बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

फेसबुक जी फेसबुक

फेसबुक जी फेसबुक।
अपनी-अपनी केस बुक।
गोरे-काले चेहरे इसमें,
देस और परदेस बुक।
सच्‍चे-झूठे जाल बनाती,
रिश्‍तों की यह बेस बुक।
सपन सुहाये, अपन पराये,
लगती मन की ठेस बुक।
बिछडों को फिर से मिलवाये,
हो जाती है ट्रेस बुक।
डोनेशन और फरियादों की,
कहलाती है ग्रेस बुक।
क्‍या पहनावा  किसको भाये,
बन जाती है ड्रेस बुक।
मेरे तेरे सबके रंग-ढंग,
दिखलाती हर भेस बुक।
जन-जन को झकझोर जगाये,
हो जाती फिर प्रेस बुक।

2 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Ha,ha,ha!Wah! Maza aa gaya!

E-Digital book ने कहा…

बहुत बढ़िया सर अच्छा लगा पढ़कर