बुधवार, 5 मई 2010

चार कुनबों में बंटा परिवार है.

चार कुनबों में बंटा परिवार है।
घर का मुखिया भोथरी तलवार है।

है शराफत का मुलम्मा बाहरी,
दिल से तो हर आदमी मक्कार है।

सब्र थोडा कर नहीं सकता कोई,
गैर का हक लेने को तैयार है।

रौशनी से जगमगाता घर तो है,
पर दिलों में बढ़ रहा अंधियार है।

एक-दूजे को सभी यूँ कोसते,
सांप जैसे मारता फुंफकार है।

ये नज़ारा आज तो घर-घर में है,
ताज्जुब क्या कलियुगी संसार है।