की, और उसने क्‍लोवर फेयरी नाम के एक बैल को पाल रखा था, ऐसा बैल उसके आसपास के पड़ोसियों में किसी के पास नहीं था। इसने भले ही किसी पशुओं की प्रतियोगिता के मैदान में कोई हलचल न मचाई हो, मगर यह एक ताकतवर,सुडौल और हृष्‍ट-पुष्‍ट जानवर था जो एक छोटे किसान के पास हो सकता था। बाजार के दिनों में किंग्‍स हेड में क्‍लोवर फेयरी की बड़ी चर्चा रहती थी, और यॉर्कफील्‍ड कहा करता था कि वह सौ पौण्‍ड के बदले में भी क्‍लोवर फेयरी को अपने से अलग नहीं करेगा। छोटे खेती के व्‍यवसाय में यह एक बड़ी रकम होती हे और अस्‍सी पौण्‍ड के ऊपर कोई भी रकम टॉम को लालच देने के लिए काफी थी। 


अपने फार्म पर लॉरेन्‍स के दुर्लभ आगमन के मौके का बड़ी खुशी के साथ पूरा फायदा उठाते हुए टॉम उसे उस बाड़े को दिखाने ले गया जहॉं क्‍लोवर फेयरी अकेला था - चारागाह रूपी हरम में एक विधुर की तरह। टॉम को अपने भाई के प्रति अपनी घृणा पुनर्जीवित होती हुई महसूस हुई, उसे वह कलाकार अपने तौर-तरीके में और भी सुस्‍त, अपनी वेशभूषा में और भी बेढंगा, और अपनी बातचीत में कुछ क़ृपा दिखाते हुए विनम्र सुर मिलाता हुआ प्रतीत हो रहा था। उसने आलू की शानदार पैदावार पर कोई ध्‍यान नहीं दिया, बल्कि फाटक के पास एक कोने में पड़े पीले फूलों वाले खर-पतवार के प्रति ज्‍यादा उत्‍साह दिखाया, जो उस भली प्रकार निराई किये गये फॉर्म के मालिक के लिए अपमानजनक था। फिर जब वह काले मुँह वाले मेमनों के झुण्‍ड, जो शायद अपनी ओर ध्‍यान खींचने के लिये ही शोर मचा रहा था, की ओर देखकर उनकी तारीफ कर सकता था, उसने सामने की पहाड़ी पर बलूत के गुल्‍मों की लहलहाती पत्तियों की तारीफ करना शुरू कर दिया। लेकिन अब उस चीज का निरीक्षण करने के लिए ले जाया जा रहा था, जो हेल्‍सरी फॉर्म की शान थी: भले ही उसकी तारीफ के पीछे उसकी कुढ़न हो, भले ही वह बधाइयां देने में कंजूसी दिखा रहा हो, मगर उस दुर्दम्‍य पशु की श्रेष्‍ठता को उसे देखना और मानना ही पड़ेगा। कुछ सप्‍ताह पहले, किसी व्‍यावसायिक कार्य से टान्‍टन की यात्रा के दौरान टॉम को अपने सौतेले भाई की ओर से उस शहर के स्‍टूडियो में आने का निमन्‍त्रण मिला था, जहां लॉरेन्‍स अपने एक चित्र की प्रदर्शनी लगाने जा रहा था- एक बड़े कैनवस पर घुटनों तक गहरी दलदली जमीन में खड़े हुए एक बैल का चित्र - बेशक यह अपने आपमें एक अच्‍छा चित्र था, और लॉरेन्‍स इस पर बहुत मुग्‍ध था, ''मेरी बनाई हुई अब तक की सर्वोत्‍तम क़ति'' उसने बार-बार कहा था, और टॉम ने दरियादिली से कहा था कि यह वाकई में एक सजीव चित्र है। लेकिन अब उस रंगसाज को एक सजीव चीज दिखाई जाने वाली थी, सौन्‍दर्य और शक्ति का जीता जागता सबूत, ऐसी चीज जिस पर नजरें ठहर जायें, ऐसी तस्‍वीर जो एक फ्रेम की चार दीवारों के बीच एक ही अपरिवर्तित मुद्रा में खड़े रहने के बजाय हर बदलते पल के साथ नई भंगिमा और व्‍यवहार दर्शा सकती थी। टॉम ने लकड़ी का एक मजबूत दरवाजा खोला भूसा बिछे हुए एक यार्ड में ले गया।


