सोमवार, 11 अप्रैल 2011

काल्‍ह करै सो आज कर

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर के पास एक याचक सहायता मॉंगने पहुँचा। धर्मराज ने उससे कहा, ''कल इसी समय मेरे सम्‍मुख उपस्थित होना, तुम्‍हें जो चाहिए दे दिया जाएगा।''


युधिष्ठिर के छोटे भ्राता भीम ने उनकी यह बात सुन ली। तुरन्‍त उन्‍होंने राजमहल के सभी सेवकों को बुलाकर घोषणा की कि अगले दिन विजय दिवस मनाया जायेगा। चारों ओर कानाफूसी आरम्‍भ हो गयी। हर कोई जानना चाहता था कि किसने विजय प्राप्‍त की और किस पर। धर्मराज तक भी यह समाचार पहुँचा। उन्‍होंने भीम को बुलाया और उनसे इस उत्‍सव का कारण पूछा।

भीम ने कहा, ''हमने म़ृत्‍यु पर एक दिन के लिए विजय प्राप्‍त कर ली है। धर्मराज ने एक याचक को, जो आज उनके पास सहायता मांगने आया था, कल आने के लिए कहा है। इसका तात्‍पर्य यह है कि धर्मराज को पूर्ण विश्‍वास है कि अगले 24 घण्‍टों तक वह जीवित रहेंगे। क्‍या यह काल पर विजय नहीं है्?''

धर्मराज युधिष्ठिर को तुरन्‍त अपनी भूल समझ में आ गयी। उन्‍होंने तुरन्‍त उस याचक को खोज कर बुलवाया और उसे यथोचित सहायता प्रदान की।

3 टिप्‍पणियां:

Learn By Watch ने कहा…

बढ़िया कहानी और प्रेरक भी

kshama ने कहा…

Wah! Kya baat sunaayee!

आशुतोष की कलम ने कहा…

बहुत गूढ़ बात बताई आप ने..
काल पर विजय कोई नहीं पा सका है
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क्या वर्ण व्योस्था प्रासंगिक है ?? क्या हम आज भी उसे अनुसरित कर रहें हैं??