-1-
इस ओर भी नजरें जरा फिरा तो दीजिये
दिल है ये बेकरार मुस्कुरा तो दीजिये
मुमकिन है अपने दरमियां कुछ गुफ्तगू मगर,
खामोशी की दीवार ये गिरा तो दीजिये
मेरी तरह हो जायेंगे मयखाने के कायल,
इक जख्म दिल पे आप भी गहरा तो लीजिये
तस्वीर है सुन्दर सफेद फूल की मगर,
इसको कोई सियाह सी धरा तो दीजिये
कुरआन सी लगेगी जिन्दगी की ये किताब
इसका हरेक हर्फ सुनहरा तो कीजिये
-2-
दिल ने माना था तुम खुदा निकले।
तुम भी औरों-से बेवफा निकले।
कोई धोखा न खाये मेरी तरह,
नफ़स-नफ़स से ये दुआ निकले।
प्यासे ही राह पर हम बढ़ते रहे,
आगे शायद कोई कुआँ निकले।
शाम का वक्त कैसे गुजरेगा,
कहीं तो कोई मयकदा निकले।
जाल फेंका था मछलियों के लिए,
जाल खींचा तो सीप आ निकले।
-3-
डूबते को एक तिनके का सहारा कर दिया।
तुमने इस ज़र्रे को यूँ रोशन सितारा कर दिया।
शुक्रिया भी कह न पाया था अभी तक यार को,
उसने इक एहसान फिर मुझ पर दुबारा कर दिया।
हम सहोदर थे, कहीं अपना-पराया कुछ न था।
वक्त ने सब बांटकर, अपना-पराया कर दिया।
मैंने जब पूछा शहर में चारागर का रास्ता,
मयकदे की ओर लोगों ने इशारा कर दिया।
-4-
तुम हमको यूँ नज़रों में गिरफ्तार कर गये।
बेखु़द हुए हम भी तो हदें पार कर गये।
यूँ जख्म ही देना था मेरे सीने पर देते,
क्यूँ दोस्त बन के पीठ पर तुम वार कर गये?
तूफान के डर से रहा साहिल पे मैं खड़ा,
जो हौसला रखते थे, नदी पार कर गये।
दिल की पुकार को यूँ ही सुन लेती है ममता,
तुम माँ को खबर भेजने क्यों तारघर गये?
इस ओर भी नजरें जरा फिरा तो दीजिये
दिल है ये बेकरार मुस्कुरा तो दीजिये
मुमकिन है अपने दरमियां कुछ गुफ्तगू मगर,
खामोशी की दीवार ये गिरा तो दीजिये
मेरी तरह हो जायेंगे मयखाने के कायल,
इक जख्म दिल पे आप भी गहरा तो लीजिये
तस्वीर है सुन्दर सफेद फूल की मगर,
इसको कोई सियाह सी धरा तो दीजिये
कुरआन सी लगेगी जिन्दगी की ये किताब
इसका हरेक हर्फ सुनहरा तो कीजिये
-2-
दिल ने माना था तुम खुदा निकले।
तुम भी औरों-से बेवफा निकले।
कोई धोखा न खाये मेरी तरह,
नफ़स-नफ़स से ये दुआ निकले।
प्यासे ही राह पर हम बढ़ते रहे,
आगे शायद कोई कुआँ निकले।
शाम का वक्त कैसे गुजरेगा,
कहीं तो कोई मयकदा निकले।
जाल फेंका था मछलियों के लिए,
जाल खींचा तो सीप आ निकले।
-3-
डूबते को एक तिनके का सहारा कर दिया।
तुमने इस ज़र्रे को यूँ रोशन सितारा कर दिया।
शुक्रिया भी कह न पाया था अभी तक यार को,
उसने इक एहसान फिर मुझ पर दुबारा कर दिया।
हम सहोदर थे, कहीं अपना-पराया कुछ न था।
वक्त ने सब बांटकर, अपना-पराया कर दिया।
मैंने जब पूछा शहर में चारागर का रास्ता,
मयकदे की ओर लोगों ने इशारा कर दिया।
-4-
तुम हमको यूँ नज़रों में गिरफ्तार कर गये।
बेखु़द हुए हम भी तो हदें पार कर गये।
यूँ जख्म ही देना था मेरे सीने पर देते,
क्यूँ दोस्त बन के पीठ पर तुम वार कर गये?
तूफान के डर से रहा साहिल पे मैं खड़ा,
जो हौसला रखते थे, नदी पार कर गये।
दिल की पुकार को यूँ ही सुन लेती है ममता,
तुम माँ को खबर भेजने क्यों तारघर गये?
1 टिप्पणी:
Beautiful ghazal !
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