बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

कवियों का कैसा हो बसंत

कवियों का कैसा हो बसंत

कवि कवयित्री कहतीं पुकार
कवि सम्मलेन का मिला तार
शेविंग करते, करती सिंगार
देखो कैसी होती उड़न्त
कवियों का कैसा हो बसंत
छायावादी नीरव गाये
ब्रजबाला हो, मुग्धा लाये
कविता कानन फिर खिल जाए
फिर कौन साधु, फिर कौन संत
कवियों का ऐसा हो बसंत
करदो रंग से सबको गीला
केसर मल मुख करदो पीला
कर सके न कोई कुछ हीला
डुबो सुख सागरमें अनंत
कवियों का ऐसा हो बसंत

(सुभद्राकुमारी चौहान की कविता 'वीरों का कैसा हो बसंत' की पैरोडी)
रचनाकार : बेढब बनारसी

3 टिप्‍पणियां:

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर है कवियों का बसंत| धन्यवाद|

Satish Saxena ने कहा…

आप शब्द धनी लगते हैं , मगर पैरोडी लिखने से बचना चाहिए ! आप अपनी शैली में मूल रचना करें मुझे लगता है वह काफी प्रभावी रहेगी ! पैरोडी लिखना है तो अपनी ही रचना की करें, लोग पसंद करेंगे ! शुभकामनायें आपको !

अनूप शुक्ल ने कहा…

मजे आ गये जी।
मैंने इसी कविता की तर्ज पर लिखा था कभी-
ब्लागर का कैसा हो बसंत…