बोधकथा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
बोधकथा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 14 सितंबर 2011

अरबी और ऊँट

एक बार एक अरबी अपने ऊँट के साथ कहीं सफर पर जा रहा था। रास्‍ते में एक रेगिस्‍तान पड़ता था जो बहुत दूर तक फैला हुआ था। अरबी को रात रेगिस्‍तान में ही अपना तम्‍बू लगाना पड़ा। ठण्‍डी रात में जब अरबी अपने तम्‍बू में चैन से सोया हुआ था, तभी ऊँट ने कंपकंपाती आवाज में बाहर से आवाज लगायी, ''मालिक, क्‍या मैं अपना मुँह तम्‍बू के अन्‍दर कर सकता हूँ, बाहर बहुत ठण्‍ड है।'' अरबी ने उसे ऐसा करने की आज्ञा दे दी। थोड़ी देर बाद ऊँट ने कहा, ''क्‍या मैं अपनी दोनों अगली टांगें और आधा धड़ अन्‍दर कर सकता हूँ, मुझे बहुत सर्दी लग रही है।'' अरबी मान गया। कुछ देर बाद ऊँट ने कहा, ''मालिक, आधी रात हो चुकी है, ठण्‍ड बढ़ती जा रही है। क्‍या मैं पूरी तरह तम्‍बू के अन्‍दर आ जाऊँ, मैं एक कोने में सिकुडकर बैठ जाऊँगा।'' अरबी ने उसे अनुमति दे दी। कुछ देर बाद ऊँट ने कहा, ''क्‍या आपको नहीं लगता कि यह तम्‍बू हम दो लोगों के लिए कुछ छोटा है, इसलिए बेहतर होगा कि आप बाहर चले जायें।'' और उसने जबरन अरबी को बाहर निकाल दिया। 

किसी को ज्‍यादा सिर चढ़ाने का यही नतीजा होता है।

सोमवार, 30 मई 2011

बाल प्रतिभा

एक बार की बात है। एक विद्यालय के हिन्‍दी अध्‍यापक ने अपनी कक्षा के विद्यार्थियों को कुछ हिन्‍दी शब्‍द घर से लिखकर लाने को दिये। प्रत्‍येक शब्‍द को तीन-तीन बार लिखना था। उनमें से एक बालक बहुत मेधावी था। गृहकार्य करते समय उसने देखा कि एक शब्‍द 'सन्‍त' दिया हुआ है। उसने सोचा एक ही शब्‍द को तीन बार एक ही प्रकार लिखने से क्‍या लाभ। इसलिये उसने इस शब्‍द को तीन अलग-अलग प्रकार से लिखा - सन्‍त, संत, सन् त। 
अगले दिन कक्षाध्‍यापक ने जब उसकी अभ्‍यास पुस्तिका देखी तो उसे इसके लिए कसकर डांट लगाई और पहले वाले शब्‍द को सही मानकर बाकी दो शब्‍द काट दिये। स्‍वाभिमानी बालक प्रधानाचार्य के पास गया। उन्‍होंने सारी बात जानकर उस बच्‍चे को शाबाशी दी और कक्षाध्‍यापक को भविष्‍य में छात्रों को हतोत्‍साहित न करने की ताकीद की।

जानते हैं यह बालक कौन था? यह था बाल गंगाधर तिलक जो आगे चलकर देश का एक महान स्‍वतंत्रता सेनानी बना।

