जिउ भीतर ते तौ धुक्कु-पुक्कु, मुलु ऊपर ते हैं बने बली।
कइ लियैं कुकरवा भुक्कु-भुक्कु, हॉंथी तौ आपनि चाल चली।
भालू होइगें चालू एतना, अपसै मा झगरे मरत हवैं।
चउतरफा चाटि-चाटि चटनी, चउकड़ी चउगड़ा भरत हवैं।
गदद्न पर ल्वाटैं मालु छानि, ई गदहन के हैं दिन बहुरे।
हीरा तजि, जीरा कै चोरी, सब उँट करैं निहुरे-निहुरे।
अब हमना बइठब गुप्पु-सुप्पु, नाहीं तौ इनकै नेति फली।
कइ लियैं कुकरवा भुक्कु-भुक्कु, हॉंथी तौ आपनि चाल चली।
सब बैल छैल बनि गैल-गैल, सींघन ते सैल बझेलि रहे।
बग्घी का छाडि़ उतारि जीन, घ्वाड़ा सुरबग्घी खेलि रहे।
खाल सेर कै पहिर-पहिरि, बहुतेरे सियार हैं आये।
खउख्यानि बँदरवा एकजुट हवै, मुलु बारु न बॉंका कइ पाये।
सब मरिगें नकुना घिस्सि-घिस्सि, मुलु कबौ न याकौ दालि गली।
कइ लियैं कुकरवा भुक्कु-भुक्कु, हॉंथी तौ आपनि चाल चली।
(अवधी भाषा के प्रसिद्ध कवि 'गुदड़ी के लाल' उर्फ गुरु चरण लाल के कविता संग्रह 'छुटटा हरहा' से)
कइ लियैं कुकरवा भुक्कु-भुक्कु, हॉंथी तौ आपनि चाल चली।
भालू होइगें चालू एतना, अपसै मा झगरे मरत हवैं।
चउतरफा चाटि-चाटि चटनी, चउकड़ी चउगड़ा भरत हवैं।
गदद्न पर ल्वाटैं मालु छानि, ई गदहन के हैं दिन बहुरे।
हीरा तजि, जीरा कै चोरी, सब उँट करैं निहुरे-निहुरे।
अब हमना बइठब गुप्पु-सुप्पु, नाहीं तौ इनकै नेति फली।
कइ लियैं कुकरवा भुक्कु-भुक्कु, हॉंथी तौ आपनि चाल चली।
सब बैल छैल बनि गैल-गैल, सींघन ते सैल बझेलि रहे।
बग्घी का छाडि़ उतारि जीन, घ्वाड़ा सुरबग्घी खेलि रहे।
खाल सेर कै पहिर-पहिरि, बहुतेरे सियार हैं आये।
खउख्यानि बँदरवा एकजुट हवै, मुलु बारु न बॉंका कइ पाये।
सब मरिगें नकुना घिस्सि-घिस्सि, मुलु कबौ न याकौ दालि गली।
कइ लियैं कुकरवा भुक्कु-भुक्कु, हॉंथी तौ आपनि चाल चली।
(अवधी भाषा के प्रसिद्ध कवि 'गुदड़ी के लाल' उर्फ गुरु चरण लाल के कविता संग्रह 'छुटटा हरहा' से)
1 टिप्पणी:
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
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