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मंगलवार, 16 सितंबर 2014

ग़ज़ल

कभी बहुत ही अकेला हूँ मै,
कभी तो खुद में ही मेला हूँ मैं।
कभी हूँ ठण्‍डी हवा का झोंका,
कभी तो आब का रेला हूँ मैं।
कभी हूँ खुशियों  का खिलता गुलशन,
कभी दु:खों का झमेला हूँ मैं।
जहां के रंग सभी देख लिये,
कि इतनी मुश्किलें झेला हूँ मैं।
ये जिन्‍दगी भी मुझसे खेलेगी,
कि जिन्‍दगी से यूँ खेला हूँ मैं।

शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

मॉं

सुबह स्‍नान कर पूजा करती,
सुरभित कस्‍तूरी है मॉं।

चपल रसोईं में घुस जाती,
बेलन, चमच, छुरी है मॉं।

दादा-दादी, पापा, मेरी
सबकी कमजोरी है मॉं।

थपकी देकर मुझे सुलाती,
मीठी-सी लोरी है मॉं।

भांति-भांति त्‍योहार मनाती,
गीत, भजन, कजरी है मॉं।

पहिये-सा परिवार संभाले,
वह मजबूत धुरी है मॉं।
 

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

पापा जल्‍दी आ जाना



पापा जल्‍दी आ जाना। 
मुझको संग घुमा जाना। 
मैं भी जाऊँगा बाजार। 
और खिलौने लूँगा चार। 

(यह कविता बचपन में कहीं पढी थी। अपने बेटे की इस तस्‍वीर को देखकर यह कविता याद आ गई।)

बुधवार, 31 अगस्त 2011

मेरे घर आई एक नन्‍हीं परी

यह संयोग की बात है कि मेरी पिछली पोस्‍ट 31 जुलाई को प्रकाशित हुई और आज 31 अगस्‍त को में वापस ब्‍लॉग पर आ रहा हूँ। इतने दिन ब्‍लॉग से अनुपस्थित रहने का कारण बहुत ही खुशनुमा है। दरअसल 1 अगस्‍त को सुबह 8;56 बजे मैं एक नन्‍हीं सी प्‍यारी सी बेटी का पिता बन गया। यह सौभाग्‍य मुझे दूसरी बार मिला है। इससे पहले यह खुशी 28 अप्रैल 2008 को आई थी जब मुझे एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जन्‍म लेने के बाद से ही नवजात शिशु को लेकर जिम्‍मेदारियां बढ़ जाती हैं। चूँकि सीजेरियन आपरेशन से पत्‍नी का प्रसव हुआ था, इसलिए जिम्‍मेदारियां और भी बढ़ गयीं। फिलहाल मैं तो एक नन्‍हीं परी का पिता होने का सुख उठा रहा हूँ, लेकिन साथ ही एक दूसरी समस्‍या भी खड़ी हो गयी है। मेरा तीन वर्षीय बेटा अपने को अलग-थलग महसूस करने लगा है और कुछ चिडचिडा भी हो गया है। इसलिए दो-दो बच्‍चों को एक साथ संभालना पड़ता है। लेकिन इसी का नाम तो जिन्‍दगी है, थोड़ी खट्टी थोड़ी मीठी। जल्‍द ही ब्‍लॉग पर जोश के साथ वापस लौटूँगा। तब तक आप नीचे मेरी नन्‍हीं परी की तस्‍वीर देखिये और बताइये कैसी लगी।