मैनें जिन्दगी अपनी तुम पर ही वारी।
ये दिन भी तुम्हारे ये रातें तुम्हारी।
जिधर देखती हूँ उधर तुम ही तुम हो,
मोहब्बत भी है ये अजब सी बीमारी।
तेरे हर कदम से सफर तय हो मेरा,
नहीं कोई मुश्किल अकेले तुम्हारी।
तुम्हारी जुदाई मैं यूँ सह रही हूँ,
घडी एक लगती है सदियों से भारी।
जहॉं भी हो तुम लौट आओ सलामत,
दुआ करती हर एक धडकन हमारी।
ये दिन भी तुम्हारे ये रातें तुम्हारी।
जिधर देखती हूँ उधर तुम ही तुम हो,
मोहब्बत भी है ये अजब सी बीमारी।
तेरे हर कदम से सफर तय हो मेरा,
नहीं कोई मुश्किल अकेले तुम्हारी।
तुम्हारी जुदाई मैं यूँ सह रही हूँ,
घडी एक लगती है सदियों से भारी।
जहॉं भी हो तुम लौट आओ सलामत,
दुआ करती हर एक धडकन हमारी।
7 टिप्पणियां:
लाजबाब गजल है भाई साहब !
tERE HAR KADAM SE SAFAR TYA HO MERA NAHI KOE MUSHKIL AKELE TUMAHARI
BADI UMDA GAZAL
Bahut Sunder Gazal...
बहुत खूब
Gyan Darpan
..
बहुत उम्दा!
बढ़िया !
बहुत लाजबाब गजल है|
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