सोमवार, 25 अप्रैल 2011

स्‍साला एक मच्‍छर आदमी को हिजड़ा बना देता है

''स्‍साला एक मच्‍छर आदमी को हिजड़ा बना देता है।'' फिल्‍म 'यशवन्‍त' में नाना पाटेकर का बोला गया यह संवाद खूब लोकप्रिय हुआ था। तारीफ करनी चाहिए संवाद लेखक की सोच की जिसने मच्‍छर और इंसान के बीच के रिश्‍ते को नजर में रखते हुए यह संवाद लिखा। 

वैसे इस संवाद को थोड़ा गहरे अर्थ में लें तो यह असल जिन्‍दगी में भी सही साबित होता है और शायद आगे भी होता रहेगा। दरअसल अभी कुछ दिनों पहले ही विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की जो रिपोर्ट आई है उसके अनुसार दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में मलेरिया रोग की रोकथाम के लिए पिछले दशक में जो प्रयास किये गये हैं उसके कारण मलेरिया के मरीजों की संख्‍या में कमी आई है लेकिन इसका दुष्‍प्रभाव यह हुआ है कि इस दौरान इस्‍तेमाल की गयी तमाम मलेरिया रोधक दवाओं और रसायनों के प्रति मच्‍छरों ने प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। मलेरिया की प्रमुख कारगर दवा आर्टीमिसीन के प्रति मच्‍छर अधिक प्रतिरोधक हो गये हैं और अब उन पर इस दवा का वह असर नहीं हो रहा जो पहले होता था। 

यह कोई नयी बात नहीं है। इंसान के आस पास के वातावरण में और उसके दैनिक जीवन में जिन प्राणियों से उसका सामना  होता है, मच्‍छर उनमें से एक है। चूहे, छिपकली, कॉकरोच, मक्‍खी, मच्‍छर जैसे जीव न जाने कितने शताब्दियों से हमारे घरों में डेरा जमाते रहे हैं। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि इनमें से कॉकरोच और मच्‍छर सर्वाधिक प्रतिरोधक क्षमता वाले जीव हैं। मच्‍छरों के प्रकोप से बचने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा  अब तक न जाने कितनी दवायें, छिड़काव वाले रसायन, धूमक इत्‍यादि बनाये गये लेकिन मच्‍छर जैसा ढीठ जीव है कि हार मानने को तैयार ही नहीं। हर बार वह नयी प्रतिरोध क्षमता के साथ इंसान का खून चूसने को तैयार रहता है। मॉस्‍कीटो कॉयल से लेकर एन्‍टी-मॉस्‍कीटो वेपोराजइर और मसहरी जैसे तमाम जतन करके हम देख चुके हैं। लेकिन मच्‍छर है कि मानता ही नहीं। किसी न किसी तरह मसहरी के अन्‍दर भी मौका लगने पर घुस ही जाता है, मानों कसम खा रखी हो कि तुम कितना भी कर लो, मैं तो तुम्‍हारा खून चूस के रहूँगा। 

मशहूर अंग्रेज लेखक ए.जी. गार्डिनर का लेख 'The Fellow Traveller' याद आ गया। रेलगाड़ी के एक डिब्‍बे में अकेला बैठा लेखक और उसे रास्‍ते भर परेशान करता डिब्‍बे में उड़ता एक मच्‍छर। तमाम कोशिशों के बावजूद लेखक उस मच्‍छर को मार नहीं पाता। अन्‍त में वह स्‍वीकार करता है कि इंसान और मच्‍छर एक दूसरे के हमसफर हैं जो इस जीवनयात्रा में एक दूसरे का  साथ निभाने के लिये धरती पर आये हैं। 

हम भले ही अपने आपको दुनिया का सर्वश्रेष्‍ठ प्राणी कहते हों, लेकिन मच्‍छर जैसे छोटे जीव की प्रतिरोधक क्षमता हमारे तमाम अनुसंधानों, तमाम आविष्‍कारों, तमाम कोशिशों पर भारी पड़ रही है। शायद यही सब सोचकर संवाद लेखक ने यह डॉयलॉग लिखा था। 

4 टिप्‍पणियां:

आशुतोष की कलम ने कहा…

सत्य फ़रमाया आप ने एक सत्य और, अगर परमाणु युद्ध हो जाए और सबका विनाश हो जाए फिर भी ये जीव जीवित रहेगा ..





आशुतोष की कलम से....: मैकाले की प्रासंगिकता और भारत की वर्तमान शिक्षा एवं समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव :

आशुतोष की कलम ने कहा…

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भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

घनश्याम जी... बहुत अच्छा लेख लिखा है.. मैंने भी ये कहानी पढ़ी थी... मच्छर तो फिर भी हम मार लेते हैं लेकिन समाज के अजगरों का क्या किया जाये..

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

अच्छा लिखा आपने...बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!