''क्‍या यह शान्‍त रहता है'' कलाकार ने पूछा, ज्‍यों कि वह बैल कुछ सूँघता हुआ सा उनकी ओर बढ़ा।


''यह कभी कभी उछल-कूद मचाता है'' कहकर टॉम ने अपने सौतेले भाई को यह कयास लगाने के लिए छोड़ दिया कि क्‍या यह बैल 'अगर पकड़ सको तो पकड़ो' जैसा खेल तो नहीं खेलता है। लॉरेन्‍स ने बैल के कद पर एक-दो बेपरवाह टिप्‍पणियां कीं और उसकी उम्र वगैरह को लेकर एक-आध सवाल किये। और फिर बडे इत्‍मीनान से उसने बातचीत का रुख दूसरी ओर मोड़ दिया। 


''तुम्‍हें वह तस्‍वीर याद है जो मैनें तुम्‍हें टान्‍टन में दिखाई थी?'' उसने पूछा। 


''हॉं, टॉम ने रोष में कहा, ''दलदल में खड़ा हुआ एक सफेद मुँह वाला बैल। मुझे हियरफोर्ड नस्‍ल वाले ऐसे बैल पसंद नहीं हैं: थुलथुल दिखने वाले जंगली जानवर, मानों उनमें जान ही न हो। इसलिए उनका चित्र बनाना आसान होता है। यह गबरू जवान तो एक जगह रुकता ही नहीं, है न फेयरी?'' 


''मैनें वह तस्‍वीर बेच दी है'', लॉरेन्‍स ने आत्‍म-सन्‍तुष्टि से परिपूर्ण आवाज में बताया। 


''बेच दी'' टॉम ने कहा, ''सुनकर खुशी हुई। उम्‍मीद करता हूँ तुम्‍हें इसकी अच्‍छी कीमत मिली होगी।'' 


''मुझे इसके लिए 300 पौण्‍ड मिले।'' लॉरेन्‍स ने कहा। 


टॉम ने चेहरे पर क्रोध के भाव लाते हुए उसकी ओर देखा। तीन सौ पौण्‍ड। अच्‍छे से अच्‍छे बाजार मूल्‍य होने पर भी उसे अपने क्‍लोवर फेयरी के बदले 100 पौण्‍ड से ज्‍यादा न मिलते, और उधर उसके सौतेले भाई को एक वार्निश किये हुए कैनवस के टुकड़े को रंगने के लिए इससे तीन गुना धन मिल गया था। इस कटु अपमान का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था क्‍योंकि इसने क़ृपा दिखाने वाले विनीत और आत्‍म-सन्‍तुष्‍ट लॉरेन्‍स की विजय की प्रबल घोषणा कर दी थी। युवा किसान ने सोचा था कि वह अपनी सबसे कीमती चीज दिखाकर अपने सौतेले भाई के होश उड़ा देगा, लेकिन अब पासा पलट गया था, एक तस्‍वीर की भारी कीमत के सामने उसका कीमती जानवर तुच्‍छ और महत्‍वहीन हो गया था। यह तो बहुत ही अन्‍यायपूर्ण था। एक तस्‍वीर नकली जीवन की कुशल क़ृति से अधिक कुछ नहीं हो सकती थी, जबकि क्‍लोवर फेयरी जीती जागती चीज था, अपनी छोटी सी दुनिया का बादशाह, अपने गॉंव की एक शख्सियत। अपनी मृत्‍यु के पश्‍चात भी वह शख्सियत बरकरार रहने वाली थी, उसकी संतानें घाटी के चरागाहों और पहाडी के किनारे घास के मैदानों पर विचरण करेंगी, गौशालाएं उनसे खचाखच भरी रहेंगी, वे मैदानों में और बाजार के स्‍थानों में अपने लाल रंग से रंगीन धब्‍बों की भांति दिखाई पड़ेंगे,  किसी भी अच्‍छी बछिया या सुडौल बछड़े को देखकर लोग कहेंगे, ‘’वाह, यह पुराने क्‍लोवर फेयरी के खानदान का है।‘’ उस समय तस्‍वीर केवल टंगी रहेगी, बेजान और अपरिवर्तित, धूल और वार्निश के नीचे छिपी हुई, ऐसी चल सम्‍पत्ति जिसे जो किसी मुसीबत के समय बिल्‍कुल निरर्थक साबित होगी। 



