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सोमवार, 25 जुलाई 2011

मेरी 100वीं पोस्‍ट - आत्‍म मंथन

आज मैं अपने ब्‍लॉग की 100वीं पोस्‍ट लिख रहा हूँ। मुझे ब्‍लॉगिंग करते हुए चौथा वर्ष हो रहा है। वर्ष 2007 में जब 'कादम्बिनी' पत्रिका में बालेन्‍दु शर्मा दाधीच जी का लेख 'ब्‍लॉग हो तो बात बने' पढ़ा था, तो जोश में आकर अपना भी एक ब्‍लॉग  बना डाला। लेकिन जैसा कि कई ब्‍लॉगरों के साथ होता है, ब्‍लॉग बनाकर और एक दो हल्‍की-फुल्‍की पोस्‍ट चिपकाकर शान्‍त बैठ गया। मेरी गलतफहमी थी कि दो चार पोस्‍ट लिखते ही ब्‍लॉगजगत में मशहूर हो जाऊँगा और दर्जनों टिप्‍पणियों की बरसात मेरी हर पोस्‍ट पर होने लगेगी। आज जब अपने ब्‍लॉग की शुरुआत की कुछ पोस्‍ट देखता हूँ तो उस समय की मेरी ब्‍लॉग लेखन संबंधी अपरिपक्‍वता का एहसास होता है। धीरे धीरे मुझे एहसास हुआ कि मैनें गलत कारणों से ब्‍लॉगिंग शुरू की है। ब्‍लागिंग सस्‍ती लोकप्रियता का साधन नहीं है, न ही इसे ऐसा बनाया जाना चाहिए। लेकिन एक चीज मैं ईमानदारी से कहना चाहूँगा कि मैनें सस्‍ती लोकप्रियता के लिए कभी भी ऊल-जलूल या विवादास्‍पद पोस्‍ट नहीं लिखी, जैसा कि कुछ ब्‍लॉगर कर रहे हैं। लेकिन मुझे ब्‍लाग लिखने के साथ साथ दूसरों के ब्‍लॉग पढ़ने में भी मजा आने लगा। पिछले कुछ समय से ब्‍लॉग लेखन के प्रति गम्‍भीरता और जागरुकता बढ़ने का कारण है इसका बढ़ती हुई उपादेयता के प्रति हर क्षेत्र में हो रही स्‍वीकारोक्ति। फिर वरिष्‍ठ ब्‍लॉगरों के अनुभवों और सुझावों को पढ़कर भी ज्ञानवर्द्धन हुआ।  

इतने दिनों के ब्‍लागिंग के अनुभव के बाद कुछ बातें मैनें नोटिस की हैं जो आप सबके साथ बांटना चाहूँगा। पहली बात तो यह कि लोकप्रिय पोस्‍ट की सूची में सबसे ऊपर वही पोस्‍ट होती हैं जिनका शीर्षक ध्‍यानाकर्षक या रुचिकर होता है, लेकिन जरूरी नहीं कि उन्‍हें टिप्‍पणियां भी अधिक मिलें। टिप्‍पणियों की संख्‍या ब्‍लॉग में लिखी गयी सामग्री पर निर्भर करती है। दूसरी बात, कविताओं पर अधिक टिप्‍पणियां मिलती हैं। शायद इसलिये कि कविता लिखना और समझना गद्य की तुलना में सरल होता है। हालांकि आजकल की कविता भी बौद्धिक हो चली है। तीसरी बात, लम्‍बी पोस्‍ट को केवल वही पाठक पूरी तरह पढ़ते हैं जो उस विषय के प्रति विशेष रुचि रखते हैं। अन्‍यथा तमाम पाठक पूरी पोस्‍ट पढे बिना ही 'अच्‍छा है' , 'बढि़या रचना' जैसी टिप्‍पणियां दे देते हैं। चौथी बात, आम तौर पर महिला ब्‍लॉगरों के ब्‍लॉग पर अधिक टिप्‍पणियां आती हैं। कारण क्‍या है, मैं अभी तक समझ नहीं सका। पांचवीं बात, यदि आपका ब्‍लॉग किसी विषय विशेष या क्षेत्र विशेष की ही जानकारी निरन्‍तर उपलब्‍ध कराता है, तो उसके भविष्‍य उज्‍ज्‍वल होने की अधिक सम्‍भावना है और उस पर ब्‍लॉग ट्रैफिक निरन्‍तर बना रहता है। छठी बात, ब्‍लॉगिंग शुरू करना बहुत आसान है, लेकिन ब्‍लॉग लेखन में निरन्‍तरता बनाये रखना बहुत मुश्किल है। एक सीमा के बाद आदमी को निरर्थकता का बोध होने लगता है। यही वह समय है जब ब्‍लॉगर को सेल्‍फ-मोटिवेशन की जरूरत है। ब्‍लॉगिंग एक रचनात्‍मक कार्य है, इसे केवल आर्थिक लाभ और हानि के तराजू में तोलना उचित नहीं है। हालांकि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की बढ़ती धमक को देखते हुए यह आशा की जा सकती है कि हिन्‍दी ब्‍लॉगरों को भी जल्‍द ही अंग्रेजी ब्‍लॉगरों की तरह कमाई होने लगेगी। 

सच कहूँ तो पाठकों की टिप्‍पणियां प्राप्‍त करने की लालसा अब भी रहती है, लेकिन केवल यह जानने के लिए कि मेरी पोस्‍ट में क्‍या कमी थी और क्‍या अच्‍छाई। घटिया, बेढंगी और विवादास्‍पद पोस्‍ट न तो आज तक लिखी है, न ही कभी लिखूँगा ऐसा प्रण कर रखा है। जिस दिन ऐसा लगा कि ब्‍लॉगजगत में ऐसा किये बिना टिकना मुश्किल है, उस दिन ब्‍लागिंग से तौबा कर लूँगा। लेकिन फिलहाल मुझे ब्‍लागिंग का भविष्‍य उज्‍ज्‍वल ही दिख रहा है। 

अन्‍त में इतना ही कहना चाहूँगा कि इतने दिनों तक ब्‍लॉग जगत का जो  स्‍नेह मुझे मिला है, उसके लिए सभी का आभारी हूँ और आगे भी आप सभी का स्‍नेहाकॉंक्षी रहूँगा। सन्‍देश के रूप में यही कहूँगा कि ब्‍लॉगिंग एक दुधारी तलवार है, इस इस्‍तेमाल सम्‍भाल कर करना चाहिए।