बात चाहे व्यक्तिगत स्तर की हो, सामाजिक स्तर की या राष्ट्रीय स्तर की, प्राय: यह देखा जाता है कि सारे तर्क वितर्क, वाद विवाद और कभी कभार तो हिंसा के पश्चात हम वापस समझौते की स्थिति में पहुँचते हैंा वैश्विक स्तर पर भी राष्ट्रों के बीच भीषण युद्ध के पश्चात संधि होते देखी जाती हैा शायद यह इंसानी फितरत है कि आदमी कड्वे अनुभवों से गुजरने के बाद ही सही रास्ते पर आता हैा कई बार हम किसी छोटी सी घटना को लेकर तिल का ताड़ बनाने से बाज़ नहीं आते.
एक गड़रिये के पास 101 भेंड़ें थींा उसके दो बेटे थे जो उन भेडों को चराने जाते और उनकी देखभाल करते थेा एक बार गडरिया गम्भीर रूप से बीमार पडा और परलोक सिधार गयाा उसके बेटों में सम्पत्ति का बंटवारा हुआ तो दोनों के हिस्से में 50-50 भेंड़ें आयींा बाकी बची एक भेड़ को किस तरह बांटा जाये, इस बात को लेकर दोनों असमंजस में थेा अंत में यह तय हुआ कि उस एक भेड़ की देखभाल दोनों भाई मिलकर करेंगे और उस भेड़ की एक ओर की ऊन एक भाई लेगा और दूसरी ओर की ऊन दूसरा भाईा
एक दिन एक भाई ने उस भेड की अपने हिस्से की ऊन काट लीा अगले दिन वह भेड नाली में मरी पड़ी मिलीा दोनों भाइयों में झगड़ा हुआा दूसरे भाई ने कहा कि एक ओर का ऊन काट लिये जाने के कारण भेड़ का संतुलन बिगड गया और वह नाले में गिर गयीा पहले भाई ने कहा कि यदि दूसरे भाई द्वारा दूसरी ओर की ऊन भी काट ली जाती तो भेड़ का संतुलन बना रहता और वह नाले में न गिरतीा मामला अदालत में पहुँच गयाा जब तक मुकदमा समाप्त हुआ, तब तक दोनों भाइयों की सारी भेड़ें बिक चुकी थींा