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शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

पापा जल्‍दी आ जाना



पापा जल्‍दी आ जाना। 
मुझको संग घुमा जाना। 
मैं भी जाऊँगा बाजार। 
और खिलौने लूँगा चार। 

(यह कविता बचपन में कहीं पढी थी। अपने बेटे की इस तस्‍वीर को देखकर यह कविता याद आ गई।)

सोमवार, 12 दिसंबर 2011

अगर कहीं मैं अपने घर में

पापा मुझ पर धौंस जमाते, 
''होमवर्क निपटाओ।'' 
मम्‍मी मुझको डॉंट पिलातीं,
''दूध गटक पी जाओ।'' 
दादी कहतीं, ''गिर जाओगे, 
दौड-भाग मत करना।'' 
दीदी कहतीं, ''मत चिल्‍लाओ, 
मुझको तो है पढना।'' 
अगर कहीं मैं अपने घर में, 
बडा सभी से होता। 
सब पर अपना हुक्‍म चलाता,
चैन की निंदिया सोता।

रविवार, 19 जून 2011

गर्मी की छुट्टियां - कविता



गर्मी की छुट्टियां चल रहीं।
तन-मन में मस्‍ती मचल रही।
धमा-चौकड़ी करते दिन भर।
डॉट बड़ों की रहे बेअसर।
लूडो, कैरम, आई-स्‍पाई।
हॅसना, रोना, हाथापाई।
बैट-बॉल का नम्‍बर आया।
चौका-छक्‍का खूब जमाया।
पॉंच मिनट का ब्रेक लिया है।
तब ऑरेन्‍जी जूस पिया है।
खेल शुरू होगा दोबारा।
चाहे जितना तेज हो पारा।