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बुधवार, 22 दिसंबर 2010

’मानक रश्मि’ - अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन (RDSO) की राजभाषा पत्रिका

’मानक रश्मि’ अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन (RDSO) से प्रकाशित  होने वाली त्रैमासिक राजभाषा पत्रिका है। पत्रिका में अ.अ.मा.सं. के कर्मियों एवं अन्य साहित्यकारों की हिन्दी रचनाएं प्रकाशित  की जाती हैं। किसी विशेष  विधा का आग्रह नहीं होता, बस रचना मौलिक और अप्रकाशित होनी चाहिए। पत्रिका संबंधित मूल जानकारी निम्न प्रकार है-


1. प्रधान सम्पादकः श्री महेश मंगल, मुख्य राजभाषा अधिकारी एवं वरि0 कार्यकारी निदेशक/सिग्नल
2. सम्पादकः श्री जयबिन्द कुमार सिंह, उपनिदेशक/वित्त
3. उपसम्पादक श्री एफ0ए0 खान, सहायक हिन्दी अधिकारी
4. सम्पर्कः राजभाषा विभाग, अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन (RDSO), मानक नगर, लखनऊ-226011

पत्रिका का जुलाई-सितंबर’ 2010 अंक हाल ही में प्रकाशित  होकर आया है। इस अंक के प्रमुख आकर्षण हैं श्री संजीव जायसवाल ’संजय’ के उपन्यास ’सी-नेट’ का अंष। श्री संजीय जायसवाल वर्तमान में अ.अ.मा.सं. में उपनिदेशक/स्थापना के पद पर कार्यरत हैं। वह हिन्दी लेखन में काफी समय से सक्रिय हैं और एक साहित्यकार के तौर पर उनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनकी तमाम रचनायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाषित हो चुकी हैं। डॉ0 अमिता दुबे का लेख ’आस्था की भाषा है हिंदी’ अपने शीर्षक के अनुरूप न केवल हिंदी का महिमा-मंडन करता है वरन् हिन्दी के बढ़ते प्रभुत्व को भी रेखांकित करता है। श्री प्रकाष चन्द्र रस्तोगी का रेल यात्रा वृत्तान्त ’भारतीय रेल अपनी रेल’ रोचक शैली में लिखा गया एक पठनीय लेख है। श्रीमती स्नेहलता का लेख ’भारतीय रेल राष्ट्र की जीवन रेखा’ एवं डॉ0 दिनेष पाठक ’शशि'  की कहानी ’अनीता’ भी पठनीय रचनायें हैं। इसके अतिरिक्त इसी अंक में श्रीमती साधना श्रीवास्तव का स्वास्थ्य लेख ’तनाव के रंग जीवन के संग’ भी तनाव प्रबंधन की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।

इस अंक में प्रधान सम्पादक के रूप में श्री महेश कुमार गुप्ता, मुख्य राजभाषा अधिकारी एवं कार्यकारी निदेशक/पुल एवं संरचना का नाम प्रकाषित किया गया है। किन्तु अब मुख्य राजभाषा अधिकारी के पद पर श्री महेश  मंगल, वरि0 कार्यकारी निदेशक/सिग्नल कार्यरत हैं।

’मानक रश्मि’ का यह अंक भी अपने पूर्ववर्ती अंकों की भॉंति ही सुन्दर और पठनीय बन पड़ा है। किन्तु पत्रिका में एक बात खटकती है। पत्रिका में सदस्यता शुल्क संबंधी कोई ब्यौरा प्रकाशित  नहीं किया जाता है। सम्भवतः राजभाषा विभाग इस पत्रिका की सीमित प्रतियां केवल संगठन के कर्मियों हेतु प्रकाशित  करके ही संतुष्ट है। संगठन से बाहर के लोगों के लिए भी वार्षिक सदस्यता की सुविधा उपलब्ध की जानी चाहिए ताकि इस पत्रिका का प्रसार अधिक से अधिक लोगों तक हो सके तथा विभिन्न साहित्यकारों की उत्कृष्ट रचनायें पत्रिका में प्रकाषन हेतु प्राप्त हो सकें।

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

लखनऊ में एक और सैरगाह

जैसा कि मेरे प्रोफाइल से आप जान सकते हैं, मैं अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन अर्थात् Research Designs & Standards Organisation (RDSO) में कार्यरत हूँ  । यह रेलवे का एक महत्वपूर्ण संगठन है। अ.अ.मा.सं. का हरा-भरा सुरम्य परिसर लगभग ४०० एकड़ के क्षेत्र में फैला है, जिसमें कार्यालय एवं आवासीय भवन, रेलवे अस्पताल, बैंक, डाकघर, विद्यालय, शापिंग सेन्टर इत्यादि सम्मिलित हैं। परिसर में आपको जैसी हरियाली देखने को मिलेगी वैसी आपको लखनऊ शहर में छावनी एरिया के अलावा शायद ही कहीं और देखने को मिले।


लेकिन मेरा इस पोस्ट को लिखने का मकसद अ.अ.मा.सं. के कार्यक्षेत्र के बारे में बताना नहीं है। बल्कि मैं तो यह बताना चाहता हूँ कि हाल ही अ.अ.मा.सं. परिसर में नये आडिटोरियम के निकट एक झील पार्क विकसित किया गया है। पार्क के निर्माण का उद्दे’य अ.अ.मा.सं. के लोगों हेतु ऐसे नैसर्गिक वातावरण का सृजन करना है जहॉं आकर लोग आमोद-प्रमोद के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त कर सकें। उक्त स्थान पेड़ों और झाड़ियों से भरा पड़ा थां और बियाबान जंगल सा प्रतीत होता था। इस झील पार्क के बारे में सबसे खास बात यह है कि झील का निर्माण करने में किसी भी पेड़ को काटा नहीं गया है। इसके लिए झील का निर्माण इस प्रकार किया गया कि वह अमीबा की आकृति की दिखाई देती है जो अनायास ही सुन्दर बन जाने वाली कृति है।

इस झील पार्क में पैदल टहलने के लिए पाथ-वे, बच्चों के लिए झूले, पार्क में पुष्पीय और औषधीय पौधे इत्यादि लगाये गये हैं। शीघ्र ही झील में बोटिंग की व्यवस्था भी की जा रही है और एक कैफेटेरिया भी खुलने वाला है। झील में एक तैरता फौव्वारा भी लगाया गया है। झील के सौन्दर्य में वृद्धि करने तथा प्राकृतिक वातावरण का जीवन्त आभास प्रदान करने हेतु झील में १६ बतखों की भी व्यवस्था की गयी है। इसके लिए झील के बीच में एक बतख घर भी बनाया गया है।

इस झील पार्क को अभी केवल अ.अ.मा.सं. परिसर के निवासियों के लिए खोला गया है। लेकिन शीघ्र ही इसे बाहरी लोगांे के लिए भी खोल दिया जायेगा।

इसलिए जब कभी लखनऊ  के इस इलाके में आएं तो झील पार्क में घूमना न भूलें। फिलहाल आप नीचे स्लाइडशो  में कैद झील पार्क की झलक तो देख ही सकते हैं।