इण्डिया ने वर्ल्ड कप जीता और पूरे देश में धूम धडाका होने लगा। चलो छुटटी हुई। एक महीने से चल रहा सर्कस खत्म हुआ। हर खिलाड़ी को एक एक करोड बीसीसीआई से बतौर इनाम मिल गये। अभी अपनी अपनी राज्य सरकारों से मिलने बाकी हैं। यह बात और है कि दूसरे खेलों के खिलाडि़यों के हिस्से सिर्फ मूंगफलियां ही आती हैं। उस पर तुर्रा यह कि सरकार ने इस विश्व कप का टैक्स में रियायत की भी घोषणा कर दी। कोई मनमोहन सिंह जी से पूछे कि क्या ऐसी रियायत दूसरे खेलों के आयोजनों को नसीब हुई है। खैर, लगे हाथों मनमोहन सिंह जी ने राजनीतिक अवसरवादिता का परिचय देते हुए गिलानी जी के साथ बैठकर भारत-पाकिस्तान मैच देख डाला और आगे की बातचीत की जमीन भी तैयार कर दी। हालांकि जनता अच्छी तरह जानती है कि यह सब तमाम घोटालों और विवादों से ध्यान बंटाने का हथकण्डा भर था। यह कुछ कुछ वैसा ही था जब अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पर जब मोनिका लेविंस्की प्रकरण पर महाभियोग लाया जाने वाला था, तब उन्होंने जनता का ध्यान बंटाने के लिए ओसामा को खतम करने के बहाने से अफगानिस्तान पर मिसाइलें दागनी शुरू कर दी थीं।
कुल मिलाकर वर्ल्ड कप जीतने से सभी को राहत मिली। महीने भर से सरकारी दफतरों से बाबुओं के अक्सर गायब रहने का सिलसिला तो थमेगा। छात्रों के अभिभावक राहत की सांस ले रहे हैं कि कम से बचे हुए इम्तहान तो बच्चे कायदे से दे सकेंगे। खासकर भारत के जीतने के बाद। हारने के बाद तो अवसादग्रस्त बच्चे फेल होने की ही तैयारी करते नजर आते। गृह मंत्रालय राहत की सांस ले रहा है कि सब ठीक ठाक निपट गया, कहीं कोई आतंकवादी घटना या विस्फोट नहीं हुआ। फिल्म जगत चैन की सांस ले रहा है कि चलो, अब नई फिल्में रिलीज की जा सकती हैं।
लेकिन यह राहत की सांस थोडे समय के लिए ही है। कुछ ही समय बाद आई पी एल के मैच शुरू हो जायेंगे। फिर से एक दूसरा सर्कस शुरू होगा जो कहीं ज्यादा रंगीन होगा। साइना नेहवाल और पेस-भूपति के मैच भले ही टीवी पर लाइव न आयें, पर क्रिकेट का प्रसारण निर्बाध जारी रहेगा। हमारा देश क्रिकेट भक्त है, यहां आम जिन्दगी से लेकर राजनीति, व्यापार, धर्म कर्म सब में क्रिकेट शामिल है। यह बात अलग है कि आम जन को इससे कुछ हासिल नहीं होता सिवाय क्षणिक खुशी के, लेकिन इस क्षणिक खुशी के लिए न जाने कितना वक्त बर्बाद करना पड़ता है। विचारणीय बात है कि एक शताब्दी से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी क्रिकेट अभी तक केवल आठ-नौ देशों में ही लोकप्रिय खेल का दर्जा पा सका है। उसमें भी हम हिन्दुस्तानियों के बीच यह सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। कारण साफ है, हमारे पास विश्व में सबसे ज्यादा फालतू समय है। हम इस फालतू समय का उपयोग क्रिकेट का आनंद लेने में करते हैं। कृपया किसी और खेल का नाम मत लीजिए। वी लव ओन्ली क्रिकेट।
कुल मिलाकर वर्ल्ड कप जीतने से सभी को राहत मिली। महीने भर से सरकारी दफतरों से बाबुओं के अक्सर गायब रहने का सिलसिला तो थमेगा। छात्रों के अभिभावक राहत की सांस ले रहे हैं कि कम से बचे हुए इम्तहान तो बच्चे कायदे से दे सकेंगे। खासकर भारत के जीतने के बाद। हारने के बाद तो अवसादग्रस्त बच्चे फेल होने की ही तैयारी करते नजर आते। गृह मंत्रालय राहत की सांस ले रहा है कि सब ठीक ठाक निपट गया, कहीं कोई आतंकवादी घटना या विस्फोट नहीं हुआ। फिल्म जगत चैन की सांस ले रहा है कि चलो, अब नई फिल्में रिलीज की जा सकती हैं।
लेकिन यह राहत की सांस थोडे समय के लिए ही है। कुछ ही समय बाद आई पी एल के मैच शुरू हो जायेंगे। फिर से एक दूसरा सर्कस शुरू होगा जो कहीं ज्यादा रंगीन होगा। साइना नेहवाल और पेस-भूपति के मैच भले ही टीवी पर लाइव न आयें, पर क्रिकेट का प्रसारण निर्बाध जारी रहेगा। हमारा देश क्रिकेट भक्त है, यहां आम जिन्दगी से लेकर राजनीति, व्यापार, धर्म कर्म सब में क्रिकेट शामिल है। यह बात अलग है कि आम जन को इससे कुछ हासिल नहीं होता सिवाय क्षणिक खुशी के, लेकिन इस क्षणिक खुशी के लिए न जाने कितना वक्त बर्बाद करना पड़ता है। विचारणीय बात है कि एक शताब्दी से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी क्रिकेट अभी तक केवल आठ-नौ देशों में ही लोकप्रिय खेल का दर्जा पा सका है। उसमें भी हम हिन्दुस्तानियों के बीच यह सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। कारण साफ है, हमारे पास विश्व में सबसे ज्यादा फालतू समय है। हम इस फालतू समय का उपयोग क्रिकेट का आनंद लेने में करते हैं। कृपया किसी और खेल का नाम मत लीजिए। वी लव ओन्ली क्रिकेट।