एक बार एक विदेशी भारत घूमने आया। उसने भारत के बारे में बहुत पढ़ा और सुना था और उसकी भारत दर्शन की बड़ी इच्छा थी। इसलिए भारत भ्रमण के लिए वह अपनी महँगी कार भी साथ में लेकर आया ताकि आराम से पूरा भारत घूमा जा सके। अपनी कार में वह तमाम पर्यटन स्थलों की सैर कर रहा था। रास्ते में एक जगह उसकी कार खराब हो गई। उसने दौड़ भाग कर कई मैकेनिक बुलवाये लेकिन कोई उस कार को नहीं ठीक कर सका। आखिर में एक मैकेनिक ने दावा किया कि वह उसकी कार को ठीक कर सकता है। उसने कार का भली-भांति निरीक्षण-परीक्षण किया। उसने कार में लगी हुई एक लोहे की टूट गयी चकरी को निकाला और बताया कि इसे बदलना पडेगा। 'मैं अभी आया' कहकर वहां से चला गया। घण्टे-डेढ़ घण्टे बाद बाद जब वह लौटा तो उसके हाथ में लोहे की दो-तीन छोटी-छोटी वैसी ही चकरियां थीं। एक चकरी उसने कार में फिट कर दी और बाकी दो चकरियां उस विदेशी को पकड़ाते हुए कहा, ''इन्हें रख लीजिये, रास्ते में अगर फिर टूट जाये तो लगवा लीजियेगा।'' विदेशी उस मैकेनिक की तरकीब पर खुश भी हुआ और आश्चर्यचकित भी। उसने पूछा, ''यह कौन सी चीज है?' मैकेनिक ने जवाब दिया, ''साहब, इसे जुगाड़ कहते हैं।'' विदेशी ने यह शब्द भली-भांति दिमाग में बैठा लिया।
भारत दर्शन के बाद जब वह अपने देश लौटने को हुआ तो उसने सोचा क्यों न भारत के प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की जाये और भारत दर्शन के अपने अनुभवों के बारे में उन्हें बताया जाये। बड़ी मुश्किल से उसकी मुलाकात प्रधानमंत्री से हुई। उसने भारत और यहां के लोगों की बड़ी तारीफ की और बताया कि उसे भारत में एक चीज बहुत पसंद आई और वह उसे अपने देश ले जाना चाहता है। प्रधानमंत्री के पूछने पर उसने जवाब दिया कि वह चीज है 'जुगाड़'। प्रधानमंत्री ने जवाब दिया, 'वह मैं आपको कैसे दे सकता हूँ, उसी से तो मेरी सरकार चल रही है।''
19 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! विदेशी तो बड़ा ताज्जुब हुआ जब उनकी कार ठीक हो गयी इसलिए ये तो स्वाभाविक है की उसकी तारीफ़ प्रधानमंत्री से ज़रूर करें ! शानदार पोस्ट !
चलिए भारत के पास जुगाड़ तो है ....
भाई साहब सुरक्षा पटल पर ये भारत -माता कब तक द्रौपदी बनी रहेगी .क्या आइन्दा रोज़ मुंबई होंगें ?
घनश्याम मौर्या जी बहुत खूब निचोड़ के व्यंग्य किया है .जुगाड़ और पैवंद लगी सरकारें ही इस दौर में आ जा रहीं हैं .वैसे भी एक बिजूका (क्रो स्केयर बार )किसी विदेशी को "जुगाड़ "अपनी मर्जी से कैसे दे सकता है .यह लेनदेन एक्सचेंज ऑफर का काम तो मम्मी जी का ,जिन्हें चर्च ने भारतीय राजनीति की काया पर प्रत्यारोपित किया है .बहुत सटीक व्यंग्य किया है आपने .अच्छा लगा आपके ब्लॉग आना .
सुन्दर व्यंग्य.
आखिर 'जुगाड' से आपने भी पोस्ट लिख ही डाली.
मैकेनिक ने तो जुगाड की एक चकरी कार में फिट कर दी,दो विदेशी को दे दीं.
उसका जुगाड सस्ता रहा,पर सरकार चलाने का जुगाड बहुत महंगा पड़ता है.कई हजार करोड रूपये खर्च हो जाते हैं.
शानदार प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
"जुगाड़ "बहुत सटीक व्यंग्य|
शानदार प्रस्तुति के लिए आभार|
जुगाड़ की सही सेटिँग है देश तभी तो चल रहा है। अच्छा व्यंग्य है।
जुगाड़ की सही सेटिँग है देश तभी तो चल रहा है। अच्छा व्यंग्य है।
सरकार की पोल खोलता धारदार व्यंग
बधाई.
बिलकुल सही कहा आपने ! लगता है भारत को अब "जुगाड़ " का पेटेंट करा ही लेना चाहिए !
वाकई, सरकार जुगाड़ से ही चल रही है।
करारा व्यंग्य।
एक पुराने चुटकुले को आपने बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है। पहले देवेगौड़ा और गुजराल की सरकार में और उसके बाद जब ममता बनर्जी और जयललिता तंग कर रही थीं तब बाजपेयी जी की सरकार के समय भी यह चुटकुला काफी चला था। मुझे लगता है यह देश का शास्वत चुटुकुला है और इसे राष्ट्रीय चुटुकुला घोषित कर देना चाहिए।
I am amused to read ther post. hats off !
लगता इसी जुगाड़ पर अपना देश भी चल रहा है.बढ़िया लिखा है.
ह हा, बहुत बढिया रहा ये जुगाड।
मजा आ गया।
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बेहतर लेखन की ‘अनवरत’ प्रस्तुति।
अब आप अल्पना वर्मा से विज्ञान समाचार सुनिए..
आदरणीय घनश्याम मौर्या जी
नमस्कार !
बिलकुल सही कहा आपने !
..........शानदार प्रस्तुति के लिए आभार....
साइंस ब्लॉग पर आपकी सटीक टिपण्णी के लिए आभार .जुगाड़ से ही जुगाड़ है घनश्याम जी मौर्य कहीं भी घुस लो अगर जुगाड़ है तो .
bahut khoob.....
घनश्याम भाई शुक्रिया .
बढिया जुगाड़ है।
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