गूगल इमेज से साभार |
अभी कुछ देर पहले ही समीर लाल जी की पोस्ट 'बचपन के दिन भुला न देना' पढ़ी। पढ़कर मजा तो आया ही साथ ही मेरे अपने बचपन और घर परिवार के बच्चों से जुड़ी घटनायें भी ताजा हो गईं। ऐसी ही एक मजेदार घटना आपसे शेयर करने को जी चाहता है।
मेरे बड़े भाई साहब केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी हैं। यह घटना उन दिनों की है जब उनकी पोस्टिंग चण्डीगढ़ में थी। उनकी बड़ी बेटी भूमिका उस समय तीन वर्ष की थी। एक दिन भाई साहब ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे, उसी समय किसी का टेलीफोन आ गया। नन्हीं भूमिका ने, जिसे फोन की घण्टी बजने पर सबसे पहले झपट कर फोन उठाने का शौक था, अपनी आदत के मुताबिक तुरन्त फोन उठा लिया और बोली, ''हैलो, कौन बोल रहा है'' उधर से जवाब आया, ''बेटा, मैं अहलूवालिया अंकल बोल रहा हूँ। जरा अपने पापा जी से बात कराइये।'' नन्हीं बच्ची ने अपने पापा को फोन पकड़ाते हुए कहा, ''पापा, ये लो, हलुआ अंकल का फोन है।'' भाई साहब ने जब फोन पर बात की तब उन्हें पता चला कि 'हलुआ अंकल' कौन हैं। इस घटना को जब उन्होंने हम सबको सुनाया तब हम हंसते हंसते दोहरे हो गये।
नन्हीं भूमिका अब आठ साल की हो गई है लेकिन अब भी हम यह घटना सुनाकर उसे चिढ़ाते रहते हैं। वास्तव में ऐसी घटनायें ही हमारे बचपन को यादगार बना देती हैं और इन्हीं के बहाने हम बार बार अपने बचपन में लौटते रहते हैं।