रविवार, 4 दिसंबर 2011

साहब की कॉलबेल

एक सरकारी महकमे में एक अधिकारी नये-नये ट्रान्सफर होकर आये थे। उन्हें कॉलबेल बजाने की बहुत बीमारी थी। कई बार वह यों ही बिना बात कॉलबेल बजाते और जब चपरासी हाजिर होता तो कहते, ’’काम तो कुछ नहीं है। मैं तो केवल चेक कर रहा था कि तुम ड्यूटी पर मौजूद हो कि नहीं।’’ उनकी इस आदत से ऑफिस के सारे लोग तंग आ चुके थे। बार बार घण्टी बजने से सबका ध्यान भंग होता था और झुंझलाहट भी होती थी, पर साहब से इस बारे में कुछ कहने की हिम्मत किसी में न थी। आखिरकार जब पानी सर से ऊपर हो गया तो सभी कर्मचारियों ने मिलकर एक तरकीब सोची। एक दिन वह साहब जब अपने चैम्बर में एक बहुत जरूरी काम में व्यस्त थे, तब चपरासी बार-बार जाकर दरवाजा खोलकर झांकता और वापस चला जाता। अंत में परेशान होकर साहब ने उसे बुलाया और डंपटते हुए पूछा, ’’तुम्हें ऑफिस मैनर्स पता नहीं हैं? बिना बुलाये बार-बार कमरे में झांक कर क्यों जाते हो?’’  चपरासी ने नरम स्वर में जवाब दिया, ’’कुछ नहीं साहब, मैं देख रहा था कि आप ड्यूटी पर मौजूद हैं या नहीं।’’ यह सुनते ही अधिकारी महोदय को शायद अपना खुद का जुमला याद आ गया। उस दिन से उन्होंने बिना बात कॉलबेल बजाने की आदत से तौबा कर ली।

6 टिप्‍पणियां:

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

साहब के नहले पर चपरासी का दहला भारी पड़ हया।

kshama ने कहा…

Ha,ha,ha! Ganimat ki,chapraasi ko daant nahee padee!

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहद खूबसूरत ...पोस्ट
शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!

SANDEEP PANWAR ने कहा…

ऐसे अधिकारी एक-आध तो मिल ही जाता है।

virendra sharma ने कहा…

बहुत खूब क्या दबंग चपरासी था ,साहब की बोलती बंद कर दी .

अनूप शुक्ल ने कहा…

वाह! बहुत खूब!