‘’कुछ कमजोर दिमाग वाले मूर्ख लोग ही एक चित्र पर तीन सौ पौण्‍ड बरबाद करते होंगे; कुछ कह नहीं सकता, क्‍योंकि ऐसे लोगों की रुचि से मैं ईर्ष्‍या करता हूँ। मैं तो तस्‍वीर के बजाय असली चीज रखना अधिक पसंद करूँगा।‘' 


उसने उस जवान बैल की तरफ सिर हिलाकर इशारा किया, जो बारी-बारी से उनकी ओर घूरते हुए अपने नथुने को ऊपर उठाकर और फिर अपने सींगों को नीचे करके कुछ खेल और कुछ अधीरता के साथ सिर हिला रहा था।


लॉरेन्‍स ने चिढ़ाने वाले आनन्‍दपूर्ण तरीके से ठहाका लगाया। 


‘’मुझे नहीं लगता कि मेरी तस्‍वीर के खरीदार को यह चिंता करने की जरूरत है कि उसने अपना पैसा बरबाद कर दिया है, जैसा कि तुम कहते हो। जैसे-जैसे मैं और मशहूर होता जाऊँगा, मेरी तस्‍वीरों की कीमत बढ़ती जायेगी। आज से पांच या छह साल बाद किसी बिक्रीकक्ष में लगाने पर उस तस्‍वीर के शायद चार सौ पौण्‍ड मिलेंगे। तस्‍वीरों में निवेश करना बुरा नहीं है, अगर आपको सही व्‍यक्तियों की कृतियों को चुनने की जानकारी हो। अब तुम यह कह नहीं कह सकते कि जितने अधिक समय तक तुम उस बैल को अपने पास रखोगे, उसकी कीमत बढ़ती जायेगी। उसका महत्‍व कुछ ही समय के लिए है, और यदि तुम उसे अपने पास रखे रहोगे, उसके चमड़े के लिए तुम्‍हें केवल कुछ शिलिंग ही मिलेंगे, जबकि एक समय मेरे बैल की तस्‍वीर किसी खास चित्र वीथिका के लिए एक बड़ी रकम देकर खरीदी जा रही होगी।‘’


अब कुछ ज्‍यादा ही हो गया था। सत्‍य, निन्‍दा और अपमान की संयुक्‍त शक्ति ने टॉम यार्कफील्ड की संयम शक्ति पर कुछ ज्‍यादा ही दबाव डाल दिया था। उसने अपने दाहिने हाथ में बलूत की छड़ी ले रखी थी, अपने बायें हाथ से उसने लॉरेन्‍स की कैनरी रंग की रेशमी शर्ट का कॉलर पकड़ लिया। लॉरेन्‍स एक लड़ाकू आदमी नहीं था, शारीरिक हिंसा के भय से वह  उसी प्रकार अपना संतुलन खो‍  बैठा जैसे गुस्‍से के कारण टॉम ने अपना संतुलन खो दिया था, और तभी ऐसा हुआ कि क्‍लोवर फेयरी उस अभूतपूर्व दृश्‍य को देखकर आनन्दित हो उठा जब एक मनुष्‍य बाड़े के पार गिरते हुए चीख रहा था, जैसे कोई मुर्गी किसी नांद में अपना घोंसला बनाने की लगातार कोशिश करते हुए चीखती है। अगले ही आनन्‍दपूर्ण क्षण में, उस बैल ने लॉरेन्‍स को अपने बायें कंधे के ऊपर उछाल दिया, और उसके हवा में उछलने के दौरान ही उसकी पसलियों में सींग घुसाने की, और जब वह जमीन पर गिरा तो घुटनों के बल उस पर सवार हो गया। यह तो केवल टॉम का बलपूर्वक हस्‍तक्षेप ही था कि वह अपने कार्यक्रम का आखिरी हिस्‍सा छोड़ने के लिए राजी हुआ। 


