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गरज उठी घनघोर घटाएं, रिमझिम बारिश आई।
सोंधी महक उठी मिट्टी की, प्यासी धरा जुड़ाई।
ताल-पोखरे बने समुन्दर, नदिया भी बलखाई।
चमक उठे मोती मक्के के, बेर-बेर गदराई।
बाग-बगीचे, सड़कें, गलियां, बारिश ने धो डालीं।
कागज की नावें बच्चों ने, पानी में तैरा लीं।
पंख पसारे मोर नाचता, देख मोरनी आई।
टर्र-टर्र मेंढक की गूँजें, पड़ने लगीं सुनाई।
इन्द्रधनुष छा गया गगन में, लाल, बैंगनी, पीला।
हरा, आसमानी नारंगी, सुन्दर नीला-नीला।
बरखा रानी नये बरस तुम, इसी तरह फिर आना।
पशु पक्षी इंसान सभी को, जी भर कर नहलाना।