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गुरुवार, 14 जुलाई 2011

जुगाड़

एक बार एक विदेशी भारत घूमने आया। उसने भारत के बारे में बहुत पढ़ा और सुना था और उसकी भारत दर्शन की बड़ी इच्‍छा थी। इसलिए भारत भ्रमण के लिए वह अपनी महँगी कार भी साथ में लेकर आया ताकि आराम से पूरा भारत घूमा जा सके। अपनी कार में  वह  तमाम पर्यटन स्‍थलों की सैर कर रहा था। रास्‍ते में एक जगह उसकी कार खराब हो गई। उसने दौड़ भाग कर कई मैकेनिक बुलवाये लेकिन कोई उस कार को नहीं ठीक कर सका। आखिर में एक मैकेनिक ने दावा किया कि वह उसकी कार को ठीक कर सकता है। उसने कार का भली-भांति निरीक्षण-परीक्षण किया। उसने कार में लगी हुई एक लोहे की टूट गयी चकरी को निकाला और बताया कि इसे बदलना पडेगा।  'मैं अभी आया' कहकर वहां से चला गया। घण्‍टे-डेढ़ घण्‍टे बाद बाद जब वह लौटा तो उसके हाथ में लोहे की दो-तीन छोटी-छोटी वैसी ही चकरियां थीं। एक चकरी उसने कार में फिट कर दी और बाकी दो चकरियां उस विदेशी को पकड़ाते हुए कहा, ''इन्‍हें रख लीजिये, रास्‍ते में अगर फिर टूट जाये तो लगवा लीजियेगा।'' विदेशी उस मैकेनिक की तरकीब पर खुश भी हुआ और आश्‍चर्यचकित भी। उसने पूछा, ''यह कौन सी चीज है?'  मैकेनिक ने जवाब दिया, ''साहब, इसे जुगाड़ कहते हैं।''  विदेशी ने यह शब्‍द भली-भांति दिमाग में बैठा लिया।

भारत दर्शन के बाद जब वह अपने देश लौटने को हुआ तो उसने सोचा क्‍यों न भारत के प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की जाये और भारत दर्शन के अपने अनुभवों के बारे में उन्‍हें बताया जाये। बड़ी मुश्किल से उसकी मुलाकात प्रधानमंत्री से हुई। उसने भारत और यहां के लोगों की बड़ी तारीफ की और बताया कि उसे भारत में एक चीज बहुत पसंद आई और वह उसे अपने देश ले जाना चाहता है। प्रधानमंत्री के पूछने पर उसने जवाब दिया कि वह चीज है 'जुगाड़'। प्रधानमंत्री ने जवाब दिया, 'वह मैं आपको कैसे दे सकता हूँ, उसी से तो मेरी सरकार चल रही है।''