टॉम ने पूरे समर्पण से और बिना किसी ईर्ष्‍याभाव के अपने सौतेले भाई का उपचार कर उसकी उन चोटों से पूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य लाभ कराया, जो अधिक गम्‍भीर नहीं थीं- केवल एक कंधे की खिसकी हड्डी, एक दो टूटी पसलियां, और स्‍नायुतंत्र की विफलता। आखिरकार, उस युवा किसान के दिमाग में अब घृणा का कोई अवसर नहीं रह गया था। लॉरेन्‍स का बैल वाला चित्र भले ही तीन सौ में बिका हो या छह सौ में, और भले ही किसी बड़ी चित्र वीथिका में उसकी तारीफ हजारों लोगों द्वारा की गई हो, लेकिन यह किसी आदमी को अपने कंधे के ऊपर उछाल नहीं सकता और उसके दूसरी ओर गिरने से पहले ही उसकी पसली में चोट नहीं कर सकता। यह क्‍लोवर फेयरी की उल्‍लेखनीय उपलब्धि थी, जो उससे छीनी नहीं जा सकती थी। 


लॉरेन्‍स अब भी जानवरों के चित्रकार के रूप में प्रसिद्ध है,लेकिन अब उसकी विषयवस्‍तु हमेशा बिल्ली के बच्‍चे, हिरन के बच्‍चे या मेमने होते हैं – बैल कभी नहीं। 

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

ज्‍योतिषी (कहानी)

दिन के समय वह अपना थैला खोलकर बैठ जाता और अपने सभी व्‍यावसायिक उपकरण जिनमें दर्जन भर कौडि़यां, कपड़े का चौकोर टुकड़ा जिस पर विचित्र रहस्‍मयी आलेखन बने हुए थे, एक किताब और ताड़पत्रों का एक पुलिन्‍दा आदि चीजें शामिल थीं, सामने फैलाकर रख लेता। उसका ललाट पवित्र भस्‍म और सिन्‍दूर से शोभायमान रहता, उसकी ऑंखों में एक अजीब सी चमक रहती, जो लगातार ग्राहकों की राह देखते देखते झलकने लगती थी लेकिन जिसे लोग दैवीय आभा समझ कर विश्‍वास कर लेते थे। तिलकयुक्‍त ललाट और गालों तक उतरते हुए गलमुच्‍छों के बीच स्थित होने के कारण उसकी ऑंखों का तेज और भी बढ़ जाता था। ऐसी वेशभूषा में तो एक मूढ़मति की ऑंखें भी तेजोमय लग सकती थीं। तिस पर वह अपने सिर पर केसरिया रंग की पगड़ी भी पहने रहता। उसका यह रंग-संयोजन कभी असफल नहीं होता था। लोग उसकी तरफ यों खिंचे चले आते थे, जैसे फूलों की ओर मधुमक्खियां। वह टाउन हॉल पार्क से होकर गुजरने वाली सड़क के किनारे इमली के पेड़ के नीचे बैठा करता था। यह जगह कई तरह से उसके लिए अहम थी। इस तंग सड़क पर सुबह से लेकर देर रात तक लोगों की भीड़ आती-जाती रहती थी। इस सड़क पर तमाम तरह के कारोबारी अपना व्‍यवसाय करते थे- दवा विक्रेता, चोरी के बर्तन और कबाड़ बेचने वाले, जादूगर वगैरह, और सबसे बढ़कर सस्‍ते कपड़े बेचने वाला एक दुकानदार जो दिन भर चिल्‍ला-चिल्‍ला कर लोगों का ध्‍यान खींचता रहता था। आवाज लगाने में दूसरा नम्‍बर था एक मूँगफली वाले का, जो अपने माल को रोज नया नाम देता था, जैसे 'बम्‍बई की आइसक्रीम', 'दिल्‍ली का बादाम' वगैरह, और लोग उसके पास भीड़ लगाते रहते थे। भीड़ का एक अच्‍छा हिस्‍सा उस ज्‍योतिषी के पास भी जुटता था। मूँगफली वाले की मूँगफलियों के ढेर पर जलती हुई बत्‍त्‍ती के सहारे ही ज्‍योतिषी का धंधा चलता था। इस जगह का कुछ आकर्षण इस वजह से भी था कि वहॉं पर नगर पालिका की कोई प्रकाश व्‍यवस्‍था नहीं थी। जो कुछ रोशनी थी वह दुकानों की वजह से थी। कुछ में सॉंय-सॉंय करती गैस लाइटें जलती रहतीं, कुछ में खम्‍भों से बंधी खुली बत्तियां और कुछ में लैम्‍प जलते रहते थे। ज्‍योतिषी की तरह इक्‍का-दुक्‍का लोग ऐसे भी थे जो दूसरों की बत्तियों के सहारे ही अपना काम चला लिया करते थे। कुल मिलाकर यह जगह रोशनी की किरणों के बीच आती-जाती छायाओं का अजीब सा ताना-बाना प्रतीत होती थी। यह माहौल ज्‍योतिषी के लिए बहुत उपयुक्‍त था, क्‍योंकि उसने तो कभी ज्‍योतिषी बनने के बारे में सोचा ही नहीं था। वह अपने खुद के भविष्‍य के बारे में कुछ नहीं जानता था। ज्‍योतिषी विद्या के बारे में वह उतना ही जानता था जितना उसके भोले-भाले ग्राहक। लेकिन उसे अपनी बातों से लोगों को खुश करना और अचरज में डाल देना, दोनों आता था। यह केवल थोड़ी सी सहज बुद्धि, अनुमान और चतुराई का खेल था। फिर भी ईमादारी से देखा जाये तो दूसरे कामों की तरह इस काम में भी मेहनत की जरूरत थी और दिन भर के बाद उसकी जो कमाई होती थी, उसका वह वास्‍तव में हकदार था।

