मुक्त मन-मस्तिष्क हो भय से जहॉं,
गर्व से उन्नत जहॉं पर भाल हो।
ज्ञान भी उन्मुक्त मिलता हो जहॉं,
जाति मजहब का न कोई सवाल हो।
शब्द निकलें सत्य के ही गर्भ से
श्रेष्ठता को हर कोई तैयार हो।
तर्क ही आधार हो स्वीकार का,
रूढि़यों से मुक्त जन-व्यवहार हो।
देशवासी सब प्रगति पथ पर बढ़ें,
शान्ति, उन्नति, प्रेम के आसार हों।
हे प्रभू, लेकर तुम्हारी प्रेरणा,
स्वर्ग ऐसा देश में साकार हो।