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रविवार, 31 जुलाई 2011

बरखा रानी

गूगल इमेज से साभार


गरज उठी घनघोर घटाएं, रिमझिम बारिश आई। 
सोंधी महक उठी मिट्टी की, प्‍यासी धरा जुड़ाई। 
ताल-पोखरे बने समुन्‍दर, नदिया भी बलखाई। 
चमक उठे मोती मक्‍के के, बेर-बेर गदराई। 
बाग-बगीचे, सड़कें, गलियां, बारिश ने धो डालीं। 
कागज की नावें बच्‍चों ने, पानी में तैरा लीं।
पंख पसारे मोर नाचता, देख मोरनी आई।
टर्र-टर्र मेंढक की गूँजें, पड़ने लगीं सुनाई।
इन्‍द्रधनुष छा गया गगन में, लाल, बैंगनी, पीला। 
हरा, आसमानी नारंगी, सुन्‍दर नीला-नीला। 
बरखा रानी नये बरस तुम, इसी तरह फिर आना। 
पशु पक्षी इंसान सभी को, जी भर कर नहलाना।