वह बिना कुछ सोचे-विचारे अपना गॉंव छोड आया था। अगर वह वहॉं रहता, तो अपने पुरखों की खेती सम्‍भाल रहा होता और अपने पैत़ृक घर में आराम से विवाहित जीवन बिता रहा होता। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। किसी को बताये बगैर उसे अपना घर छोड़ना पड़ा और वह तब तक नहीं रुका जब तक गॉंव से कुछ सौ मील दूर नहीं निकल गया। एक गॉंववाले के लिए यह दूरी बहुत थी, मानों समुन्‍दर पार का फासला हो।

वह मानव जीवन के तमाम दुखों का अच्‍छा विश्‍लेषण कर लेता था- विवाह, सम्‍पत्ति, मानवीय संबंधों की उलझनें। लम्‍बे अभ्‍यास ने उसकी समझ को पैना कर दिया था। पॉंच मिनट के अन्‍दर वह भॉंप लेता था कि माजरा क्‍या है। वह हर सवाल के लिए तीन पाई लेता था, जब तक सामने वाला व्‍यक्ति कम से कम 10 मिनट तक न बोल ले, तब तक वह अपना मुँह नहीं खोलता था, ताकि उसे दर्जन भर सवालों और सुझावों के लिए पर्याप्‍त जानकारी मिल सके। जब वह सामने वाले व्‍यक्ति की हथेली देखकर कहता, ''तुम्‍हें अपने प्रयत्‍नों का पूरा फल नहीं मिल रहा है'', तो दस में से नौ लोग उसकी बात मान लेते थे। या वह सवाल करता, ''क्‍या तुम्‍हारे घर-परिवार या रिश्‍तेदारी में कोई ऐसी स्‍त्री है जिसका व्‍यवहार तुम्‍हारे प्रति ठीक नहीं है?'' या फिर वह चारित्रिक विश्‍लेषण करते हुए कहता, ''तुम्‍हारी अधिकांश समस्‍याओं का कारण तुम्‍हारा स्‍वभाव है। तुम्‍हारे शनि की जो स्थिति है, उसे देखते हुए यह तो होना ही है। तुम रोबदार स्‍वभाव और कठोर डील-डौल के स्‍वामी हो।'' यह सुनकर लोगों का हृदय प्रसन्‍नता से भर जाता था, क्‍योंकि हममें से कोमल से कोमल व्‍यक्ति भी अपने आपको कठोर व्‍यक्तित्‍व का स्‍वामी समझता है।