शुक्रवार, 13 मई 2011

चालाकी

एक मुर्गा एक ऊँची मुंडेर पर बैठा हुआ था। वह खूब जोर से बॉंग दे रहा था। उसी समय एक लोमड़ी उधर से निकली। मुर्गे को देखते ही उसके मुँह में पानी भर आया। मुंडेर बहुत जर्जर थी, अत: वहॉं तक लोमड़ी का पहुँचना सम्‍भव नहीं था इसलिए  वह उसको खाने की कोई दूसरी तरकीब सोचने लगी। उसने मुर्गे से कहा, ''मुर्गे भाई, क्‍या तुमने यह खबर सुनी है कि अब यह तय हो गया है कि कोई जानवर किसी दूसरे जानवर को नहीं खाएगा'?' मुर्गे ने कहा, ''मैनें तो यह खबर नहीं सुनी।'' इसी बीच शिकारी कुत्‍तों का एक झुण्‍ड दूर से आता दिखाई दिया। उनकी आहट पाते ही लोमड़ी भागने लगी। मुर्गे ने कहा, ''क्‍यों लोमड़ी बहन। भाग क्‍यों रही हो?अब तो कुत्‍ते तुम्‍हें नहीं खायेंगे!'' लोमड़ी यह कहते हुए भाग गयी कि शायद तुम्‍हारी तरह इन्‍होंने भी यह खबर नहीं सुनी हो।  

धूर्त और चालाक व्‍यक्ति की बात का कभी विश्‍वास नहीं करना चाहिए। 

मंगलवार, 10 मई 2011

सत्‍य वचन

एक बार की बात है। एक राज्‍य का राजा बहुत बूढ़ा हो गया था। उसका पुत्र अभी छोटा ही था इसलिए राजा उसके लिए एक योग्‍य मंत्री की तलाश में था। एक दिन उसने अपने सभी दरबारियों को बुलाया। उसने बारी-बारी से सभी दरबारियों से एक ही प्रश्‍न किया, ''क्‍या मैं एक अच्‍छा राजा हूँ?'' किसी दरबारी ने कहा, ''महाराज, आप एक आदर्श राजा हैं।'' दूसरे दरबारी ने कहा, ''आप संसार के सबसे अच्‍छे राजा हैं।'' इस प्रकार सभी ने उसकी बढ़-चढ़कर प्रशंसा की। राजा ने प्रत्‍येक दरबारी को एक एक हीरा दिया। एक दरबारी चुपचाप बैठा था। राजा ने उससे भी वही प्रश्‍न किया। उसने उत्‍तर दिया, ''निस्‍संदेह आप एक अच्‍छे राजा हैं। लेकिन संसार में आपसे भी अच्‍छे बहुत से राजा हैं।'' यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्‍न हुआ और उसे अपने पुत्र का अभिभावक बना दिया।   

मंगलवार, 3 मई 2011

मजाक

एक बार दो दोस्‍त टहलते हुए कहीं जा रहे थे। रास्‍ते में उन्‍होंने एक घास काटने वाले को घास काटते हुए देखा। उस घसियारे के जूते एक पेड़ के नीचे रखे हुए थे। यह देखकर एक दोस्‍त ने दूसरे से कहा, ''मित्र, आओ हम इसके जूते कहीं छिपा दें। जब उसे जूते नहीं मिलेंगे तो वह परेशान होकर इधर-उधर ढूँढेगा, बड़ा मजा आयेगा।'' इस पर दूसरे दोस्‍त ने कहा, ''तुम एक धनवान के पुत्र हो। इसलिए तुम्‍हारा ऐसा व्‍यवहार उचित नहीं होगा। अगर तुम उस गरीब आदमी के साथ मजाक करना ही चाहते हो, तो चुपके से उसके दोनों जूतों में एक एक अशर्फी रख दो। जब वह उन्‍हें देखेगा, तो बहुत प्रसन्‍न होगा, और मन ही मन तुम्‍हें आशीर्वाद देगा।'' पहले दोस्‍त ने अपनी साथी की सलाह मान ली और वैसा ही किया। 

वास्‍तव में हमें किसी के साथ मजाक करते समय इस बात का ध्‍यान रखना चाहिए कि उसे किसी प्रकार  की तकलीफ या नुकसान न  हो वर्ना मज़ाक एक दुखद घटना में बदल जाता है.  

