एक बार एक अरबी अपने ऊँट के साथ कहीं सफर पर जा रहा था। रास्ते में एक रेगिस्तान पड़ता था जो बहुत दूर तक फैला हुआ था। अरबी को रात रेगिस्तान में ही अपना तम्बू लगाना पड़ा। ठण्डी रात में जब अरबी अपने तम्बू में चैन से सोया हुआ था, तभी ऊँट ने कंपकंपाती आवाज में बाहर से आवाज लगायी, ''मालिक, क्या मैं अपना मुँह तम्बू के अन्दर कर सकता हूँ, बाहर बहुत ठण्ड है।'' अरबी ने उसे ऐसा करने की आज्ञा दे दी। थोड़ी देर बाद ऊँट ने कहा, ''क्या मैं अपनी दोनों अगली टांगें और आधा धड़ अन्दर कर सकता हूँ, मुझे बहुत सर्दी लग रही है।'' अरबी मान गया। कुछ देर बाद ऊँट ने कहा, ''मालिक, आधी रात हो चुकी है, ठण्ड बढ़ती जा रही है। क्या मैं पूरी तरह तम्बू के अन्दर आ जाऊँ, मैं एक कोने में सिकुडकर बैठ जाऊँगा।'' अरबी ने उसे अनुमति दे दी। कुछ देर बाद ऊँट ने कहा, ''क्या आपको नहीं लगता कि यह तम्बू हम दो लोगों के लिए कुछ छोटा है, इसलिए बेहतर होगा कि आप बाहर चले जायें।'' और उसने जबरन अरबी को बाहर निकाल दिया।
किसी को ज्यादा सिर चढ़ाने का यही नतीजा होता है।
9 टिप्पणियां:
ha ha ha
ha ha ha
सुन्दर प्रेरणा दायक कहानी|
sahi sahi bilkul sahi..
सटीक....इसलिये कहते हैं ऊंगली पकड़ कर पहुँचा पकड़ना.... :)
अच्छी बोधकथा।
ला-जवाब" जबर्दस्त!!
saarthak bodh katha ... ungli pakad kar puncha pakadna ...
:) क्या बात है! :)
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