एक बार धर्मराज युधिष्ठिर के पास एक याचक सहायता मॉंगने पहुँचा। धर्मराज ने उससे कहा, ''कल इसी समय मेरे सम्मुख उपस्थित होना, तुम्हें जो चाहिए दे दिया जाएगा।''
युधिष्ठिर के छोटे भ्राता भीम ने उनकी यह बात सुन ली। तुरन्त उन्होंने राजमहल के सभी सेवकों को बुलाकर घोषणा की कि अगले दिन विजय दिवस मनाया जायेगा। चारों ओर कानाफूसी आरम्भ हो गयी। हर कोई जानना चाहता था कि किसने विजय प्राप्त की और किस पर। धर्मराज तक भी यह समाचार पहुँचा। उन्होंने भीम को बुलाया और उनसे इस उत्सव का कारण पूछा।
भीम ने कहा, ''हमने म़ृत्यु पर एक दिन के लिए विजय प्राप्त कर ली है। धर्मराज ने एक याचक को, जो आज उनके पास सहायता मांगने आया था, कल आने के लिए कहा है। इसका तात्पर्य यह है कि धर्मराज को पूर्ण विश्वास है कि अगले 24 घण्टों तक वह जीवित रहेंगे। क्या यह काल पर विजय नहीं है्?''
धर्मराज युधिष्ठिर को तुरन्त अपनी भूल समझ में आ गयी। उन्होंने तुरन्त उस याचक को खोज कर बुलवाया और उसे यथोचित सहायता प्रदान की।