मंगलवार, 16 सितंबर 2014

ग़ज़ल

कभी बहुत ही अकेला हूँ मै,
कभी तो खुद में ही मेला हूँ मैं।
कभी हूँ ठण्‍डी हवा का झोंका,
कभी तो आब का रेला हूँ मैं।
कभी हूँ खुशियों  का खिलता गुलशन,
कभी दु:खों का झमेला हूँ मैं।
जहां के रंग सभी देख लिये,
कि इतनी मुश्किलें झेला हूँ मैं।
ये जिन्‍दगी भी मुझसे खेलेगी,
कि जिन्‍दगी से यूँ खेला हूँ मैं।

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