-1-
मुझको ज़रा समझा ये माजरा तो दीजिये।
इस मौके पे फबता मुहावरा तो दीजिये।
तैयार बाज़ीगर है, खड़े हैं तमाशबीन
पर खेल दिखाने को दायरा तो दीजिये।
महफिल में अभी तक नहीं छाया है वो सुरूर,
हर शख्स के गिलास में सुरा तो दीजिये।
संगीत में तिलिस्म अब रहा नहीं भगवान,
कोई तानसेन, बैजू बावरा तो दीजिये।
मैं हूँ नयी पीढ़ी का उभरता हुआ शायर,
मुझको भी दावत-ए-मुशायरा तो दीजिये।
-2-
फ़र्ज़ और क़र्ज़ का वो मारा है.
दोनों पाटों में फँस के हरा है.
आखिरी हफ्ता है महीने का,
घर में ईंधन न कोई चारा है.
पगार वाले दिन दरवाज़े पर,
देनदारों ने फिर पुकारा है.
आज दफ्तर से घर में आते ही,
उसने बच्चों को फिर से मारा है.
मुझको ज़रा समझा ये माजरा तो दीजिये।
इस मौके पे फबता मुहावरा तो दीजिये।
तैयार बाज़ीगर है, खड़े हैं तमाशबीन
पर खेल दिखाने को दायरा तो दीजिये।
महफिल में अभी तक नहीं छाया है वो सुरूर,
हर शख्स के गिलास में सुरा तो दीजिये।
संगीत में तिलिस्म अब रहा नहीं भगवान,
कोई तानसेन, बैजू बावरा तो दीजिये।
मैं हूँ नयी पीढ़ी का उभरता हुआ शायर,
मुझको भी दावत-ए-मुशायरा तो दीजिये।
-2-
फ़र्ज़ और क़र्ज़ का वो मारा है.
दोनों पाटों में फँस के हरा है.
आखिरी हफ्ता है महीने का,
घर में ईंधन न कोई चारा है.
पगार वाले दिन दरवाज़े पर,
देनदारों ने फिर पुकारा है.
आज दफ्तर से घर में आते ही,
उसने बच्चों को फिर से मारा है.