मूँगफली वाले ने अपनी बत्‍ती बुझाई और उठकर घर चला गया। यह ज्‍योतिषी के भी उठने का संकेत था, क्‍योंकि अब उसके लिए बिल्‍कुल अंधेरा हो चुका था, केवल हरी रोशनी की एक लकीर कहीं से आती हुई उसके सामने जमीन पर पड़ रही थी। उसने अपनी कौडि़यां और बाकी सामान उठाया और उन्‍हें थैले में रख ही रहा था, कि हरी रोशनी की लकीर मिट गयी। उसने ऊपर देखा तो सामने एक आदमी खड़ा था। शायद कोई ग्राहक है, सोचकर उसने कहा, ''तुम परेशान दिख रहे हो। यहॉं बैठो और मुझसे बात करो, तुम्‍हें अवश्‍य लाभ होगा।'' उस आदमी ने कुछ अस्‍पष्‍ट सा उत्‍तर दिया। ज्‍योतिषी ने अपना आमंत्रण दोहराया। उस आदमी ने अपनी हथेली ज्‍योतिषी की नाक के ठीक नीचे लाकर कहा, ''तुम अपने आप को ज्‍योतिषी कहते हो?'' ज्‍योतिषी को चुनौती मिलती हुई प्रतीत हुई और उसने उसकी हथेली को हरी रोशनी में लाकर देखा और कहा, ''तुम्‍हारा स्‍वभाव..............''
''बकवास बन्‍द करो। मुझे कोई काम की बात बताओ।'' उस आदमी ने कहा।
ज्‍योतिषी ने स्‍वयं को अपमानित महसूस किया। वह बोला, ''मैं हर सवाल के लिए तीन पाई लेता हूँ और जो कुछ तुम जानना चाहते हो, उसकी कीमत देनी होगी।''
इस पर उस आदमी ने एक आना निकालकर ज्‍योतिषी की ओर फेंका, ''मुझे कुछ सवाल पूछने हैं। अगर तुम धोखेबाज निकले, तो तुम्‍हें यह आना सूद समेत मुझे वापस करना होगा।''
''अगर मेरे जवाब सही हुए, तो क्‍या तुम मुझे पॉंच रुपये दोगे?''
''नहीं।''
''क्‍या आठ आने दोगे?''
''ठीक है, एक शर्त पर, अगर तुम गलत हुए तो तुम्‍हें इसका दूना मुझे वापस देना होगा।''
कुछ देर और बहस के बाद समझौता हो गया। ज्‍योतिषी ने आसमान की ओर कुछ प्रार्थना की, तब तक वह अजनबी अपना सिगार जलाने लगा। माचिस की रोशनी में ज्‍योतिषी ने उसके चेहरे की एक झलक देखी। सड़क पर जाम लगा हुआ था, गाडि़यां हॉर्न बजा रहीं थीं, तॉंगवाले अपने घोड़ों को टिटकारियां दे रहे थे, और भीड़ का शोरगुल पार्क के अन्‍धकारमय वातावरण को दहला रहा था। वह अजनबी सिगार का कश लेते हुए और धुआं उड़ाते हुए बेरुखी के साथ वहीं बैठ गया। ज्‍योतिषी बहुत असहज महसूस कर रहा था।

''अपना एक आना वापस रखो। मैं ऐसी चुनौतियों का आदी नहीं हूँ। आज मुझे देर हो गयी है़.........'' वह सामान बॉंधकर तैयार होने लगा।'' अजनबी ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोला, ''अब तुम ऐसे नहीं जा सकते। मैं जा रहा था और तुमने मुझे बुलाकर बिठाया था।'' उसकी पकड़ से ज्‍योतिषी कांप उठा, वह मरियल और कांपती हुई आवाज में बोला, ''मुझे आज जाने दो, मैं कल तुमसे बात करूँगा।''  अजनबी ने अपनी हथेली उसके चेहरे के सामने लाकर कहा, ''चुनौती चुनौती होती है। चलो बताओ।'' सूखते गले से ज्‍योतिषी ने बताना शुरू किया, ''कोई औरत है जो.........''
''चुप करो'', अजनबी ने कहा, ''मैं यह सब नहीं जानना चाहता। मैं अपनी खोज में कामयाब होऊंगा या नहीं? इसका जवाब दो और फिर तुम जा सकते हो। वरना मैं तुम्‍हारे सारे पैसे निकलवाये बगैर तुम्‍हें जाने नहीं दूँगा।''
ज्‍योतिषी ने कुछ मन्‍त्र बुदबुदाये और बोला, ''ठीक है, मैं बताऊंगा। लेकिन अगर मेरी बात सही हुई  तो क्‍या तुम मुझे एक रुपया दोगे? वरना मैं अपना मुँह नहीं खोलूँगा, तुम चाहे जो कर लो।''
काफी मोलभाव के बाद अजनबी राजी हो गया।
ज्‍योतिषी ने कहा, ''तुम मौत के मुँह में जाते-जाते बचे थे।''
''हॉं।'' अजनबी ने अपनी छाती खोलकर निशान दिखाया, ''और?''
''और तुम्‍हें खेत  के पास वाले कुऍं में किसी ने धक्‍का दे दिया था। तुम्‍हें मरने के लिए छोड़ दिया था।''
''मैं तो मर ही गया था, अगर किसी राहगीर ने कुऍं में झॉंक कर न देखा होता।'' अजनबी ने उत्‍साह के अतिरेक में बताया। ''मैं उस आदमी तक कब पहुचूँगा?'' उसने अपनी मुट्ठी भींचते हुए कहा।
''परलोक में,'' ज्‍योतिषी ने उत्‍तर दिया। ''चार महीने पहले यहां से दूर एक कस्‍बे में उसकी मौत हो गयी। अब तुम उसे कभी नहीं देख पाओगे।'' अजनबी यह सुनकर तड़प उठा।
''गुरु नायक.....''
''तुम मेरा नाम जानते हो?'' उसने अचरज से कहा।
''मैं और भी बहुत कुछ जानता हूँ। गुरु नायक, जो मैं कह रहा हूँ, उसे ध्‍यान से सुनो। मैं देख रहा हूँ कि अगर तुम घर से बाहर रहे तो तुम्‍हारी जान को एक बार फिर खतरा हो सकता है।'' उसने एक चुटकी भर भस्‍म निकाली और उसे दी, ''इसे अपने माथे पर लगा लो और घर जाओ। दुबारा कभी दक्षिण की ओर यात्रा मत करना, तुम सौ साल जियोगे।''
''अब मैं भला घर क्‍यों छोड़ने लगा?'' अजनबी ने कुछ सोचते हुए कहा, ''मैं तो केवल उसी की तलाश में भटक रहा था कि वह मुझे मिले और मैं उसका दम घोंटकर उसे मार डालूँ।'' उसने पश्‍चाताप में सिर हिलाया। ''वह मेरे हाथों से बच गया। उम्‍मीद करता हूँ कि उसे जैसी मौत मिलनी चाहिए थी, वैसी ही मिली होगी।''
''वह एक लॉरी के नीचे कुचलकर मारा गया।''
यह सुनकर अजनबी को बड़ी तसल्‍ली हुई।