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

वारिस

एक बार मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में एक नि:संतान व्‍यापारी के मरने पर उसकी सारी सम्‍पदा सरकार ने जब्‍त कर ली। एक महिला, जो स्‍वर्गीय व्‍यापारी की चचेरी बहन होने का दावा करती थी, बादशाह के पास पहुँची और बोली कि वह सम्‍पदा उसको मिलनी चाहिए। बादशाह ने उत्‍तर दिया, ''तुम्‍हारा उस सम्‍पदा पर कोई हक नहीं बनता। तुम उसकी सगी बहन तो हो नहीं।'' इस पर महिला ने प्रत्‍युत्‍तर दिया, ''जहॉंपनाह, यह सच है कि मैं उसकी सगी बहन नहीं हूँ, बल्कि चचेरी बहन हूँ। लेकिन आपका उससे क्‍या रिश्‍ता था जो आप उसकी दौलत पर अपना हक जताते हैं?'' बादशाह इस उत्‍तर से प्रसन्‍न हुआ। उसने तुरन्‍त हुक्‍म दिया कि व्‍यापारी की सारी सम्‍पत्ति उस महिला को सौंप दी जाये और यह भी हुक्‍म दिया कि भविष्‍य में किसी के मरने पर सरकार द्वारा उसकी सम्‍पत्ति तब तक न जब्‍त की जाये जब तक उसका मालिक बिना किसी वारिस के न मरा हो।

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

काल्‍ह करै सो आज कर

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर के पास एक याचक सहायता मॉंगने पहुँचा। धर्मराज ने उससे कहा, ''कल इसी समय मेरे सम्‍मुख उपस्थित होना, तुम्‍हें जो चाहिए दे दिया जाएगा।''


युधिष्ठिर के छोटे भ्राता भीम ने उनकी यह बात सुन ली। तुरन्‍त उन्‍होंने राजमहल के सभी सेवकों को बुलाकर घोषणा की कि अगले दिन विजय दिवस मनाया जायेगा। चारों ओर कानाफूसी आरम्‍भ हो गयी। हर कोई जानना चाहता था कि किसने विजय प्राप्‍त की और किस पर। धर्मराज तक भी यह समाचार पहुँचा। उन्‍होंने भीम को बुलाया और उनसे इस उत्‍सव का कारण पूछा।

भीम ने कहा, ''हमने म़ृत्‍यु पर एक दिन के लिए विजय प्राप्‍त कर ली है। धर्मराज ने एक याचक को, जो आज उनके पास सहायता मांगने आया था, कल आने के लिए कहा है। इसका तात्‍पर्य यह है कि धर्मराज को पूर्ण विश्‍वास है कि अगले 24 घण्‍टों तक वह जीवित रहेंगे। क्‍या यह काल पर विजय नहीं है्?''

धर्मराज युधिष्ठिर को तुरन्‍त अपनी भूल समझ में आ गयी। उन्‍होंने तुरन्‍त उस याचक को खोज कर बुलवाया और उसे यथोचित सहायता प्रदान की।

बुधवार, 19 जनवरी 2011

मस्तिष्क और शरीर

एक बार एक युवा धनुर्धर ने, जिसे धनुर्विद्या की कई प्रतियोगिताओं में विजयश्री प्राप्त हो चुकी थी, अहंकार में आकर धनुर्विद्या के एक ख्यातिप्राप्त गुरु को चुनौती दे डाली। युवक ने पहले एक वृक्ष के तने पर लक्ष्य चिन्ह बनाकर उसे अपने तीर से बेध दिया। फिर अपना तकनीकी कौशल  दिखाते हुए उसने दूसरा तीर चलाकर पहले वाले तीर के दो फाड़ कर दिये।


वृद्ध गुरु की ओर उन्मुख होकर उसने कहा, ’’क्या आप ऐसा कर सकते हैं?’’

