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गुरुवार, 19 मई 2011

भूले बिसरे मीत

कल मेरे सबसे खास दोस्‍त प्रेम की बेटी की बर्थडे पार्टी थी। पार्टी में पहुँचा, कुछ देर लोगों से गप शप की, मेरा तीन वर्षीय बेटा अपने सर्किल में व्‍यस्‍त हो गया और मैं अपने दोस्‍तों के बीच। लेकिन एक सरप्राइज मेरा इन्‍तजार कर रहा था। प्रेम अपने साथ कुछ दोस्‍तों को लेकर आया और मुझसे बोला, ''अब आये हैं अपने लंगोटिया यार, अब रंग जमेगा।'' मेरी बांछें खिल गयीं। उनमें से ज्‍यादातर दोस्‍त मेरी उच्‍चतर माध्‍यमिक कक्षाओं के सहपाठी थे। इधर पांच छह महीनों बाद उनसे मुलाकात हो रही थी। तभी प्रेम ने उनकी भीड़ को चीरते हुए एक युवक को सामने ला खड़ा किया और बोला, ''अबे पहचाना ये कौन है?'' मैंने एक क्षण उसे देखा और खुशी से लगभग चीख ही पड़ा, ''संतोष।'' और फौरन ही दोनों साथी गले लग गये। संतोष मेरा पुराना सहपाठी था। सन् 1993 में जब हमने आठवी कक्षा पास की, उसके बाद से आज मेरी उससे मुलाकात हुई थी, पूरे 17 साल बाद। वह अपने परिवार के साथ अब कोटा, राजस्‍थान में शिफ्ट हो गया था। उसके बाद दोस्‍तों की जो महफिल चली, गप्‍पबाजी हुई, उसमें ग्‍यारह बज गये। मेरा बेटा खेल खेल कर बोर हो गया और बोला, ''पापा घर चलना है।'' तब मुझे होश आया कि घर भी जाना है। जल्‍दी-जल्‍दी खाने की औपचारिकता करके हम फिर बतियाने बैठ गये। एक दूसरे का फोन नं0 लिया और अगले दिन मैनें उन सबको अपने घर पर आने का न्‍यौता दिया। पुराने दोस्‍तों से मिलकर न जाने शरीर में कैसी ऊर्जा दौड़ने लगी थी, मानों 100-200 ग्राम खून बढ़ गया हो। 

घर पहुँचने पर श्रीमती जी ने बेटे से पूछा, ''बेटा आपको पार्टी में मजा आया?''  ''हॉं, मैं पलक (बर्थडे गर्ल) के साथ खिलौने खेल रहा था और पापा ढेर सारे अंकल के साथ जोर जोर से बात कर रहे थे और जोर से हँस रहे थे।''