पापा मुझ पर धौंस जमाते,
''होमवर्क निपटाओ।''
मम्मी मुझको डॉंट पिलातीं,
''दूध गटक पी जाओ।''
दादी कहतीं, ''गिर जाओगे,
दौड-भाग मत करना।''
दीदी कहतीं, ''मत चिल्लाओ,
मुझको तो है पढना।''
अगर कहीं मैं अपने घर में,
बडा सभी से होता।
सब पर अपना हुक्म चलाता,
चैन की निंदिया सोता।
16 टिप्पणियां:
Niragas,pyari rachana!
वाह! क्या बात है! क्या मासूम अरमान हैं। :)
sab tumhare bhale ke liye hai babu, bade hone per aap bhi yahi karenge
har kisi ko yahi lagta hai...:)sundar bhavmayi rachnaa समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
हाँ ऐसा ही होता है हम बच्चों के साथ..... बड़ी प्यारी कविता है .....
सुंदर बाल रचना
यह तो सुन्दर और सत्य इच्छा है बालक की..
बहुत ही मासूम सी कविता.... जैसे सब बच्चों के दिल कि बात...:)
बहुत सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
बहुत सुन्दर बाल गीत कोमल मन की बात सरल शब्दों में व्यक्त करता बतियाता बधाई .
मासूम भावनाओ का मासूम उदगार, वाह!क्या कहना
innocent imagination...
वाह, बढि़या बालगीत।
बच्चे जल्दी बड़ा हो जाना चाहते हैं, इस तथ्य को आपने बखूबी पहचाना है।
सुंदर हुक्म चलाती बढ़िया रचना,...अच्छी लगी
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बहुत ही मासूम सी बाल रचना|
bahut sundar bal kavita hai..
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