जब तक ज्‍योतिषी ने अपना सारा सामान थैले में रखा, तब तक एकदम सन्‍नाटा हो चुका था। हरी रोशनी की लकीर भी गायब हो चुकी थी और वह जगह एकदम अंधकारमय और सुनसान हो गयी थी। वह अजनबी भी ज्‍योतिषी को पैसे देने के बाद अंधेरे में गायब हो गया था।

आधी रात के करीब ज्‍योतिषी घर पहुँचा। उसकी पत्‍नी जो दरवाजे पर इन्‍तजार कर रही थी, उसने देरी का कारण पूछा। उसने पैसे पत्‍नी को दिये और बोला, ''लो गिनो इन्‍हें। ये सारे पैसे एक ही आदमी ने दिये हैं।''
''साढ़े बारह आने'' पत्‍नी गिनकर बोली। वह बहुत खुश थी, ''कल मैं थोड़ी सी खांड (चीनी) और कुछ नारियल खरीद कर लाऊंगी। बच्‍ची कई दिन से मिठाई के लिए जिद कर रही है। कल मैं उसके लिए अच्‍छी चीजें बनाऊंगी।''
''सुअर के बच्‍चे ने मुझे धोखा दिया। उसने एक रुपये देने का वायदा किया था।'' ज्‍योतिषी ने कहा। उसने पति की ओर देखा, ''तुम कुछ परेशान हो। कोई गड़बड़ हो गयी है?''
''कुछ नहीं।''

रात को खाने के बाद वह बिस्‍तर पर बैठा और पत्‍नी को बताया, ''तुम्‍हें पता है आज मेरे सिर से एक बहुत बड़ा बोझ हट गया। इतने सालों तक मैं यही समझता रहा कि मेरे सिर पर एक आदमी की हत्‍या का पाप है। इसी कारण मैं गांव से भागकर यहां आकर रहने लगा, तुमसे विवाह किया। वह आदमी जिन्‍दा है।''

उसने आश्‍चर्य से कहा, ''तुमने हत्‍या करने की कोशिश की थी?''

''हॉं, हमारे गॉंव में, तब मैं एक मूर्ख नौजवान था। एक दिन हमने शराब पी, जुऑं खेला, और आपस में झगड़ने लगे- अब यह सब क्‍यों सोचना? सोने का वक्‍त हो गया है।'' उसने जम्‍हाई लेकर कहा, और बिस्‍तर पर पसर गया।

(आर. के. नारायण की कहानी 'An Astrologer's Day' का अनुवाद)