बुधवार, 26 मार्च 2014

चुनावों का मौसम करीब आ गया है।

चुनावों का मौसम करीब आ गया है।
ज़मीं से फलक पर गरीब आ गया है।

वो चाहे हो एक्टर, प्रोफेसर, गैंगस्टर,
परखने  को अपना नसीब आ गया है।

मचलते हैं  अरमां,  बदलते हैं रिश्ते,
बग़ावत  का  मौसम अजीब आ गया है।

अभी तक जिसे यार कहते थे अपना
उसी की  जगह पर रकीब आ गया है।

लटकने को तैयार  है फिर से वोटर
वो काँधे  पे  लेकर सलीब आ गया है।

2 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बिल्कुल सही है साहब....

कविता रावत ने कहा…

वोटर तो बस बेचारा रह जाता है ...