तबीयत
शायराना हो रही है।
मोहब्बत
एक बहाना हो रही है।
जुबॉं
को खोलने से डर रहा हूँ,
कलम
मेरा फ़साना ढो रही है।
तुझे
सुनने की चाहत अब तो ख़ुद ही,
लगा
कोयल का गाना हो रही है।
उमड़ती
है मेरे अश्कों की गंगा,
करम
मेरा पुराना धो रही है।
वो
बोले शेर अपने मत पढ़ो तुम,
मोहब्बत
अब निशाना हो रही है।
1 टिप्पणी:
ऎसी रचनाएँ रोमांचित कर जाती हैं... एक अलग प्रकार का रोमांच होता है.
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