वृद्ध गुरु न तो विचलित हुए न ही उन्होंने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया बल्कि उस युवक को अपने साथ एक पहाड़ी पर चलने के लिए कहा। युवक उनका मन्तव्य नहीं समझ सका लेकिन जिज्ञासावश  उनके पीछे चल पड़ा। चलते चलते वे एक बड़ी और गहरी दरार के पास पहुंचे। उस दरार को पार करने के लिए लकड़ी का एक लट्ठा पड़ा हुआ था जो बहुत अस्थिर और फिसलन भरा था।
 गुरु स्थिरचित्त होकर उस लट्ठे पर चलते हुए बीचोबीच जाकर खड़े हो गए। वहॉं से उन्होंने दूर खड़े एक वृक्ष को लक्ष्य बनाकर तीर चलाया जो सीधा वृक्ष के तने में जाकर लगा। गुरु सुरक्षित वापस आकर अपनी जगह पर खड़े हो गये और युवक से कहा, ’’अब तुम्हारी बारी है।’’ लेकिन वह युवक बाण चलाना तो दूर, लट्ठे पर एक कदम रखने का भी साहस न कर सका।
वृद्ध गुरु ने कहा, ’’तुम्हारे पास धनुर्विद्या का कौशल है, किन्तु वह मानसिक कौशल  नहीं है जो तीर छोड़ने के लिए प्रेरित करता है।’’
तात्पर्य यह  है कि मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना शरीर को प्रशिक्षित करने से अधिक महत्वपूर्ण है।

सौजन्य: Timeless Treasures Volume-IV (NTPC द्वारा प्रकाशित कहानी संग्रहों  की श्रृंखला)
अनुवाद: घनश्याम मौर्य

सोमवार, 27 दिसंबर 2010

तिल का ताड़

बात चाहे व्‍यक्तिगत स्‍तर की हो, सामाजिक स्‍तर की या राष्‍ट्रीय स्‍तर की, प्राय: यह देखा जाता है कि सारे तर्क वितर्क, वाद विवाद और कभी कभार तो हिंसा  के पश्‍चात हम वापस समझौते की स्थिति में पहुँचते हैंा वैश्‍विक स्‍तर पर भी राष्‍ट्रों के बीच भीषण युद्ध के पश्‍चात संधि होते देखी जाती हैा शायद यह इंसानी फितरत है कि आदमी कड्वे अनुभवों से गुजरने के बाद ही सही रास्‍ते पर आता हैा कई बार हम किसी छोटी सी घटना को लेकर तिल का ताड़ बनाने से बाज़ नहीं आते.

एक गड़रिये के पास 101 भेंड़ें थींा उसके दो बेटे थे जो उन भेडों को चराने जाते और उनकी देखभाल करते थेा एक बार गडरिया गम्‍भीर रूप से बीमार पडा और परलोक सिधार गयाा उसके बेटों में सम्‍पत्ति का बंटवारा हुआ तो दोनों के हिस्‍से में 50-50 भेंड़ें आयींा बाकी बची एक भेड़ को किस तरह बांटा जाये, इस बात को लेकर दोनों असमंजस में थेा अंत में यह तय हुआ कि उस एक भेड़ की देखभाल दोनों भाई मिलकर करेंगे और उस भेड़ की एक ओर की   ऊन एक भाई लेगा और दूसरी ओर की ऊन दूसरा भाईा 

एक दिन एक भाई ने उस भेड की अपने हिस्‍से की ऊन काट लीा अगले दिन वह भेड नाली में मरी पड़ी मिलीा दोनों भाइयों में झगड़ा हुआा दूसरे भाई ने कहा कि एक ओर का ऊन काट लिये जाने के कारण भेड़ का संतुलन बिगड गया और वह नाले में गिर गयीा पहले भाई ने कहा कि यदि दूसरे भाई द्वारा दूसरी ओर की ऊन भी काट ली जाती तो भेड़ का संतुलन बना रहता और वह नाले में न गिरतीा मामला अदालत में पहुँच गयाा जब तक मुकदमा समाप्‍त हुआ, तब तक दोनों भाइयों की सारी भेड़ें बिक चुकी थींा