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बुधवार, 4 मई 2016

मुझको मेरी नज़र से ही गिरा रहे हैं लोग।

मुझको मेरी नज़र से ही गिरा रहे हैं लोग।
मैं देखता हूँ बौने होते जा रहे हैं लोग।

सूरज से धूप छीनकर मेरे हिसाब की,
मुझको ही रोशनी दिखा भरमा रहे हैं लोग।

चरखा थमा के मुझको, मेरा तन उघाड़कर,
मेरी ही खादी पहन के इतरा रहे हैं लोग।

मुझको बता के क़ायदे उपवास के हज़ार,
मेरी फसल की दावतें उड़ा रहे हैं लोग।

अपने करम से उनके मुकद्दर संवर गये,

पर आज हमीं पर करम फ़रमा रहे हैं लोग।

शनिवार, 27 सितंबर 2014

तुमसे मिलने के बहाने तलाशने होंगे



तुमसे मिलने के बहाने तलाशने होंगे।
फिर से वो ठौर सुहाने तलाशने होंगे।
        
हमारी आशिकी परवान चढ़ी थी जिनसे,
तमाम ख़त वो पुराने तलाशने होंगे।

हमारे दरमियां क्‍यूँ सर्द सी खामोशी है,
हमको इस दूरी के माने तलाशने होंगे।

शुरू हो दौर फिर से गुफ्तगू का मेरे सनम,
हमें कुछ ऐसे फ़साने तलाशने होंगे।

सफ़र के बीच हमें छोड़ के जो चल दोगे,
उदास दिल को मयख़ाने तलाशने होंगे।

शनिवार, 20 सितंबर 2014

शहर बीमार हूँ मैं हॉफता हूँ

गूगल चित्र से साभार
 
हजारों मील हर दिन नापता हूँ।
कभी कायम, कभी मैं लापता हूँ।।

मैं सपनों का उमड़ता इक भँवर हूँ,
तरक्‍की या तबाही का पता हूँ।

है किसमें कितनी हिम्‍मत, कितनी कुव्‍वत,
मैं सबको तोलता हूॅं, भॉंपता हूँ।

मैं कातिल हूँ, लुटेरा हूँ, गदर हूँ,
कहर बन सबके दिल में कॉंपता हूँ।

धुऑं हूँ, शोरगुल हूँ, जिस्‍म-ओ-जॉं तक,
शहर बीमार हूँ मैं, हॉंफता हूँ।

मंगलवार, 16 सितंबर 2014

ग़ज़ल

कभी बहुत ही अकेला हूँ मै,
कभी तो खुद में ही मेला हूँ मैं।
कभी हूँ ठण्‍डी हवा का झोंका,
कभी तो आब का रेला हूँ मैं।
कभी हूँ खुशियों  का खिलता गुलशन,
कभी दु:खों का झमेला हूँ मैं।
जहां के रंग सभी देख लिये,
कि इतनी मुश्किलें झेला हूँ मैं।
ये जिन्‍दगी भी मुझसे खेलेगी,
कि जिन्‍दगी से यूँ खेला हूँ मैं।

शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

तबीयत शायराना हो रही है



तबीयत शायराना हो रही है।
मोहब्‍बत एक बहाना हो रही है।

जुबॉं को खोलने से डर रहा हूँ,
कलम मेरा फ़साना ढो रही है।

तुझे सुनने की चाहत अब तो ख़ुद ही,
लगा कोयल का गाना हो रही है।

उमड़ती है मेरे अश्‍कों की गंगा,
करम मेरा पुराना धो रही है।

वो बोले शेर अपने मत पढ़ो तुम,
मोहब्‍बत अब निशाना हो रही है।

शनिवार, 17 मई 2014

लोकतंत्र की राहों में, आया नया घुमाव है देख।

मेला नहीं चुनाव है देख।
सत्‍ता का बदलाव है देख।

हर मत की कुछ कीमत है,
जाग्रति का फैलाव है देख।

हिचकोले खाता था देश,
अब आया ठह‍राव है देख।

खत्‍म एक युग होने को,
आया नया पड़ाव है देख।

लोकतंत्र की राहों में,
आया नया घुमाव है देख।

शनिवार, 25 जनवरी 2014

मिल गये दिल तो कैसी दूरी है

मिल गये दिल तो कैसी दूरी है।
इश्‍क को हुस्‍न की मंजूरी है।

अब तो हर सांस कह रही है यही,
बिन तेरे जिन्‍दगी अधूरी है।

हर तरफ तीर सी निगाहें हैं,
प्‍यार की राह में मजबूरी है।

मिलेगी मंजिल-ए-मकसूद तुझे,
यकीन-ओ-हौसला जरूरी है।

जिसकी खुशबू से बच सका न कोई,
प्‍यार तो ऐसी ही कस्‍तूरी है।