सोमवार, 11 अप्रैल 2011

ये जिन्‍दगी कुछ भी सही, पर ये मेरे किस काम की

मैं बचपन से ही आर डी बर्मन साहब के संगीत का प्रेमी रहा हूँ। हिन्‍दी फिल्‍म संगीत को न सिर्फ उन्‍होंने नई दिशा प्रदान की वरन संगीत के क्षेत्र में नये नये प्रयोग भी किये। आज भी उनका संगीत उतना ही तरो ताजा लगता है जितना पहले था। इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि जब रिमिक्सिंग का दौर चला तब सबसे ज्‍यादा आर डी बर्मन के गाने ही रिमिक्‍स किये गये और सबसे ज्‍यादा हिट हुए। अपने दौर के सभी प्रमुख पार्श्‍व गायकों के साथ उन्‍होंने काम किया।

लेकिन पंचम दा केवल एक अच्‍छे संगीतकार ही नहीं बल्कि एक अच्‍छे गायक भी थे। उनका गाया हुआ एक गीत जो शायद आपमें से बहुतों ने नहीं सुना होगा, यहां प्रस्‍तुत कर रहा हूँ। सुनकर बताइयेगा, कैसा लगा।



4 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Ye geet pahle nahee suna tha! Khoobsoorat alfaaz aawaaz aur saaz kaa triveni sangam!

आशुतोष की कलम ने कहा…

सुन्दर गाना..सुन्दर शब्द..
ये जिन्दगी बहुत काम की है....पंचम दा से बेहतर कौन जानता होगा..
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क्या वर्ण व्योस्था प्रासंगिक है ?? क्या हम आज भी उसे अनुसरित कर रहें हैं??

Patali-The-Village ने कहा…

सुन्दर गाना| सुन्दर शब्द|

Rahul Singh ने कहा…

बढि़या गीत, मैंने शायद पहली बार सुना, धन्‍यवाद.