गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

गुज़र गया जो कल इतिहास का वो हिस्सा है.

गुज़र गया जो कल इतिहास का वो हिस्सा है।
तमाम उम्र भर का अच्छा-बुरा किस्सा है।
ये किस्सा हम सभी सुनते हैं और सुनाते हैं।
कभी हँसते हैं कभी रोते हैं और गाते हैं।
खबर रहे कि ये इतिहास यहीं कायम है।
महज पुराने वक्यातों का ये संगम है।
बदल सकेगा नहीं, इसकी अमिट स्याही है।
इसमें चैन-ओ-अमन कहीं, कहीं तबाही है।
इसके अन्दर नसीहतों का जो खज़ाना है।
वो वक़्त का बहुत परखा हुआ, पुराना है।
हम इन नसीहतों को आज में जब ढालेंगे।
जैसा चाहेंगे आने वाला कल बना लेंगे।
- घनश्याम मौर्य

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